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Written By DW
Last Updated : गुरुवार, 13 जनवरी 2022 (08:23 IST)

नजरिया: अमेरिका और नाटो से वार्ता के बाद ही पुतिन उठाएंगे अगला कदम

नजरिया: अमेरिका और नाटो से वार्ता के बाद ही पुतिन उठाएंगे अगला कदम - Putin will take the next step only after talks with America and NATO
रिपोर्ट : एगर्ट कॉन्सटांटिन
 
क्रेमलिन अब भी चाह सकता है कि यूक्रेन के साथ अपनी दुश्मनी को भड़काया जाए, लेकिन मॉस्को चाहेगा कि यह पश्चिमी हठधर्मिता के चलते हुआ घटनाक्रम नजर आए, लिखते हैं डीडब्ल्यू के एगर्ट कॉन्सटांटिन।
    
यूएस रैंड कॉर्पोरेशन में रूसी मामलों के विशेषज्ञ सैमुअल चैरप की 'जिनेवा पर संक्षिप्त राय: यह इससे भी बुरा हो सकता था।' चैरप पश्चिमी देशों में पुतिन से बातचीत के बड़े पक्षधरों में गिने जाते हैं। इन शब्दों के साथ उन्होंने 10 जनवरी को अमेरिका और रूसी प्रतिनिधिमंडल के बीच हुई वार्ता को सकारात्मक घुमाव देने की कोशिश की। मगर चैरप गलत हैं।
 
पुतिन का टाइम टेबल
 
क्रेमलिन पुतिन की मांगों पर बातचीत को इतनी जल्दी नाकाम नहीं होने देता, खासतौर पर अगर मामला अमेरिका और नाटो द्वारा दी जाने वाली सुरक्षा गारंटियों से जुड़ा हो। पुतिन के बारे में माना जाता है कि वह अप्रत्याशित और खतरनाक होने की अपनी छवि को स्थापित रखने में बहुत जतन करते हैं। लेकिन उन्हें यह भी पता है कि विश्वसनीय दिखने के लिए उन्हें अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के कायदों के मुताबिक चलना होगा और यह दिखाना होगा कि उन्होंने अपने पश्चिमी प्रतिद्वंद्वियों को राजी करने की बहुत कोशिश की।
 
अगर वह अभी भी यूक्रेन के साथ दुश्मनी को फिर से सुलगाने की योजना बना रहे हैं, तो उन्हें अपने इरादों को छुपाने के लिए ऐसा जताना होगा कि यह पश्चिमी देशों की जिद के चलते हो रहा है। ऐसा उन्हें रूसी जनता के अलावा बाहर बैठे उन लोगों के लिए भी करना होगा, जो अब भी उनके तर्क सुनने को राजी हैं।
 
12 जनवरी को ब्रसेल्स में नाटो-रूस काउंसिल के बीच बातचीत हो रही है। 13 जनवरी को यूरोपीय सुरक्षा व सहयोग संगठन (ओएससीई) के साथ भी एक सत्र है। मगर मॉस्को सबसे ज्यादा अहमियत अमेरिकी प्रशासन के साथ बातचीत को देता है। यह अनुमान सही लगता है कि अगर पुतिन इस वार्ता पर विराम लगाने का फैसला करें, तो इससे पहले अभी कई दौर की कूटनीतिक बातचीत होगी। अगर पुतिन को लगा कि वह जो चाहते हैं वह आंशिक तौर पर ही सही उन्हें मिलने वाला है, तो संभव है वह वार्ता जारी भी रखें।
 
जिनेवा में पुतिन के दूत, उप विदेश मंत्री सर्गेई रिबकोफ ने अपनी अमेरिकी समकक्ष वैंडी शरमन के साथ बातचीत की। इसके बाद उन्होंने जोर देकर कहा कि मॉस्को को अब भी उम्मीद है कि नाटो उसे ठोस गारंटी देगा कि वह यूक्रेन और जॉर्जिया की सदस्यता को कभी मंजूरी नहीं देगा। साथ ही, मध्य यूरोप और बाल्टिक क्षेत्र में भी अपनी गतिविधियां रोकने का आश्वसान देगा। रूसी अधिकारी कई बार दोहराते रहे हैं कि इन मांगों पर वे कोई समझौता नहीं करेंगे। अमेरिकी प्रतिनिधियों ने भी कई बार कहा है कि रूस की इन शर्तों के साथ बातचीत सफल नहीं हो सकती है।
 
वॉशिंगटन का कहना है कि वह यूक्रेनियों की मौजूदगी के बिना यूक्रेन के बारे में और सदस्य देशों के बिना नाटो के बारे में बातचीत नहीं करेगा। अमेरिका का कहना है कि वह मॉस्को के साथ केवल इस बारे में बात करने को तैयार है कि सैन्य अभ्यास की संख्या में कैसे कमी लाई जाए। और, एक-दूसरे पर भरोसा बढ़ाने (कॉन्फिडेंस बिल्डिंग मेजर्स) के लिए क्या उपाय अपनाए जाएं। यह सैन्य हादसों को रोकने के लिए अपनाई जाने वाली पारदर्शिता और संवाद प्रक्रिया से जुड़ा एक कूटनीतिक शब्द है।
 
अमेरिकी मध्यम दूरी वाले मिसाइलों पर नई संधि की संभावना बनाने पर भी बातचीत करने को तैयार दिखते हैं। यह 2019 के रुख से अलग है, जब रूस पर संधि की शर्तों के उल्लंघन का आरोप लगाकर अमेरिका समझौते से बाहर निकल गया था। मगर क्रेमलिन का दावा है कि इन मुद्दों का उन सुरक्षा संबंधी गारंटियों से कोई लेना-देना नहीं, जो वह जल्द-से-जल्द चाहता है। अमेरिका द्वारा यूक्रेनी सीमा के पास तैनात रूसी सेना को पीछे हटाने की कोशिशों को भी रिबकोफ ने खारिज कर दिया।
 
क्रेमलिन के पास क्या विकल्प हैं?
 
एक अनुभवी राजनेता के तौर पर पुतिन को अमेरिकी प्रतिक्रिया का पूर्वानुमान रहा होगा। पिछली दिसंबर में अंतिम चेतावनी जारी करने से पहले पुतिन को पूर्वाभास रहा होगा। ऐसा लगता है कि वह या तो यह चाहते हैं कि अमेरिका और नाटो के साथ वार्ता पूरी तरह नाकाम हो जाए, ताकि वह यूक्रेन को डराने के लिए आजाद हो जाएं, कथित दोनेत्स्क और लुहांस्क 'पीपल्स रिपब्लिक्स' को वैधता दे दें। या फिर यूक्रेनी भूभाग के और हिस्से पर कब्जा कर लें और साथ-साथ दावा भी करते रहें कि ये पश्चिमी देशों की हठधर्मिता के कारण हुआ है। ऐसा करने का मतलब होगा, रूस पर और अंतरराष्ट्रीय आर्थिक प्रतिबंध। हालांकि पुतिन अब तक जोड़-घटाव कर चुके होंगे कि रूस इन प्रतिबंधों को झेल सकता है।
 
क्रेमलिन के लिए दूसरा विकल्प यह है कि वह अमेरिका और यूरोपीय सहयोगियों को वार्ता में और गहराई तक ले जाए। शायद इन वार्ताओं में वह ऐसे मुद्दे भी जुड़वा दे कि मध्य एशिया को तालिबान से जो खतरे हैं, उनसे निपटने में रूस कैसे मदद कर सकता है। वह ईरान परमाणु समझौते का भी मुद्दा जुड़वा सकता है। और फिर इसके बाद वह यूक्रेन और नाटो से जुड़ी अपनी मांगों की संशोधित सूची सामने लाए। इसके बाद मॉस्को उम्मीद कर सकता है कि यूरोप में उसकी वकालत करने वाले रूस को और रियायत दिए जाने की दलील दें। नए जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स के साथ रूस की प्रस्तावित बातचीत उसे मौका देगी कि वह अमेरिका के मुख्य सहयोगी जर्मनी का मत जान सके।
 
यह मानना मुश्किल है कि पुतिन अमेरिका-रूस निरस्त्रीकरण जैसे सामान्य मैन्यू पर मान जाएंगे। उनके साथ बात करते हुए अमेरिकी वैसे भी इसका जिक्र कर ही चुका होगा।
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