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Written By BBC Hindi
Last Modified: शुक्रवार, 14 जनवरी 2022 (07:37 IST)

अरविंद केजरीवाल क्या तब पंजाब में सिख उम्मीदवार नहीं उतारेंगे?

अरविंद केजरीवाल क्या तब पंजाब में सिख उम्मीदवार नहीं उतारेंगे? - Kejriwal, Punjab election and sikh candidates
अरविंद केजरीवाल ने पिछले साल जून महीने में घोषणा की थी कि आम आदमी पार्टी का पंजाब में मुख्यमंत्री उम्मीदवार कोई सिख ही होगा।
 
इस घोषणा के सात महीने बाद और पंजाब में मतदान के लगभग एक महीना पहले अरविंद केरीवाल पंजाब के लोगों से मुख्यमंत्री की पसंद बताने के लिए कहा है। इसके लिए केजरीवाल ने एक मोबाइल नंबर जारी किया है।
 
एक पसंद का फ़ैसला केजरीवाल ख़ुद सात महीना पहले कर चुके हैं कि उनकी पार्टी के मुख्यमंत्री उम्मीदवार का मज़हब सिख होगा। अब वो जनता की पसंद मांग रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि अगर जनता ने सिख के बदले किसी हिन्दू को उम्मीदवार के रूप में पसंद किया तो क्या केजरीवाल सिख वाली घोषणा से पीछे हट जाएंगे?
 
पंजाब यूनिवर्सिटी में राजनीतिक विज्ञान के प्रोफ़ेसर आशुतोष कुमार कहते हैं, ''यह बिल्कुल सही सवाल है। अगर केजरीवाल को जनता की पसंद ही जाननी थी तो उम्मीदवार का मज़हब केजरीवाल की पंसद से क्यों होना चाहिए? उन्होंने जब जनता की पसंद मोबाइल नंबर पर बताने के लिए कहा है तो ये शर्त नहीं रखी है कि किसी सिख उम्मीदवार को ही पसंद करना है।''
 
''अगर जनता की पसंद कोई हिन्दू उम्मीदवार होगा तो क्या केजरीवाल अपनी घोषणा से पीछे हट जाएंगे? क्या केजरीवाल को पहले से ही पता है कि जनता किसी सिख को ही पसंद करेगी?''
 
प्रोफ़ेसर आशुतोष कुमार कहते हैं, ''इसी से पता चलता है कि केजरीवाल की घोषणा का कोई मतलब नहीं है और वो अपनी पसंद का ही उम्मीदवार उतारेंगे। सबको पता है कि भगवंत मान उनके उम्मीदवार हैं।''
 
अरविंद केजरीवाल ने जनता की पसंद जानने के लिए जो तरीक़ा अपनाया है, उसे लेकर भी कई सवाल उठ रहे हैं। उसकी विश्ववसनीयता क्या होगी? अगर एक व्यक्ति अलग-अलग नंबर से दस बार फ़ोन या मैसेज करेगा तो इसे कैसे रोका जाएगा?
 
संभव है कि पंजाब में रहने वाले वैसे लोग भी फ़ोन कर सकते हैं जो वहाँ के मतदाता नहीं हैं। केजरीवाल के इस तरीक़े को वैज्ञानिक सम्मत नहीं माना जा रहा है।
 
प्रोफ़ेसर आशुतोष कुमार कहते हैं, ''पंजाब में आम आदमी पार्टी की छवि दिल्ली की पार्टी और ग़ैर-पंजाबियों की पार्टी की है। इसी छवि के कारण 2017 में अरविंद केजरीवाल पंजाब की सत्ता से दूर रह गए थे। इसी छवि को तोड़ने के लिए इन्होंने जनता की पसंद का शिगूफा छोड़ा है। केजरीवाल संदेश देना चाहते हैं कि वो पंजाबियों की पसंद से सब कुछ तय कर रहे हैं। अकाली इन्हें ग़ैर-पंजाबी होने को लेकर घेरते रहते हैं। जिस तरीक़े को इन्होंने जनता की पसंद जानने के लिए अपनाया है, वो साइंटिफिक मेथेड नहीं है।''
 
'छवि तोड़ना चाहते हैं'
''एक ही बंदा तीन बार फ़ोन कर सकता है। इसकी जांच कोई नहीं करेगा। जेंडर, उम्र, जाति, मज़हब, क्षेत्र का भी पता नहीं चलेगा। मतलब ये कि पसंद करने वाले किस जाति, मज़हब, उम्र, लिंग और क्षेत्र के हैं। ये रैंडम सैंपलिंग है। पूरे भारत का बंदा इस पर फ़ोन कर सकता है।''
 
''चंडीगढ़ में कोई रहा हो और वोटर नहीं है लेकिन फ़ोन कर सकता है। केजरीवाल बस छवि तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं कि नॉन पंजाबी डिसाइड नहीं कर रहा है। दिल्ली दरबार नहीं थोप रहा है। 2017 में इम्प्रेशन था कि आम आदमी पार्टी दिल्ली से चल रही है और ग़ैर पंजाबी चला रहे हैं। केजरीवाल इस छवि को तोड़ना चाहते हैं।''
 
इसी तरह बीजेपी भी मिस्ड कॉल के आधार पर पार्टी सदस्य बनाती थी और कहती है कि इतने करोड़ लोग बीजेपी के सदस्य बन गए हैं। बीजेपी इसी मिस्ड कॉल से बने सदस्यों की संख्या के आधार पर ख़ुद को दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी कहती है।
 
अरविंद केजरीवाल की राजनीति में बहुत निरंतरता नहीं दिखती है। उत्तराखंड में भी विधानसभा चुनाव है और वहाँ केजरीवाल ने मुख्यमंत्री का चेहरा कर्नल अजय कोठियाल को बनाया है। कई विश्लेषकों का कहना है कि उत्तराखंड में केजरीवाल के लिए सीएम का उम्मीदवार घोषित करना कोई मुश्किल काम नहीं था, इसलिए किसी से नहीं पूछा। उत्तराखंड में क्षेत्रीय पहचान कोई मुद्दा नहीं है।
 
पंसद जानने के तरीक़े पर सवाल
पसंद बताने के लिए मोबाइल नंबर जारी करते हुए केजरीवाल ने गुरुवार को कहा कि यह इतिहास में पहली बार होने जा रहा है लेकिन दिल्ली में इस तरह की चीज़ें केजरीवाल कई बार कर चुके हैं।
 
आम आदमी पार्टी के एक संस्थापक सदस्य ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा, ''साल 2013 में कांग्रेस से गठबंधन करने के सवाल आम आदमी पार्टी फिर भी जनता के बीच गई थी। लेकिन तब भी हम ये नहीं कह सकते कि जनता ने कांग्रेस से गठबंधन कर मुख्यमंत्री बनने लिए कह दिया था।''
 
''चंद लोगों से हाथ उठवा लेने को जनता की सहमति नहीं कह सकते। लेकिन ये मोबाइल पर लोगों की पसंद पूछ रहे हैं, इस पर भला कौन विश्वास करेगा। अब तो आम आदमी पार्टी पर बात करने का भी मन नहीं करता है।''
 
बीबीसी पंजाबी सेवा के संपादक अतुल संगर कहते हैं, ''केजरीवाल के इस फ़ैसले से एक नई चर्चा तो ज़रूरी छिड़ेगी। इसकी पारदर्शिता को लेकर सवाल रहेगा। लेकिन पंजाब में इसे नई शुरुआत के तौर पर देखा जाएगा। इसमें और कोई बहुत गंभीरता नहीं है। अगर आम आदमी पार्टी भगवंत मान को ही उम्मीदवार बनाती है तो कोई कुछ नहीं कर पाएगा। चर्चा का विषय इससे ज़रूर बन गया है लेकिन इससे आगे इसमें कुछ और नहीं है। उन्होंने विपक्षी पार्टियों पर चोट करने की कोशिश की है कि उनकी पार्टी में परिवार फ़ैसला नहीं लेती है।''
 
अरविंद केजरीवाल की क़समें
दिल्ली में 2013 की विधानसभा चुनाव से पहले अरविंद केजरीवाल क़समें खाते थे कि किसी को बहुमत नहीं मिलने की स्थिति में वो न तो कांग्रेस से और न ही बीजेपी से गठबंधन करेंगे। उन्होंने अपने बच्चों की क़सम खाई थी।
 
केजरीवाल ने कहा था, ''मैं अपने बच्चों की क़सम खाता हूँ। मैं न तो बीजेपी के साथ जाऊंगा और न ही कांग्रेस के साथ क्योंकि दिल्ली की जनता इन दोनों के ख़िलाफ़ आम आदमी पार्टी को वोट करेगी। बीजेपी और कांग्रेस आपस में गठबंधन कर सरकार बना सकते हैं क्योंकि दोनों पर्दे के पीछे एक ही हैं। मैं सत्ता का भूखा नहीं हूँ। हमलोग गठबंधन की सरकार नहीं बनाएंगे क्योंकि बीजेपी और कांग्रेस के साथ रहकर हम भ्रष्टाचार ख़त्म नहीं कर सकते। गठबंधन सरकार बनाने से अच्छा हम विपक्ष में बैठना पसंद करेंगे।''
 
2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में किसी को बहुत नहीं मिला। आम आदमी पार्टी को 28, बीजेपी को 31 और कांग्रेस को आठ सीटों पर जीत मिली। आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस से गठबंधन किया और अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री बने। कांग्रेस से समर्थन लेकर सरकार बनाने के सवाल पर तब अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि वो दिल्ली की जनता से पूछेंगे।
 
आम आदमी पार्टी ने तब कहा था कि दिल्ली की जनता के साथ 280 बैठकें तय की गईं और पहले दो दिनों में 128 बैठकें हुईं। आम आदमी पार्टी ने कहा कि इन 128 में 110 बैठकों में लोगों ने कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाने के लिए कहा है। आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस से गठबंधन करने के लिए बेहद अपारदर्शी तरीक़े को ढाल बनाया और 28 सीटों की बदौलत सरकार बना ली।
 
अरविंद केजरीवाल दिल्ली विधानसभा क्षेत्रों में भी उम्मीदवारों के चयन को लेकर ऐसी ही बातें करते थे लेकिन किसी को पता नहीं होता था कि कितने लोगों ने अपनी पसंद बताई थी। इसके बावजूद केजरीवाल घोषणा कर देते थे कि जनता की पसंद से उम्मीदवार चयन किया गया। अपने हर फ़ैसले को जनता का फ़ैसला बताना भारतीय राजनीति में कोई नई बात नहीं है लेकिन अरविंद केजरीवाल पारदर्शिता का जामा पहना देते थे।
 
अब पंजाब में अगले महीने विधानसभा के लिए मतदान है और अरविंद केजरीवाल की पार्टी को मज़बूत दावेदार माना जा रहा है। यहाँ भी केजरीवाल के सामने कांग्रेस ही है। गुरुवार को केजरीवाल ने एक बार फिर से पुराना दांव खेला है।
 
पहले ख़बर आई कि केजरीवाल गुरुवार को पंजाब में अपनी पार्टी के मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करेंगे। लेकिन केजरीवाल मीडिया के सामने आए और घोषणा कर दी कि पंजाब में मुख्यमंत्री का चेहरा पार्टी नहीं जनता तय करेगी। केजरीवाल ने एक मोबाइल नंबर दिया है और लोगों से उसपर एसमएस, वॉट्सऐप या फ़ोन कर अपनी पसंद बताने के लिए कहा है।
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