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Written By DW
Last Modified: मंगलवार, 11 अप्रैल 2023 (08:02 IST)

बच्चों के दिमाग को तबाह कर रही है ऑनलाइन पोर्नोग्राफी

बच्चों के दिमाग को तबाह कर रही है ऑनलाइन पोर्नोग्राफी - online pornography messes up the minds of minor
ओलिवर पीपर
बच्चों को शराब और सिगरेट बेचना प्रतिबंधित है, लेकिन पोर्न उन तक आसानी से पहुंच जाता है। पुलिस और मनोचिकित्सकों के मुताबिक इसके गंभीर नतीजे सामने आ रहे हैं।
 
जर्मनी की पुलिस ने हाल ही में अपराधों के ताजा आंकड़े पेश किए। इनमें 41.1 फीसदी मामले बच्चों और किशोरों से जुड़े पोर्नोग्राफिक कंटेंट शेयर करने थे। हैरानी की बात है कि इसे शेयर करने वाले खुद नाबालिग थे। अक्सर उन्हें यह पता ही नहीं होता कि वॉट्सऐप, इंस्टाग्राम, स्नैपचैट या फिर अन्य ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर इस तरह की सामग्री शेयर करना अपराध है। किशोरों और बच्चों का पोर्नोग्राफी शेयरिंग में इतने बड़े स्तर पर शामिल होना... इन आंकड़ों ने जर्मनी में अलार्म बजा दिया है।
 
लेकिन यहां दो बातों के बीच फर्क करना जरूरी है। बच्चों और नाबालिगों के साथ यौन हिंसा करना और इस तरह के कंटेंट को शेयर करना अपराध है। वहीं वयस्कों को दिखाने वाली पोर्नोग्राफी गैरकानूनी नहीं है, लेकिन इस तरह के कंटेंट को बच्चों या नाबालिगों से शेयर करना अपराध है।
 
इन आंकड़ों ने जर्मनी की आंतरिक मामलों की मंत्री नैंसी फाइजर को अजीब सी स्थिति में डाल दिया है। वहीं मनोवैज्ञानिक और मनोचिकित्सक ताबेया फ्राइटाग इससे हैरान नहीं हैं। हैनोवर के मीडिया एक्डिक्शन सेंटर की प्रमुख फ्राइटाग इसे "हिमखंड वाला दृश्य" करार देती हैं। उनके मुताबिक, "बच्चों के साथ यौन दुर्व्यवहार करने वाला व्यक्ति ऐसा करने से पहले खूब एडल्ट पोर्नोग्राफी देख चुका होता है।" जर्मन क्रिमिनल कोड के आर्टिकल 184 के तहत देश में एडल्ट पोर्नोग्राफी कानूनी है, लेकिन 18 साल से कम उम्र के इंसान को ऐसे कंटेंट तक पहुंच देना गैरकानूनी है।
 
डीडब्ल्यू से बात करते हुए फ्राइटाग ने कहा, "औसतन बच्चे करीब 11 साल की उम्र में पोर्नोग्राफी के संपर्क में आ रहे हैं। अक्सर ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि उनके पास अपने स्मार्टफोन हैं और इंटरनेट इस्तेमाल करते वक्त उन्हें अकेला भी छोड़ दिया जाता है।" मनोचिकित्सक के मुताबिक "यौन हिंसा जैसी पोर्नोग्राफी का बच्चों की मानसिकता और उनके यौन विकास पर बहुत गहरा असर पड़ता है।"
 
सेक्स की गुमराह करने वाली छवि
फ्राइटाग के मुताबिक वह ऐसे परिवारों को जानती हैं, जहां बच्चों ने अपने भाई-बहन के साथ ही पोर्नोग्राफी के सीन दोहराने की कोशिश की। कोविड महामारी के दौरान फ्राइटाग को ऐसे माता-पिता के भी फोन आए, जिनकी बेटियां कई महीनों तक पोर्नोग्राफी देखने के बाद खुद को सेक्स ऑब्जेक्ट की तरह परोसने लगीं और अंतरंग फोटो-वीडियो पुरुषों को भेजने लगीं।
 
मनोचिकित्सक के मुताबिक, "ज्यादा लड़कियां और युवतियां अपने सेक्शुअल रिश्तों में अधिक हिंसा का अनुभव कर रही हैं। कई बार उन पर उम्मीदों का दबाव भी बहुत ज्यादा होता है।"
 
फ्राइटाग इसे समझाते हुए कहती हैं, "प्राथमिक तौर पर पोर्नोग्राफी को मर्दों के लिए बनाया गया। यह अनुभव दिखता है कि लड़के अब लड़कियों को अलग तरह से देखते हैं। क्लास में साथ में पढ़ रही लड़कियों को भी वे सेक्शुअलाइज्ड ऑब्जेक्ट की तरह देखने लगते हैं। दूसरी तरफ लड़कियों को लगता है कि कुछ चीजें बहुत दर्दनाक या घिनौनी होने के बावजूद उन्हें करनी ही हैं। उन्हें डर भी लगता है कि ऐसा न करने पर उन्हें दकियानूसी माना जा सकता है या फिर उनका रिश्ता टूट सकता है।"
 
चिल्ड्रेन्स कमिश्नर फॉर इंग्लैंड के जनवरी 2023 के शोध में 16 से 21 साल के 47 फीसदी युवाओं ने कहा कि लड़कियों को लगता है कि "सेक्स में शारीरिक आक्रामकता शामिल" होती है। साथ ही, 42 फीसदी ने माना कि लड़कियां सेक्स के दौरान "यौन हिंसा पसंद करती हैं।"
 
अमेरिका में हुए एक शोध के मुताबिक, 14 से 17 साल की उम्र में सेक्शुअली एक्टिव हो चुकीं 13 फीसदी लड़कियों ने कहा कि सेक्स के दौरान उनका दम घुटा, लेकिन पोर्नोग्राफी अक्सर इसे किसी आम सेक्शुअल एक्टिविटी की तरह दिखाती है।
 
फ्राइटाग कहती हैं, "स्कूलों में जाकर टीनएजर्स को पोर्न से दूर रखने की कोशिश करने वाले मेरे युवा साथी बताते हैं कि कुछ किशोर उनका आभार जताते हैं, क्योंकि आखिरकार कोई तो इस बारे में बोल रहा है।"
 
पोर्नोग्राफी से भरी दुनिया में जीते बच्चों के प्रति सहानुभूति जताते हुए फ्राइटाग कहती हैं, "यह उनके लिए बहुत बड़ी चुनौती है, जिसके लिए वे बिल्कुल जिम्मेदार नहीं हैं। वे भी सम्मान के हकदार हैं, क्योंकि वे पहली ऐसी पीढ़ी हैं, जो मुफ्त में मिल रहे इस तरह के कंटेंट के दौर को देख रही है और उसे भुगत रही है।"
 
मीडिया लिट्रेसी का दिखावटी रोना
बदतर होते इन हालात को देखते हुए कुछ विशेषज्ञ 14 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए स्मार्टफोन बैन करने की मांग कर रहे हैं। अन्य को लगता है कि सोशल मीडिया, टीवी और रेडियो के जरिए जागरूकता अभियान चलाया जाना चाहिए। कुछ रिसर्चर बच्चों और युवाओं के लिए मीडिया लिट्रेसी के मजबूत प्रोग्रामों की हिमायत करते हैं, ताकि वे ऑनलाइन पोर्नोग्राफी के खिलाफ सजग हो सकें। फ्राइटाग को लगता है कि मीडिया लिट्रेसी की वकालत करने से बात नहीं बनेगी।
 
वह कहती हैं, "ये शब्द तब इस्तेमाल किए जाते हैं, जब बच्चों को दुर्व्यवहार और सदमा देने वाले हिंसक कटेंट से बचाने की जिम्मेदारी वयस्क लेना नहीं चाहते। ये बच्चों के नाजुक कंधों पर पूरी जिम्मेदारी डाल देते हैं और कहते हैं कि उन्हें खुद समझना होगा और खुद को बचाना सीखना होगा। उन्हें ऐसी चीजें करनी होंगी, जो शायद वयस्क भी नहीं कर पाते।" आगे फ्राइटाग कहती हैं, "यह तो वैसी ही बात हुई कि 10 साल के बच्चे को सिखाया जाए कि कार कैसे चलती है और फिर उसे कार देकर हाइवे पर चलाने दी जाए।"
 
फ्राइटाग को नहीं लगता कि बच्चे और युवा भविष्य में पोर्नोग्राफिक कंटेंट से सुरक्षित रह पाएंगे। उनके मुताबिक महामारी ने दिखा दिया है कि बच्चों का भला प्राथमिकताओं की सूची में कहीं पीछे रखा गया है। शोध दिखाते हैं कि ज्यादा पोर्नोग्राफी देखने वाले वयस्क बाल अधिकारों की सुरक्षा में कम दिलचस्पी लेते हैं।
 
वह कहती हैं, "स्कूलों में डिजिटलीकरण की नीति सबसे आगे है। हकीकत में इसका मतलब है कि चाइल्ड प्रोटेक्शन लास्ट में है। यह संभव है और इस पर राजनीतिक फैसला होना चाहिए कि सप्लायरों और कंपनियों को स्कूलों को ऐसे टेबलेट देने चाहिए, जिनमें फिल्टर इंस्टॉल हों। कम से कम जर्मन क्रिमिनल कोड के आर्टिकल 184 को तो गंभीरता से लेना ही होगा और कहना होगा कि जब तक असरदार प्रोटेक्टिव फिल्टर इंस्टॉल नहीं होगें, तब तक हम कोई टेबलेट पेश नहीं करेंगे।"
 
पोर्नोग्राफी के लिए 'उम्र की पुष्टि'
ताबेया फ्राइटाग को टोबियास श्मिड से काफी उम्मीदें हैं। श्मिड बीते कई साल से इस मुद्दे पर अकेले लड़ते आ रहे हैं। वह चाहते हैं कि पोर्नोग्राफिक कंटेंट तैयार करने वाले हिंसक पोर्नोग्राफी को नाबालिगों की पहुंच से दूर रखें। श्मिड आबादी के लिहाज से जर्मनी के सबसे बड़े राज्य नॉर्थ राइन-वेस्टफेलिया के ड्यूसेलडॉर्फ शहर की मीडिया अथॉरिटी के प्रमुख हैं। वह कुछ ऑनलाइन प्लेटफॉर्म को तगड़ा झटका दे चुके हैं।
 
नॉर्थ राइन-वेस्टफेलिया की उच्च प्रांतीय अदालत साफ कर चुकी है कि कई प्लेटफॉर्म जर्मन कानून के तहत बच्चों और नाबालिगों को सुरक्षा के लिए जरूरी कायदों का पालन नहीं कर रहे हैं। यूजर से सिर्फ एक क्लिक पर यह पूछना कि वह 18 साल का है या नहीं, भविष्य में ऐसा काफी नहीं होगा।
 
श्मिड कहते हैं, "पोर्नोग्राफी अपने-आप में प्रतिबंधित नहीं है, लेकिन उसके लिए उम्र की पुष्टि होनी चाहिए। फिलहाल इसके लिए 'सिर्फ एक बटन है, जो कहता है कि हां, मैं 18 का हूं।' यह कोई वेरिफिकेशन सिस्टम नहीं है। यह मजाक है और निश्चित रूप से नाकाफी है। हमें पता कि उनके पास बहुत लंबे समय से एक चेकिंग सिस्टम है। उन्हें बस उसे लागू करना है और ज्यादा कड़े ढंग से अमल में लाना है।"
 
प्लेटफॉर्म को बाध्य करना
पोर्न प्लेटफॉर्म अब भी टालमटोल कर रहे हैं। उन्हें डर है कि एज (उम्र) वेरिफिकेशन सिस्टम लागू करने से कई वयस्क यूजर्स भी भाग जाएंगे। श्मिड कहते हैं कि यहां प्राथमिकता बच्चों और नाबालिगों की सुरक्षा है। वह भी सिर्फ जर्मनी में ही नहीं, बल्कि पूरे यूरोप में इसकी जरूरत है।
 
वह कहते हैं, "लक्जमबर्ग, ऑस्ट्रिया, इटली और फ्रांस के रेग्युलेटर्स के साथ हमने यूरोपीय आयोग से सबसे ज्यादा पहुंच वाले प्लेटफॉर्म के खिलाफ कदम उठाने को कहा है। ऐसे कथित बड़े प्लेटफॉर्म, जिनके पास 4।5 करोड़ से ज्यादा यूजर हैं। इस प्रक्रिया को रफ्तार देने में थोड़ा समय जरूर लगा है, लेकिन अब इसे रोका नहीं जा सकता।"
 
श्मिड के मुताबिक इस कदम की लंबे समय से प्रतीक्षा थी। जर्मनी में 10 से 12 साल के करीब 90 फीसदी बच्चों के पास अपना स्मार्टफोन है। श्मिड मानते हैं कि इंटरनेट ने अपार संभावनाएं जरूर खोली हैं, लेकिन यह ऑनलाइन दुनिया नफरत, हिंसा और बच्चों के साथ दुर्व्यवहार से भी भरी पड़ी है, जिसके लिए नियम-कायदे होने चाहिए।
 
उन्हें दो चीजों की उम्मीद है। पहला, "क्रेडिट कार्ड प्रोवाइडरों को ऐसे प्लेटफॉर्म के लिए अपनी सेवाएं बंद कर देनी चाहिए। उदाहरण के लिए जैसा सट्टेबाजी में हो रहा है। दूसरा, "ऐसे संभावित कड़े प्रतिबंध, जो हम अभी भी कर सकते हैं। जैसे जुर्माना और मुनाफे में कटौती। एक्सेस ब्लॉक करना, यह मीडिया की आजादी के मूलभूत अधिकार पर चोट करता है, इसीलिए इसे बहुत ही आपात स्थिति में आखिरी कदम के तौर पर रखा जाना चाहिए।"
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