जापान के राजकुमार हिसाहितो जब इस साल अगस्त में अपने पहले विदेश दौरे पर भूटान गए तो इसे भविष्य के राजा का दुनिया के मंच पर पहला कदम कहा गया। उनके चाचा नारुहितो के राजा बनने के कुछ ही महीने बाद यह दौरा हुआ था। पारंपरिक हकामा किमोनो में अपने मेजबानों को अभिवाादन करते और तीर कमान पर हाथ आजमाते राजकुमार के लिए यह दौरा सार्वजनिक रूप से सामने आने का एक दुर्लभ मौका था। जापान के राजवंश का भविष्य उन्हीं के कंधों पर है।
जापान में 59 साल के नारुहितो इसी साल मई में अपने पिता के गद्दी छोड़ने के बाद देश के राजा बने हैं। विदेशी और घरेलू विशिष्ट मेहमानों के सामने 22 अक्टूबर को अकिहितो अपने गद्दीनशीन होने का ऐलान करेंगे। जापान के प्राचीन राजपरिवार में सिर्फ पुरुषों को ही राजगद्दी पर बिठाया जा सकता है। विरासत के इस कानून को बदलना रुढ़िवादियों के लिए अभिशाप है और उन्हें प्रधानमंत्री शिंजो आबे का भी समर्थन हासिल है। 13 साल के हिसाहितो अपनी पीढ़ी में अकेले पुरुष हैं और अपने पिता अकिशिनो के बाद गद्दी के दूसरे वारिस। 53 साल के उनके पिता वर्तमान राजा के छोटे भाई हैं।
इसी साल जापान के असाही अखबार ने एक संपादकीय में लिखा था, विरासत के मौजूदा नियमों के मुताबिक राजकुमार हिसाहितो ही पूरे शाही परिवार को बनाए रखने का जिम्मा संभालेंगे। इस राजकुमार पर आखिर में इतना सख्त दबाव होगा कि उस पर सोच-विचार भी नहीं किया जा सकेगा।
2006 में हिसाहितो के जन्म को रूढ़िवादियों ने एक चमत्कार के रूप में देखा। ये रूढ़िवादी पुरुषों को वारिस बनाए जाने की परंपरा को कायम रखना चाहते हैं। जापान के राजपरिवार में 1965 के बाद से किसी पुरुष का जन्म नहीं हुआ था। 8 साल की शादी के बाद राजा की पत्नी मासाको ने एक लड़की, राजकुमारी आईको को जन्म दिया। इससे विरासत के कानूनों को बदलकर महिलाओं को वारिस बनाने की चर्चा तेज हो गई। हालांकि हिसाहितो के जन्म ने इस चर्चा को विराम दे दिया। कियो यूनिवर्सिटी में राजनीति पढ़ाने वाले प्रोफेसर हिदेहिको कासाहारा कहते हैं, रूढ़िवादियों को लगा जैसे स्वर्ग की इच्छा जाहिर हो गई हो।
शाही भूमिका, राजसी विरासत : कुछ विशेषज्ञ और मीडिया इस बात पर हैरानी जता रहे हैं कि क्या हिसाहितो को भविष्य के लिए ठीक से तैयार किया जा रहा है। कासाहारा का कहना है, यह जरूरी है कि लोगों से मिलने के दौरान उन्हें यह महसूस कराया जाए कि वह राजगद्दी पर बैठने की स्थिति में हैं और बहुत कम उम्र से ही उनके मन में यह बात रहनी चाहिए।
दूसरे विश्वयुद्द के बाद जापान के संविधान में राजा की राजनीतिक ताकत खत्म हो गई और उन्हें, देश और लोगों की एकता का एक प्रतीक बना दिया गया। हिसाहितो फिलहाल ओशानोमिजु यूनिवर्सिटी से जुड़े एक जूनियर हाईस्कूल में पढ़ रहे हैं। विश्वयुद्ध के बाद वह शाही परिवार के पहले सदस्य हैं जो गाकुशुई जूनियर हाईस्कूल के बाहर पढ़ने जा रहे हैं।
उनके दादा अकिहितो ने शांती के प्रतीक, लोकतंत्र और जापान के युद्धकाल में आक्रामक रुख के पीड़ितों के साथ समझौतों के जरिए अपने लिए एक सक्रिय भूमिका तैयार की थी। हिसाहितो के पास ऐसा कोई सलाहकार नहीं है जो भविष्य में राजा बनने के लिए उन्हें तैयार कर सके। अकिहितो के लिए यह भूमिका शिंजो कोईजुमी ने निभाई थी। कियो यूनिवर्सिटी के पूर्व अध्यक्ष कोईजुमी बाद में अकिहितो के बेटे नारुहितो के लिए भी रोल मॉडल बन गए।
जानकार कहते हैं कि ऐसा कोई हो तो अच्छा होगा लेकिन शाही परिवार उनकी विरासत को कितनी गंभीरता से लेता है यह अभी नहीं कहा जा सकता। हिसाहितो पर शाही परिवार की विरासत को आगे बढ़ाने की पूरी जिम्मेदारी होगी, यह अभी साफ नहीं है। 2017 में जब संसद ने विशेष कानून बनाकर अकिहितो के गद्दी छोड़ने का रास्ता बनाया तब एक गैरबाध्यकारी प्रस्ताव को भी मंजूरी दी गई थी जिसमें सरकार से कहा गया था कि वह स्थाई विरासत का उपाय ढूंढे।
इसमें एक विकल्प महिलाओं को राजगद्दी का अधिकार देना शामिल है। इससे आईको और हिसाहितो की दो बड़ी बहनों की शादी के बाद भी शाही पदवी बनी रहेगी और वे या तो खुद गद्दी की वारिस बन सकती हैं या फिर उनके बच्चों को यह अधिकार मिल सकता है। सर्वेक्षण बताते हैं कि जापान के ज्यादातर आम लोग इसके पक्ष में हैं। दूसरी तरफ रूढ़िवादी चाहते हैं कि राजपरिवार की जिन शाखाओं का राजसी पद विश्वयुद्ध के बात छीन लिया गया था उसे फिर से लागू कर दिया जाए। हालांकि कासाहारा कहते हैं कि शिंजो आबे इस बहस में नहीं पड़ना चाहते हैं, वह इस बहस को जितना संभव है टाल देना चाहते हैं।
- एनआर/आईबी (रॉयटर्स)
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