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Written By DW
Last Modified: रविवार, 17 जुलाई 2022 (07:51 IST)

दैनिक जरूरतों की महंगाई और खाद्य संकट की मार सबसे अधिक महिलाओं पर

दैनिक जरूरतों की महंगाई और खाद्य संकट की मार सबसे अधिक महिलाओं पर - inflation and food crisis effect on women
श्रम बाजार में लैंगिक भेदभाव तेजी से बढ़ रहा है और विश्व आर्थिक मंच ने एक रिपोर्ट में कहा है कि ईंधन और खाद्य सामग्री के बढ़ते दाम के कारण जीवन-यापन के खर्च का संकट महिलाओं को सबसे ज्यादा प्रभावित करेगा।
 
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (डब्ल्यूईएफ) की एक ताजा रिपोर्ट से पता चलता है कि महिलाओं को लागत संकट से कड़ी टक्कर मिलेगी क्योंकि यह वैश्विक श्रम शक्ति में बढ़ती लैंगिक असमानता को और बढ़ाता है। हर साल दावोस में आयोजित होने वाले वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के मेजबान इस थिंक टैंक द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक आर्थिक संकट, महंगाई और जीवन की दैनिक जरूरतों की ऊंची कीमतों का नकारात्मक असर ज्यादातर महिलाओं पर होगा। इसके अलावा, इस स्थिति से पैदा हुए लैंगिक असमानता से बचने की कोई उम्मीद नहीं है। उसका कहना है कि श्रम बाजार में लैंगिक भेदभाव तेजी से बढ़ रहा है।
 
चीन के वुहान में पहली बार दिसंबर 2019 में फैले कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया। ढाई साल के भीतर दुनिया भर के देशों की आर्थिक, सामाजिक और आर्थिक स्थिति पूरी तरह से बदल गई। जन स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में आम लोगों को जिन कठिनाइयों से गुजरना पड़ा, उसका तथ्य सबके सामने है।
 
लेकिन लगभग हर समाज में कोरोना महामारी को फैलने से रोकने के लिए किए गए उपायों का प्रभाव भी सबसे ज्यादा सिर्फ महिलाओं पर है। लॉकडाउन, सोशल डिस्टेंसिंग और ऐसे ही अन्य नियमों के कारण महिलाओं के लिए अपनी सामाजिक, घरेलू और आर्थिक जिम्मेदारियों को निभाना सबसे कठिन हो गया। वर्क फ्रॉम होम, बच्चों की देखभाल आदि के प्रभावों ने महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य काफी हद तक प्रभावित किया।
 
कोरोना महामारी के दौर में जॉब मार्केट में महिलाओं को भी पुरुषों से ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा। श्रम बाजार में लैंगिक असमानता इसका एक प्रमुख कारण था।
 
डब्ल्यूईएफ के अनुमान के मुताबिक अगर मौजूदा हालात को सामने रखा जाए तो दुनिया में लैंगिक समानता लाने में 132 साल लगेंगे। 2020 में किए गए अनुमानों के अनुसार, यह अनुमान लगाया गया था कि इस लक्ष्य को हासिल करने में 100 साल लगेंगे। डब्ल्यूईएफ ने अपनी रिपोर्ट में लैंगिक समानता को प्रभावित करने वाले चार कारकों को परिभाषित किया है- वेतन और आर्थिक अवसर, शिक्षा, स्वास्थ्य और महिलाओं का सशक्तिकरण। इन कारकों पर कौन सा देश किस स्तर पर है, इसका अनुमान लगाने के लिए, विश्व आर्थिक मंच ने 146 देशों के डेटा वाली एक सूची तैयार की है।
 
आइसलैंड के पास सबसे अधिक अंक हैं, इसके बाद कई उत्तरी यूरोपीय देश हैं, इसके बाद न्यूजीलैंड, रवांडा, निकारागुआ और नामीबिया का नंबर आता है। 146 देशों की इस सूची में यूरोप की सबसे बड़ी आर्थिक ताकत जर्मनी दसवें स्थान पर है।
 
डब्ल्यूईएफ की प्रबंध निदेशक सादिया जाहिदी का कहना है, "स्थिति में कमजोर सुधार को देखते हुए सरकार को दो महत्वपूर्ण श्रेणियों पर ध्यान केंद्रित करना होगा और सुधार के प्रयास करने होंगे।"
 
उन्होंने कहा, "महिलाओं को कार्यबल में वापस लाने और प्रतिभा विकसित करने व महिलाओं को भविष्य के उद्योगों में काम करने के लिए और अधिक प्रशिक्षण देने के प्रयास किए जाने चाहिए। पिछले दशकों में हुई लैंगिक समानता पर प्रगति कम हो जाएगी, जबकि भविष्य की अर्थव्यवस्थाओं में विविधता लाने के प्रयासों को भी कम आंका जाएगा।"
 
यह रिपोर्ट पिछले 16 साल से तैयार की जा रही है। इसका उद्देश्य उन कारकों की पहचान करना है जो श्रम बाजार में लैंगिक अंतर या लैंगिक असमानता में योगदान करते हैं।
 
एए/सीके (एपी)
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