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Last Updated : शुक्रवार, 21 जून 2019 (12:22 IST)

चीनी दवाओं के लिए पाकिस्तान में मारा जा रहा है भारतीय पैंगोलिन

चीनी दवाओं के लिए पाकिस्तान में मारा जा रहा है भारतीय पैंगोलिन - indian pangolin
स्थानीय संरक्षणविदों के प्रयासों के बावजूद चीन से मांस, शल्क और दवाइयों के लिए पैंगोलिन की मांग के चलते यह दुनिया का सबसे ज्यादा तस्करी किए जाना वाला जानवर बन गया है।
 
 
पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में बसा एक छोटा सा शहर वाह। एक रविवार की शाम मसूद अख्तर अपने परिवार के साथ टहल रहे थे। 45 वर्षीय मसूद अख्तर सरकारी कर्मचारी हैं। शहर में घूमते हुए उनकी नजर एक अजीब से दिखने वाले जानवर पर पड़ी। इसका शरीर शल्कों से ढका हुआ था। जानवर को देखने के लिए लोग इसके आस पास इकट्ठा हो रहे थे। किसी को नहीं पता था कि यह क्या है। कुछ लोगों को तीन फीट लंबा यह अजीब सा जानवर डायनासोर जैसा लगा। अख्तर कहते हैं कि उन्होंने इसे जिंदगी में पहली बार देखा था।
 
 
यह जानवर एक पैंगोलिन था। अधिकतर लोगों ने इसके बारे में कभी नहीं सुना था। वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड के मुताबिक भारतीय पैंगोलिन फिलहाल दुनिया का सबसे ज्यादा तस्करी किए जाने वाला जानवर है। पैंगोलिन का उसके शल्कों और मांस के लिए शिकार किया जाता है। इसका सबसे बड़ा बाजार चीन है। और इस बाजार की जरूरत को पाकिस्तान के शिकारी पूरा कर रहे हैं।
 
 
पाकिस्तान के संरक्षणवादी समूह अब अस्तित्व के खतरे से जूझ रहे इस जानवर को बचाने में जुटे हैं। 2017 में वर्ड वाइल्डलाइफ फंड ने पाकिस्तान में 'सेविंग द पैंगोलिंस ऑफ पाकिस्तान' नाम का प्रोजेक्ट शुरू किया गया। संगठन के मुताबिक 2013 से 2018 के बीच पैंगोलिनों की संख्या में 80 प्रतिशत की कमी आई है।
 
 
संसथा से जुड़े संरक्षणविद मोहम्मद वसीम कहते हैं कि पैंगोलिन का व्यापार करने वाले लोग अधिकतर शहरों में रहते हैं और पैसों के लिए इनका शिकार करते हैं। एक स्थानीय व्यक्ति ने डीडब्ल्यू को बताया कि एक बार उसने गांव के कुछ लोगों को एक पैंगोलिन को मारते देखा था, "अगर मुझे पता होता कि यह जानवर बाजार में इतना महंगा बिकता है, तो उसे मरकर वहीं सड़ने देने की जगह मैंने उसे बाजार में बेच दिया होता।" बिचौलियों द्वारा इन्हें चीन पहुंचा दिया जाता है। ये बिचौलिए कराची के दक्षिणी बंदरगाह पर काम करते हैं।
 
 
चीन में है बड़ी मांग
पैंगोलिन के शल्क का उपयोग चीन की पारंपरिक दवाएं बनाने में होता है। और इसका मांस स्वादिष्ट माना जाता है। क्योंकि यह व्यापार कालाबाजारी से होता है इसलिए यह नहीं पता चलता कि हर साल कितना मांस चीन निर्यात किया जाता है। चीनी संरक्षणविद कहते हैं कि पैंगोलिन चीन में बहुत कम होते हैं, इसलिए इनके अवैध आयात को बढ़ावा मिलता है।
 
 
एशियन पैंगोलिन के व्यापार पर 2000 में प्रतिबंध लगा दिया गया था। 2017 में इसकी सभी आठों प्रजातियों के व्यापार पर पूरे विश्व में प्रतिबंध लगा दिया गया। चाइना बायोडाइवर्सिटी कंजर्वेशन एंड ग्रीन डवलपमेंट फाउंडेशन (CBCGDF) के अनुसार चीन में 200 से ज्यादा दवा कंपनियां और 60 पारंपरिक दवा ब्रांड पैंगोलिन के शल्क से बनाए जाने वाली दवाएं बनाते हैं।
 
 
हर साल चीनी अधिकारियों द्वारा दवा बनाने के लिए 29 टन पैंगोलिन शल्कों का इस्तेमाल करने की अनुमति है। इसके लिए 73,000 पैंगोलिनों की जरूरत होती है। CBCGDF ने दक्षिणी चीनी प्रांतो में पैंगोलिन की कालाबाजारी का पता लगाने के लिए अपनी टीमें भेजी। इन टीमों ने पाया कि कई रेस्तराओं में पैंगोलिन का मांस परोसा जा रहा है। 2017 में चीनी अधिकारियों ने 13 टन पैंगोलिन शल्क पकड़े जो अवैध तरीके से लाए गए थे। पिछले साल हांगकांग में एक साथ 7.8 टन पैंगोलिन शल्क पकड़े गए जो चीन ले जाए जा रहे थे।
 
 
शिकारियों का पाकिस्तान में मुकाबला
पाकिस्तान में भारतीय पैंगोलिन विलुप्त होने की कगार पर हैं। इसलिए संरक्षणवादी समूह, डॉक्यूमैंट्री फिल्ममेकर, जीवविज्ञानी और वहां के नागिरक पाकिस्तान में इन्हें बचाने के लिए अभियान चला रहे हैं। पाकिस्तान में पैंगोलिन संरक्षण के लिए काम कर रहे रियाज हुसैन ने डीडब्ल्यू को बताया कि चीन पाकिस्तान इकॉनोमिक कॉरिडोर के बाद यहां चीनी व्यापारियों की आवाजाही बढ़ी है। इसके चलते यहां पैंगोलिनों का शिकार भी बढ़ा है।
 
 
पिछले दो साल में वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड ने छह पैंगोलिन संरक्षण जोन बनाए हैं। यहां सुरक्षाकर्मी और वन्यजीव पर्यवेक्षक शिकार रोकने के तरीकों पर काम कर रहे हैं। एक डॉक्यूमैंट्री फिल्ममेकर मोहम्मद अली इजाज ने एक 15 मिनट की फिल्म बनाई है। इसे वे स्कूलों और सामुदायिक केंद्रो पर दिखाकर पैंगोलिन को बचाने के लिए जागरूकता फैला रहे हैं।
 
 
पाकिस्तान ने पैंगोलिन को संरक्षित वन्यजीवों की सूची में डाल दिया है लेकिन अभी भी यहां कि अलग-अलग वन्य जीव एजेंसियों के बीच सही समन्वय ना होने के चलते पैंगोलिन संरक्षण के लिए ज्यादा बड़े कदम नहीं उठाए जा सके हैं।
 
 
रिपोर्ट: हारून जांजुआ/आरएस
 
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