रिपोर्ट: निखिल रंजन (एएफपी)
यूक्रेन पर हमले ने रूसी राष्ट्रपति को अलग-थलग कर दिया है लेकिन लगता नहीं कि उन्हें इसकी परवाह है। अंतरराष्ट्रीय राजनीति के जानकार इस स्थिति को उनकी पसंद बता रहे हैं। इससे घरेलू राजनीति में उनकी स्थिति मजबूत हो सकती है। यूक्रेन पर रूसी हमले ने अमेरिका और उसके सहयोगियों को रूस के खिलाफ 'विध्वंसकारी' प्रतिबंधों के पैकेज पर तुरंत रजामंद कर लिया। नाटो, यूरोपीय संघ और जी-7 के नेताओं ने हमले की निंदा की और रूस को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया है।
ब्लूबे एसेट मैनैजमेंट में उभरते बाजारों के रणनीतिकार टिमोथी ऐश कहते हैं, 'पुतिन को अब हमारे पश्चिमी उदार बाजार वाले लोकतंत्र की व्यवस्था के लिए सबसे करीबी खतरे के रूप में देखा जा रहा है।' ऐश का यह भी कहना है कि पश्चिमी देशों के नेता 'पुतिन से पूरी तरह से निराश और खतरे में' महसूस कर रहे हैं। पुतिन ने खुद को पश्चिमी देशों के लिए 'पहले नंबर का अछूत बना लिया है।'
थिंक टैंक इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप के अध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी अधिकारी कंफोर्ट इरो का कहना है कि इसके नतीजे में बहुत संभावना है कि रूस ऐतिहासिक रूप से लंबे समय के लिए आर्थिक तौर पर अकेला पड़ जाएगा। 2014 में रूस ने जब क्राइमिया को यूक्रेन से अलग कर अपने साथ मिला लिया तभी से उस पर प्रतिबंधों का दौर शुरू हो गया था। इसके बाद रूसी राष्ट्रपति के आलोचक आलेक्सी नावाल्नी को 2020 में जहर देने के बाद ये सिलसिला और आगे बढ़ा। हालांकि इन सारे प्रतिबंधों का रूसी राष्ट्रपति पर कोई असर हुआ हो यह दुनिया ने नहीं देखा।
बहुत पहले से तैयारी
राजनीतिक विश्लेषण संस्था आर पॉलिटिक की संस्थापक तात्याना स्तानोवाया बताती हैं, 'करीब डेढ़ साल से क्रेमलिन बहुत सक्रियता के साथ इसकी तैयारी में जुटा हुआ था कि पश्चिमी देश और ज्यादा कड़े प्रतिबंध लगाएंगे।' स्तानोवाया के मुताबिक पुतिन के लिए, 'प्रतिबंधों का लक्ष्य रूस के हमले की आक्रामकता से बचाव नहीं है बल्कि रूस के विकास को रोकना है।' इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि पुतिन पश्चिमी देशों के साथ लंबी लड़ाई की उम्मीद रखते हैं।
पश्चिमी देशों ने कुछ प्रतिबंधों का तो ऐलान कर ही दिया है और जो बाकी है उनमें रूस को वैश्विक भुगतान तंत्र स्विफ्ट से अलग करना है। हालांकि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने गुरुवार को कहा कि यूरोप ने अभी इस कदम पर फैसला नहीं किया है। रूसी राष्ट्रपति ने इस आशंका से बचने के लिए रूस में अच्छी खासी तैयारी की है। खासतौर से विदेशी मुद्रा के भंडार को बढ़ाकर वो इस डर को अपने दिमाग से निकाल देना चाहते हैं। फिलहाल रूस के पास करीब 640 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार मौजूद है।
इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप के रूस विशेषज्ञ ओलेग इग्नातोव कहते हैं, 'विशाल मुद्रा भंडार, तेल की बढ़ती कीमत और जीडीपी के मुकाबले कम कर्ज का अनुपात रूस की तुरंत लगने वाले प्रतिबंधों से रक्षा करेंगे। हालांकि लंबे समय में इनके कारण देश में आर्थिक जड़ता आएगी।'
ऊर्जा की बड़ी दुकान
रूस दुनिया में कच्चे तेल के सबसे बड़े उत्पादक देशों में है। 2014 के बाद इसने इस दिशा में काफी ज्यादा प्रगति की है और हमले के बाद तो यह उस स्तर पर पहुंच गया है जहां इससे पहले कभी नहीं रहा। बीते कई हफ्तों से रूस और पोलैंड के बीच पाइपलाइन से आने वाले गैस की सप्लाई कम हो रही थी लेकिन शुक्रवार को यह अचानक चार गुना बढ़ गई। ऐश ने गुरुवार को रूसी शेयर बाजार में भारी गिरावट की ओर इशारा करते हुए कहा कि भारी प्रतिबंधों के कारण रूस 'वैश्विक बाजार में अछूत बन जाएगा और निवेश के लायक नहीं रहेगा।'
रूसी राष्ट्रपति के दफ्तर क्रेमलिन का कहना है कि उसने इस स्थिति का अनुमान पहले ही लगा लिया था। क्रेमलिन के प्रवक्ता दमित्री पेस्कोव ने पत्रकारों से कहा, 'इस भावुक लम्हे को जितना मुमकिन है उतना तात्कालिक रखने के लिए सारे जरूरी उपाय पहले ही कर लिए गए हैं।' पेस्कोव ने राजनयिक असर को भी कम कर के दिखाने की कोशिश की। पेस्कोव का कहना है, 'निश्चित रूप से कुछ देशों के साथ हमें समस्या होगी लेकिन हम इन देशों के साथ पहले से ही समस्याओं का सामना कर रहे हैं।'
वास्तव में ऐसा लग रहा है कि पुतिन का रूस अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा की बुनियादों को ही हिला देना चाहता है। कंफोर्ट इरो का कहना है, 'यह सिर्फ यूरोपीय सुरक्षा संकट नहीं है। इस जंग के नतीजे वैश्विक सुरक्षा के लिए भी कठिन और लंबे समय के लिए होंगे।' कार्नेगी मॉस्को सेंटर के सीनियर फेलो अलेक्जांडर बाउनोव का कहना है कि स्वाभाविक रूप से रूस लंबे समय के लिए अछूत बन जाएगा और यू्क्रेन में उसका अभियान जितना लंबा होगा, 'उतना ज्यादा दूसरे देशों के साथ रूस के आर्थिक संपर्क और संबंध बिगड़ेंगे।'
रूस के लिए संकट के साथी
पश्चिम की ओर से कूटनीतिक और आर्थिक तौर पर 'अछूत' पुतिन चीन और ईरान जैसे देशों की तरफ जा सकते हैं। इन दोनों देशों ने अब तक रूस की निंदा नहीं की है, ईरान ने संघर्ष विराम और राजनीतिक समाधान की मांग की है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान तो गुरुवार को जब यूक्रेन पर हमला हुआ तब मास्को में ही थे। यह बीते कई दशकों में किसी पाकिस्तानी प्रधानमंत्री की पहली रूस यात्रा थी।
चीन का कहना है कि वह यूक्रेन को लेकर रूस की 'सुरक्षा मामलों पर जायज चिंताओं को समझता है।' जब दुनिया के देश रूस से आर्थिक संबंध तोड़ रहे हैं और प्रतिबंध लगा रहे हैं उसी समय चीन ने रूस से गेंहू के आयात को मंजूरी दी है। पहले इस आयात पर यह कह कर रोक लगाई गई थी कि उनमें फफूंद और दूसरी समस्याएं हैं। ईरान का कहना है कि मौजूदा 'यूक्रेन समस्या की जड़ में नाटो के उकसावे हैं।' अमेरिका और ईरान के संबंधों का हाल दुनिया जानती ही है। अगर परमाणु करार पर दोबारा सहमति नहीं बनती है तो यह समझना मुश्किल नहीं है कि ईरान किस ओर जाएगा।
रूसी राष्ट्रपति भारत की तरफ से भी संयुक्त राष्ट्र में सहयोग की उम्मीद लगाए बैठे हैं। भारत के प्रधानमंत्री ने गुरुवार को पुतिन से फोन पर बात की और यूक्रेन में सैनिक अभियान बंद करने को कहा। हालांकि भारत ने रूस के इस कदम की ना तो निंदा की है ना ही भविष्य में संबंधों पर इसकी वजह से पड़ने वाले किसी असर की बात की है।
बेलारूस तो इस हमले में अपनी जमीन का इस्तेमाल होने दे रहा है और कजाखस्तान ने भी रूस का समर्थन किया है। मतलब साफ है कि पश्चिमी देश, अमेरिका और उनके सहयोगी जितना इसे एकतरफा मामला बता रहे हैं, यह उतना है नहीं। दूसरी तरफ पुतिन बहुत पहले से खुद को और देश को इन परिस्थितियों के लिए तैयार करते रहे हैं। ऐसे में उनका टीवी पर आकर परमाणु हथियार के इस्तेमाल की धमकी देना भी अब दुनिया को हैरान नहीं करता। ऐसा लगता है कि वो मान चुके हैं कि दुनिया में अब वो अकेले ही हैं।