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Written By DW
Last Updated : सोमवार, 14 अक्टूबर 2024 (09:13 IST)

आसियान के साथ कैसे गहरे हो सकते हैं भारत के रिश्ते

आसियान के साथ कैसे गहरे हो सकते हैं भारत के रिश्ते - How can India's relations with ASEAN be deepened
-चारु कार्तिकेय
 
एशिया और दुनिया के लिए अहम कई मु्द्दों पर चर्चा करने के लिए एशियाई नेताओं के साथ अमेरिका और रूस के शीर्ष राजनयिक दक्षिण पूर्वी एशियाई देश लाओस के वियनतियाने शहर में आसियान की बैठक में इकट्ठा हुए हैं। आसियान की बैठक में भारत का प्रतिनिधित्व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कर रहे हैं। गुरुवार 10 अक्टूबर को मोदी 21वें आसियान-भारत शिखर सम्मेलन में शामिल हुए और आसियान-भारत व्यापक रणनीतिक साझेदारी की प्रगति की समीक्षा की।
 
उन्होंने बताया कि पिछले 10 वर्षों में आसियान देशों के साथ भारत का व्यापार दोगुना होकर 130 अरब डॉलर से ज्यादा हो गया है। उन्होंने यह भी कहा आसियान देशों के बीच विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी फंड, डिजिटल फंड और ग्रीन फंड स्थापित किए गए हैं और भारत ने इनमें 2.50 अरब रुपयों से ज्यादा का योगदान किया है।
 
अमेरिका और रूस के विदेश मंत्री भी मौजूद
 
आसियान के साथ भारत के संबंधों को और गहरा करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने एक 10 सूत्रीय योजना साझा की। इनमें वर्ष 2025 को आसियान-भारत पर्यटन वर्ष के रूप में मनाना, आसियान-भारत महिला वैज्ञानिक सम्मेलन आयोजित करना, आसियान-भारत साइबर नीति वार्ता का एक नियमित तंत्र शुरू करना जैसे कदम शामिल हैं।
 
इस सम्मेलन में एक दुर्लभ स्थिति भी बनी है जब यूक्रेन युद्ध के बीच अमेरिका और रूस के विदेश मंत्री भी एक ही कमरे में मौजूद हैं। अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने आसियान के नेताओं से आग्रह किया कि वो यूक्रेन में रूस के 'वॉर ऑफ अग्रेशन' के खिलाफ दृढ़ता दिखाएं। ब्लिंकेन का कहना था कि यह युद्ध आसियान और संयुक्त राष्ट्र दोनों के सिद्धांतों के खिलाफ है।
 
अमेरिकी विदेश मंत्री की रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव से अलग से मिलने की संभावना नहीं जताई गई है। ब्लिंकेन ने सम्मेलन के दौरान चीन की भी आलोचना करते हुए कहा, 'हम दक्षिण और पूर्वी चीन सागरों में चीन के अवैध कदमों को लेकर चिंतित हैं, जो कि और ज्यादा खतरनाक होते जा रहे हैं।'
 
समाचार एजेंसी एएफपी के मुताबिक लावरोव ने बाद में पत्रकारों से बात करते एशिया में अमेरिका के कदमों को 'विनाशकारी' बताया और आरोप लगाया कि जापान के 'सैन्यीकरण' और दूसरे देशों को रूस और चीन के खिलाफ करने के पीछे अमेरिका का हाथ है।
 
इसी सम्मेलन में पहली बार जापान के नए प्रधानमंत्री शिगेरु इशिबा भी शामिल हुए और उन्होंने भी चीन का जिक्र किया। जापान के विदेश मंत्रालय ने बताया कि इशिबा चीन के प्रधानमंत्री ली चियांग से मिले और उस बैठक में 'जापान के इर्द-गिर्द के इलाकों में चीनी सैन्य गतिविधियों के बढ़ने' के बारे में अपनी 'गंभीर चिंताएं' दोहराईं।
 
दुनियाभर के संघर्षों का 'ग्लोबल साउथ' पर असर
 
ब्लिंकेन ने पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में भी भाग लिया, जिसमें भारत, अमेरिका, चीन, रूस, जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड समेत 18 देशों ने हिस्सा लिया। प्रधानमंत्री मोदी ने सम्मेलन में युद्ध के अपने विरोध को दोहराते हुए कहा, 'मैं बुद्ध की धरती से आता हूं, और मैंने बार-बार कहा है कि यह युद्ध का युग नहीं है। समस्याओं का समाधान रणभूमि से नहीं निकल सकता।'
 
उन्होंने यह भी कहा कि विश्व के अलग-अलग क्षेत्रों में चल रहे संघर्षों का सबसे नकारात्मक प्रभाव 'ग्लोबल साउथ' के देशों पर पड़ रहा है और सभी चाहते हैं कि 'चाहे यूरेशिया हो या पश्चिम एशिया, जल्द से जल्द शांति और स्थिरता की बहाली हो।'
 
उन्होंने इंडो-पैसिफिक का भी जिक्र किया और कहा कि 'एक मुक्त, खुला, समावेशी, समृद्ध और नियम-आधारित इंडो-पैसिफिक, पूरे क्षेत्र की शांति और प्रगति के लिए महत्वपूर्ण है।' दक्षिण चीन सागर के बारे में उन्होंने कहा कि उसकी शांति, सुरक्षा और स्थिरता पूरे इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के हित में है।