तानिया क्रेमर (येरूशलम) | हाजेम बालौशा, काहिरा से
7 अक्टूबर को रॉकेटों की आवाज से हमारी नींद खुली। आवाज भयानक थी, हालात भयावह थे और तब हमने खबर देखी, तो पता चला क्या हुआ है। उत्तरी गाजा में रहने वाली वारडा यूनिस ने एक टेक्स्ट मेसेज में डीडब्ल्यू को यह बताया। उन्होंने लिखा, "उस दिन से ही हमारा सबसे बड़ा डर शुरू हुआ और अब तक जारी है
पिछले साल दक्षिणी इजराइल पर हमास के हमले के बाद गाजा पट्टी में रहने वाले लोगों की जिंदगी पहले जैसी बिल्कुल नहीं रही। उस वक्त तक इजराइल और मिस्र का सीमा पर कड़ा नियंत्रण था। फिर 7 अक्टूबर को तड़के हमास के नेतृत्व में मिलिटेंट्स ने बड़ी संख्या में रॉकेट दागे और सीमा पर लगी बाड़ के पार जाकर दक्षिणी इजराइल में रहने वाले समुदायों और सैन्य ठिकानों पर काफी हिंसा की। हमले में करीब 1,200 लोग मारे गए। चरमपंथी 250 लोगों को बंधक बनाकर अपने साथ गाजा भी ले गए। इजराइल ी सेना ने उसी दिन जवाबी कार्रवाई की। समूचे फलस्तीनी इलाके में भारी बमबारी।
वारडा यूनिस, गाजा के उत्तरी हिस्से में बसे शेख रदवान इलाके की एक रिहायशी इमारत में 7वीं मंजिल पर रहती थीं। वह बताती हैं, "युद्ध शुरू होने के तीसरे दिन मैंने अपने सबसे अच्छे दोस्त को खो दिया। उसका घर बमबारी से पूरी तरह तबाह हो गया। मुझे याद है मैं किस कदर सदमे में थी। यह दिमागी तौर पर थकाने वाला था।"
गाजा को संघर्ष का अनुभव रहा है। साल 2007 में जब हमास ने फलस्तीनी अथॉरिटी से सत्ता अपने हाथ में ली थी, तब से उसके और इजराइल के बीच चार बार युद्ध हो चुके हैं। इसके बावजूद गाजा में कई लोगों ने मौजूदा युद्ध के इतना लंबा खिंचने या इतने विनाशक होने की उम्मीद नहीं की थी। गाजा के स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक, पिछले एक साल में यहां 41,400 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। इसी अवधि में 96,000 लोग घायल हुए और कम-से-कम 10,000 लोग लापता हैं। हालांकि, गाजा का स्वास्थ्य मंत्रालय अपने आंकड़ों में आम नागरिकों और लड़ाकों के बीच फर्क नहीं करता।
गाजा में सीमित सहायता: "हमने पेड़ों की पत्तियां और घास खाई"
युद्ध शुरू होने के कुछ ही हफ्तों में गाजा के भीतर जरूरी आपूर्ति खत्म होने लगी क्योंकि इजराइल ने पूरी तरह घेराबंदी की थी। कई महीनों तक संयुक्त राष्ट्र कहता रहा कि मानवाधिकार सहायता मुहैया कराने वाली एजेंसियां उत्तरी गाजा पर भुखमरी मंडराने की चेतावनी दे रही हैं। इजराइल ी प्रशासन ने इन दावों को खारिज किया।
वारडा यूनिस बताती हैं कि उस दौरान उन्हें ना आटा मिल रहा था, ना ब्रेड। वह बताती हैं, "हम ऐसी हालत में पहुंच गए, जहां हमने पेड़ों की पत्तियां और घास खाई। हमने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि ये सब खाया भी जा सकता है।" यूनिस याद करती हैं कि सहायता सामग्री की शुरुआती खेपें उत्तरी गाजा पहुंचीं, तो खाने और मदद की तलाश में इस कदर छीना-झपटी हुई कि हिंसा तक हो गई और मौतें भी हुईं। कुछ समय के लिए अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों ने हवा से राहत सामग्री गिराना शुरू किया क्योंकि ज्यादा क्रॉसिंग्स खोलकर मदद पहुंचाने के लिए इजराइल को राजी करने का अंतरराष्ट्रीय दबाव काम नहीं आया।
यूनिस बताती हैं, "मैं वहां जाती थी, जहां हर दिन बैलूनों से मदद गिराई जाती थी। कुछ मिल जाए, इसके लिए मैं दौड़ा करती थी लेकिन आखिर में मेरे हाथ कुछ नहीं लगता था क्योंकि कई ठग थे, जो हर चीज को नियंत्रित करते थे।" वह बताती हैं कि तब से मुकाबले अब खाद्य सामग्रियों की उपलब्धता बेहतर हुई है, लेकिन उनका डर और रोजाना मौत का अनुभव अब भी जारी है।
"ज्यादातर लोग गहरे सदमे में हैं"
पिछले 12 महीनों में यूनिस और उनके तीन किशोरवय बच्चे नौ बार दर-बदर हो चुके हैं। गाजा में कई और लोगों की तरह वह भी लगातार सुरक्षित जगह की तलाश में वक्त का हिसाब रखना भूल गई हैं। अक्टूबर 2023 के मध्य में इजराइली सेना ने उत्तरी गाजा के निवासियों को भागकर दक्षिण की ओर जाने का आदेश दिया। मिस्र से लगी गाजा की सीमा से करीब आठ किलोमीटर दूर है, खान यूनिस। यहां वारडा यूनिस के परिवार के लोग रहते हैं, जो उन्हें और उनके बच्चों को रहने की जगह दे सकते थे। इसके बावजूद यूनिस ने वहां ना जाने का फैसला किया।
अब उत्तरी गाजा नेतजारिम कॉरिडोर से पूरी तरह कट चुका है। यहां इजराइली सेना के चेकपॉइंट्स हैं। एन्क्लेव के 22 लाख लोगों में से ज्यादातर विस्थापित हो चुके हैं और दक्षिणी गाजा में भरे हुए हैं। मानवाधिकार एजेंसियों के मुताबिक, कई लोग सहायता और दान पर निर्भर हैं। अमजद शावा, पीएनजीओ के प्रमुख हैं और लंबे समय से मानवाधिकार के क्षेत्र में काम कर रहे हैं। पीएनजीओ, फलस्तीनी गैर-सरकारी संगठनों का प्रतिनिधित्व करने वाला एक समूह है। विस्थापित होने के बाद शावा ने मध्य गाजा में बसे एक शहर 'देर अल-बलाह' में नया दफ्तर खोला। यह मानवाधिकार संगठनों के लिए आपस में मिलने, इंटरनेट इस्तेमाल करने और एक छत के नीचे साथ मिलकर काम करने का बड़ा केंद्र है।
पिछले साल 13 अक्टूबर को जब इजराइली सेना ने जगह खाली करने का आदेश दिया, तो कई अन्य फलस्तीनियों की तरह शावा भी गाजा में अपना घर और दफ्तर नहीं छोड़ना चाहते थे। उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "मुझे छोड़ने में हिचक हो रही थी, लेकिन परिवार के दबाव में हमने जगह खाली कर दी। मैं उनसे कह रहा था कि ये कुछ ही घंटों की बात है और हम वापस आ जाएंगे। मैंने घर से कुछ भी साथ नहीं लिया, मुझे यकीन था कि हम जल्द ही लौट आएंगे। वो कुछ घंटे, कुछ दिन अब एक साल में तब्दील हो चुके हैं।"
अमजद शावा का अनुमान है कि करीब 10 लाख लोगों ने 'देर अल-बलाह' में शरण ली है। कई लोग तंबुओं या तारपोलिन और प्लास्टिक से बने कामचलाऊ आश्रयों में रह रहे हैं। बाकियों को या तो रहने के लिए कोई अपार्टमेंट मिल गया या वे रिश्तेदारों के साथ रह रहे हैं। शावा कहते हैं, "मैं ये चीज उनके चेहरों पर देख सकता हूं। ज्यादातर लोग गहरे सदमे में हैं। उन्होंने सबकुछ खो दिया है। कई लोगों ने अपने करीबियों को खोया है। अधिकतर लोगों ने आमदनी का अपना जरिया, अपना घर खो दिया।" शावा ने बताया कि कई लोग उत्तरी गाजा लौट जाना चाहते हैं, भले ही उनका घर खत्म हो चुका हो। हालांकि, यह इजराइल और हमास के बीच संघर्षविराम पर निर्भर करता है।
गाजा में राहत कार्य जोखिम भरा, लेकिन "थोड़ी उम्मीद जगाने" में मददगार
अमजद शावा ने कहा कि गाजा में मानवाधिकार कार्यकर्ता होना जोखिम भरा है। दूसरों की मदद करने की कोशिश के दौरान कई लोग मारे गए या अपने आसपास के कई अन्य लोगों की तरह उन्होंने अपने करीबियों को खो दिया। शावा बताते हैं, "हम इसका सामना नहीं कर सकते। और, बेहतरी की गुंजाइश ना दिख रही हो, तो कई बार आपको अपने इर्दगिर्द मौजूद लोगों के लिए थोड़ी उम्मीद पैदा करनी पड़ती है।"
गाजा वो जगह है जहां शावा पैदा हुए, बड़े हुए। उनके लिए अब वो जगह गुम हो चुकी है। गाजा के 60 फीसदी से ज्यादा घर, जो पहले के युद्धों में भी क्षतिग्रस्त हो चुके थे, मौजूदा संघर्ष में भी उन्हें नुकसान पहुंचने की खबर है। स्कूल, अस्पताल और दुकानें भी मलबों का रूप ले चुके हैं। संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि इजराइल ी हवाई बमबारी और जमीनी संघर्ष ने समूचे गाजा में करीब चार करोड़ टन मलबा पैदा किया है।
शावा कहते हैं कि हालांकि गाजा का पुनर्निर्माण किया जा सकता है और "आने वाला समय अहम है," लेकिन सबसे जरूरी है मौजूदा समय और "अपने आप को जिंदा रखना।" वह कहते हैं कि कई लोगों में अब अंतरराष्ट्रीय समुदाय से मदद मिलने की उम्मीद नहीं रही, "हम जो देख रहे हैं, वह इसलिए भी है कि इस युद्ध को खत्म करने या कम-से-कम आम लोगों की हिफाजत करने में अंतरराष्ट्रीय समुदाय नाकाम रहा है।"
जो खो दिया, उसकी तकलीफ में हैं परिवार
रिता अबु सिदो और उनके परिवार के पास कोई सुरक्षा नहीं है। 27 साल की सिदो के लिए युद्ध के शुरुआती महीने जैसे धुंधले हैं। अब वह अपनी बहन फराह के साथ मिस्र में रह रही हैं। यहां सिदो और फराह दोनों का इलाज हो रहा है। गाजा में वे गंभीर रूप से चोटिल हुए थे। अपने परिवार में बस यही दोनों बचे हैं। सिदो ने काहिरा से फोन पर डीडब्ल्यू को बताया, "31 अक्टूबर की आधी रात को बमबारी हुई। मैं जगी हुई थी और मैंने अपनी बहन फराह से कहा कि हम शायद मर जाएंगे। उसे सब याद है। मुझे तो बस यह सपने में दिखता है।"
सिदो की मां, 15 और 16 साल की दो छोटी बहनें, 13 साल का छोटा भाई सभी उस रात मारे गए। यह परिवार गाजा शहर के मध्य में बसे रिमल नाम के इलाके में रहता था। सिदो और उनकी बहन, जो कि फ्लाइट अटेंडेंट होने का प्रशिक्षण ले रही थीं, उस वक्त गाजा आए थे जब युद्ध शुरू हुआ। उन्हें गाजा के मुख्य शिफा अस्पताल ले जाया गया था और उनकी पहचान नहीं हो पाई थी। सिदो बताती हैं कि उन्हें पलमंनरी कंवल्जन हुआ था और शरीर थर्ड-डिग्री तक झुलस गया था। उनकी बहन का पेल्विस (पेट के निचले हिस्से और जांघों के ऊपरी हिस्से के बीच की हड्डी) टूट गया और रीढ़ की हड्डी में भी चोट आई। लड़ाई तेज होने पर और उनके चोट की गंभीरता को देखते हुए दोनों बहनों को खान यूनिस के यूरोपियन हॉस्पिटल भेज दिया गया।
सिदो बताती हैं, "जब मुझे पता चला कि मेरा समूचा परिवार खत्म हो गया है, तो मेरी मनोवैज्ञानिक स्थिति काफी खराब थी। अपने आसपास के माहौल और हालात को समझने में मुझे वक्त लगा। मैं आक्रामक और डरी हुई थी।" पारिवारिक दोस्तों की मदद से दोनों बहने रफाह इसी साल फरवरी में रफा क्रॉसिंग पार कर इलाज और पुनर्वास के लिए मिस्र आने में सफल रहीं। सिदो की आवाज भी चली गई थी। अब उनकी आवाज फिर से लौट रही है। उनकी बहन का भी मनोवैज्ञानिक इलाज चल रहा है। वह कहती हैं कि अपने परिवार को खोने की तकलीफ उन्हें ताउम्र तकलीफ देती रहेगी।
सिदो और फराह, दोनों अब मिस्र में सुरक्षित तो हैं लेकिन उनकी हालत अनिश्चित है। गाजा के ज्यादातर लोग जो मिस्र आने में सफल रहे, उनके पास यहां कोई कानूनी दर्जा नहीं है। वे रिश्तेदारों की मदद या दान और मदद पर निर्भर हैं। सिदो फिर कभी गाजा लौट सकेंगी या नहीं, अभी यह स्पष्ट नहीं है। राजनीतिक फैसलों पर उनका कोई बस नहीं है। वह कहती हैं, "गाजा लौटना किसी चुनौती जैसा लगता है। इसमें वक्त लगेगा।" सिदो उम्मीद जताती हैं, "अगली पीढ़ी के पास, हमारी पीढ़ी के पास सबकुछ फिर से खड़ा होने करने की इच्छाशक्ति जरूरी है।"