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Written By DW
Last Updated : सोमवार, 13 दिसंबर 2021 (08:54 IST)

जनरल रावत के हेलीकॉप्टर एक्सीडेंट की जांच पर क्यों है दुनिया की नजर

जनरल रावत के हेलीकॉप्टर एक्सीडेंट की जांच पर क्यों है दुनिया की नजर - eyes of the world on the investigation of General Bipin Rawat's helicopter accident
रिपोर्ट : स्वाति मिश्रा
 
भारत में जनरल बिपिन रावत के साथ जिस हेलीकॉप्टर का एक्सीडेंट हुआ, उसका क्या अतीत है? कितना सुरक्षित है सैनिक ट्रांसपोर्ट वाला यह हेलीकॉप्टर? इस हादसे के चलते भारतीय वायुसेना के सामने कौन सी चुनौतियां पैदा हुई हैं?
 
तारीख-31 दिसंबर, 2019। इस रोज भारतीय सेना के प्रमुख जनरल बिपिन रावत तीन साल का अपना कार्यकाल खत्म कर रहे थे। मगर इसके 1 दिन पहले ही घोषणा हुई कि जनरल बिपिन रावत रिटायर नहीं होंगे, बल्कि उन्हें देश का पहला चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ नियुक्त किया जाएगा। इस पद के सृजन की बातचीत लंबे समय से चल रही थी और जब फैसला हुआ तो जनरल रावत  इस पद पर नियुक्ति के प्रबल दावेदार थे।
 
इस दावेदारी का पहला प्रमुख कारण था, उनका लंबा अनुभव। उन्होंने पाकिस्तान और चीन से लगे भारत के दोनों प्रमुख मोर्चों पर सेवाएं दी थीं। खासकर पूर्वोत्तर और जम्मू कश्मीर में उग्रवाद पर उन्होंने कम-से-कम 10 साल लगातार काम किया था। एक पेशेवर फौजी और अफसर के रूप में उनका रिकॉर्ड बेदाग था। एक और वजह थी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी  के नेतृत्व वाली सरकार से जनरल रावत की वैचारिक करीबी।
 
जनरल रावत ने कभी सीधे कुछ नहीं कहा। लेकिन उनके जो बयान यदा-कदा चर्चा और आलोचना का कारण बनते रहते थे, वे इस वैचारिक करीबी का सबूत देते थे। इसीलिए किसी को आश्चर्य नहीं हुआ, जब जनरल रावत को रिटायर होते-होते न सिर्फ CDS बनाया गया, बल्कि CDS का कार्यकाल भी 65 वर्ष की आयु तक रखा गया। मतलब जनरल रावत को इस नए पद पर पूरे तीन साल मिलने वाले थे।
 
31 दिसंबर, 2021 को बतौर CDS जनरल रावत अपने दो साल पूरे करने वाले थे। मगर ऐसा हो पाता, इससे पहले ही उनका निधन हो गया। 8 दिसंबर को तमिलनाडु के कुन्नूर से एक हादसे की खबर आई। पता चला कि जनरल रावत और उनकी पत्नी मधुलिका रावत समेत 14 लोग भारतीय वायुसेना (IAF) के एक हेलीकॉप्टर से वेलिंगटन स्थित डिफेंस सर्विसेज स्टाफ कॉलेज जा रहे थे। रास्ते में हेलीकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त हुआ। इस हादसे में जनरल रावत समेत हेलीकॉप्टर पर सवार 13 लोगों की मौत हो गई।
 
दुर्घटनाग्रस्त होने वाला हेलीकॉप्टर कौन सा था?
 
दुर्घटनाग्रस्त होने वाला हेलीकॉप्टर IAF का  Mi-17 V5 हेलीकॉप्टर था। वायुसेना के मिग विमानों से जुड़े हादसों और उनमें मारे जाने वाले पायलटों की खबरें पहले भी आती रही हैं। मिग-21 विमान तो एक्सीडेंट के अपने लंबे अतीत के चलते इतने कुख्यात हैं कि पॉपुलर कल्चर का हिस्सा बन गए। राकेश ओमप्रकाश मेहरा की हिन्दी फिल्म- 'रंग दे बसंती' इसी चलन की देन थी। इस फिल्म की मुख्य थीम थी, मिग-21 विमान और उसका एक क्रैश।
 
किसने बनाया है यह हेलीकॉप्टर?
 
ऐसे में सवाल उठता है कि जनरल रावत जिस हेलीकॉप्टर में सफर कर रहे थे, वह कितना सुरक्षित था? सुरक्षा से जुड़े इस सवाल पर आने से पहले थोड़ी बात Mi-17 V5 की कर लेते हैं। यह एक मिलिटरी हेलीकॉप्टर है, जिसका मुख्य इस्तेमाल ट्रांसपोर्ट की जरूरतों से जुड़ा है। इसका इस्तेमाल सेना से जुड़े उपकरणों और सैनिकों को लाने-ले जाने में होता है। Mi-17 V5 की निर्माता कंपनी का नाम है, कजान हेलीकॉप्टर्स। रूस में एक जगह है, रिपब्लिक ऑफ ततारस्तान। इसकी राजधानी है, कजान। यहीं पर स्थित है कजान हेलीकॉप्टर्स कंपनी। दुनिया के सबसे बड़े हेलीकॉप्टर निर्माताओं में से एक। Mi-17 हेलीकॉप्टर का जो मिलिटरी संस्करण है, उसे बनाने वाली इकलौती कंपनी है यह।

 
रूस की सरकार से लिंक
 
कजान हेलीकॉप्टर्स, JSC रशियन हेलीकॉप्टर्स नाम की एक कंपनी की सहयोगी है। JSC रशियन हेलीकॉप्टर्स, जैसा कि नाम से ही जाहिर है, हेलीकॉप्टर के डिजाइन बनाने और उत्पादन करने से जुड़ी कंपनी है। यह कंपनी सैन्य और नागरिक, दोनों तरह के हेलीकॉप्टर बनाती है। इस JSC रशियन हेलीकॉप्टर्स कंपनी का पैरेंट ऑर्गनाइजेशन है, रॉस्टेक। जो रूसी सरकार की एक मल्टी-इंडस्ट्री कंपनी है। आप जानते होंगे, हथियार और मिलिटरी साजो-सामान बेचने में अमेरिका के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है रूस। उसके इस निर्यात साम्राज्य का बहुत अहम हिस्सा है रॉस्टेक।
 
किस तरह का हेलीकॉप्टर है Mi-17 V5?
 
निर्माता कंपनी के इस संक्षिप्त परिचय के बाद फिर लौटते हैं Mi-17 V5 हेलीकॉप्टर पर। यह ट्रांसपोर्ट श्रेणी में दुनिया के सबसे आधुनिक सैन्य हेलीकॉप्टरों में गिना जाता है। सामान ढोने की इसकी अधिकतम क्षमता 4 टन है। और, यह एक खेप में 36 सैनिकों को ले जा सकता है। इस हेलीकॉप्टर की अधिकतम गति 675 किलोमीटर प्रति घंटा है। कुछ मोडिफिकेशन किए जाने पर, मसलन- अतिरिक्त ईंधन टैंक लगाए जाने पर हेलीकॉप्टर की रेंज लगभग दोगुनी हो सकती है। सामान और सैनिकों की आवाजाही के सामान्य कामों से इतर यह हेलीकॉप्टर स्पेशलिस्ट कामों में भी इस्तेमाल लाया जाता है। जैसे- राहत और बचाव कार्य।
 
क्या खासियत है इस हेलीकॉप्टर में?
 
अब आते हैं  Mi-17 V5 के एक अहम इस्तेमाल पर। अपने अत्याधुनिक फीचर्स के अलावा यह हेलीकॉप्टर बेहद भरोसेमंद भी माना जाता है। इसकी वजह है, सुरक्षा से जुड़े खास इंतजाम। इसमें दो इंजन लगे होते हैं। उड़ान के दौरान अगर एक इंजन पूरी तरह बंद भी हो जाए, तब भी चिंता की बात नहीं। क्योंकि अपने दूसरे इंजन के सहारे यह हेलीकॉप्टर ना केवल सुरक्षित रूप से उड़ सकता है, बल्कि लैंड भी हो सकता है। अगर कोई जमीन से इसपर  मिसाइल दागे, तब भी इसमें लगा सेफ्टी सिस्टम इसे बचाने में मदद करेगा।  यही वजह है कि भारतीय वायुसेना कई मौकों पर प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति जैसे अति-विशिष्ट लोगों को लाने-ले जाने में यही हेलीकॉप्टर इस्तेमाल करती है।
 
भारत ने कब खरीदे ये हेलीकॉप्टर?
 
भारत ने दिसंबर 2008 में रशियन हेलीकॉप्टर्स को 80 हेलीकॉप्टरों की खरीद का ऑर्डर दिया था। बाद में यह संख्या और बढ़ाई गई। इन हेलीकॉप्टरों की शुरुआती खेप 2013 से IAF में शामिल होने लगी। रूस से की गई यह खरीद अपनी तरह का पहला सैन्य आयात नहीं थी। भारत कोल्ड वॉर के ही समय से रूसी हथियारों का बड़ा ग्राहक रहा है। हालिया सालों में खरीद की मात्रा घटी है, लेकिन भारत अब भी ढेर सारा रूसी सैन्य हार्डवेयर इस्तेमाल करता है। रूसी हेलीकॉप्टरों का भी भारत में लंबा अतीत रहा है। इस श्रेणी में एक बेहद सफल नाम है, Mi-8। सोवियत काल का यह हेलीकॉप्टर 1970 के दशक की शुरुआत से भारत को मिलने लगा। इसका भारत में नामकरण हुआ, प्रताप। मीडियम लिफ्ट हेलीकॉप्टर की श्रेणी में इसका बहुत बढ़िया प्रदर्शन था। भारत ने ऑपरेशन मेघदूत जैसे कई बड़े मिलिटरी ऑपरेशनों में  इसका इस्तेमाल किया।
 
रूसी सैन्य उपकरणों का बड़ा ग्राहक है भारत
 
Mi प्रताप पर आधारित है Mi-17। इस हेलीकॉप्टर के कई संस्करण है। इनमें से ही एक मॉडल है, V5। इनसे इतर, भारतीय नौसेना भी रूसी हेलीकॉप्टर कामोव Ka-31 का इस्तेमाल करती है। भारत ने रूस के प्रतिद्वंद्वी अमेरिका से भी ट्रांसपोर्ट हेलीकॉप्टर खरीदे हैं, मिसाल के लिए बोइंग CH-47 चिनूक। लेकिन सोवियत और रूसी हेलीकॉप्टर्स का लंबा अनुभव रखने वाली भारतीय सेना रूस से कम-से-कम एक और हेलीकॉप्टर खरीदना चाहती है - कामोव 226 T। भारत ने अपने बूते भी ट्रांसपोर्ट हेलीकॉप्टर बनाए हैं। जैसे, ध्रुव (Advanced Light Helicopter)। लेकिन Mi17 V5 जैसे बड़े और शक्तिशाली हेलीकॉप्टर के लिए फिलहाल भारत आयात पर निर्भर है।
 
कुछ पुराने हादसे
 
आज की तारीख में IAF के पास मौजूद सबसे भरोसेमंद ट्रांसपोर्ट उपकरणों में है Mi-17 V5। इससे हम समझ सकते हैं कि क्यों भारत ने अपने सबसे वरिष्ठ सैन्य अधिकारी को लाने-ले जाने के लिए Mi-17 V5 का इस्तेमाल किया होगा। मगर हादसे के चलते इस हेलीकॉप्टर को लेकर भारत में एक बहस छिड़ गई है। सवाल उठ रहे हैं कि क्या यह हेलीकॉप्टर वाकई उतना सक्षम है जितना बताया जाता है। इसके सुरक्षा रेकॉर्ड पर सवाल उठाने वाले जानकार कुछ हादसों की तरफ ध्यान दिलाते हैं, जिनपर यहां गौर किया जाना सही रहेगा।
 
1. बडगाम क्रैश:यह घटना है 27 फरवरी, 2019 की। जम्मू-कश्मीर में बडगाम नाम की एक जगह है। इस रोज एक Mi-17 V5 हेलीकॉप्टर ने राजधानी श्रीनगर से उड़ान भरी। कुछ ही मिनटों बाद इस हेलीकॉप्टर के क्रैश होने की खबर आई। इसमें सवार सभी छह लोग मारे गए। साथ ही, हादसे की चपेट में आकर जमीन पर मौजूद एक आदमी की भी जान गई। क्रैश को लेकर शुरुआती शक गया पाकिस्तान पर। लेकिन बाद में पता चला कि इसके क्रैश होने की वजह भारत का अपना ही एयर डिफेंस सिस्टम था। हुआ यह था कि पाकिस्तान के साथ तनाव के चलते इंडियन फोर्सेज हाई-अलर्ट पर थीं। ऐसे में भारतीय डिफेंस सिस्टम ने अपने ही Mi-17 V5 को दुश्मन का समझकर मार गिराया।
 
2. उत्तराखंड हादसा:यह घटना है 3 अप्रैल, 2018 की। केदारनाथ में निर्माण सामग्री पहुंचाने का काम चल रहा था। इसी दौरान लैंडिंग की कोशिश करते हुए एक Mi-17 V5 हेलीकॉप्टर केदारनाथ में क्रैश हो गया। हादसे के समय हेलीकॉप्टर में छह लोग सवार थे, लेकिन अच्छी बात रही कि सभी बच गए।
 
3. अरुणाचल क्रैश: 6 अक्टूबर, 2017 की तारीख थी। भारतीय वायुसेना का एक Mi-17 V5 हेलीकॉप्टर अरुणाचल प्रदेश स्थित भारत-चीन सीमा के नजदीक क्रैश हो गया। हादसे के समय हेलीकॉप्टर में सवार सभी सात लोगों की मौत हो गई। इससे पहले दिसंबर 2010 में भी तवांग के ही पास एक और Mi-17 V5 हेलीकॉप्टर क्रैश हुआ था, जिसमें 12 भारतीय सुरक्षा बलों की मौत हो गई थी।
 
4. गुजरात क्रैश: 30 अगस्त, 2012 को गुजरात के जामनगर में हुए इस हादसे में भारतीय वायुसेना के दो Mi-17 V5 हेलीकॉप्टर बीच हवा आपस में टकरा गए। ये दोनों हेलीकॉप्टर प्रशिक्षण कार्यक्रम में हिस्सेदारी कर रहे थे। घटना के चलते दोनों हेलीकॉप्टरों में सवार वायुसेना के 9 कर्मी मारे गए।
 
ऊंचे पहाड़ी इलाकों में हेलीकॉप्टर उड़ाना चुनौतीपूर्ण
 
इन हादसों पर गौर करें, तो तीन प्रमुख थीम नजर आती हैं। पहली, गुजरात क्रैश। दूसरी, उत्तराखंड और अरुणाचल हादसा। और तीसरी, बडगाम की घटना। गुजरात हादसे में सामंजस्य की कमी और मानवीय भूल का पहलू दिखता है। उत्तराखंड और अरुणाचल की घटनाएं ऊंचे पहाड़ी इलाकों से जुड़ी हैं। हमें इन जगहों की भौगोलिक स्थिति देखनी होगी। ऊंचाई पर होने के चलते यहां हवा पतली होती है। ऊपर से मौसम भी बहुत तेजी से बदलता रहता है। ऐसी जगह पर हेलीकॉप्टर उड़ाना प्रशिक्षित से प्रशिक्षित पायलट के लिए चुनौतीपूर्ण काम है।
 
जहां तक केदारनाथ घटना की बात है, तो यह हादसा लैंडिंग के दौरान हुआ। नीचे उतरते समय हेलीकॉप्टर का एक हिस्सा केदारनाथ मंदिर परिसर की दीवार से टकरा गया। अगर आपने केदारनाथ मंदिर की तस्वीरें देखी हों,तो जानते होंगे कि यह बेहद संकरी जगह पर स्थित है। लैंडिंग के लिए बहुत कम जगह है यहां। अरुणाचल में भी जिस जगह हादसा हुआ, वह पहाड़ी इलाका है। यहां भी मौसम पल-पल बदलता रहता है। खराब मौसम में बेहद ऊंचाई वाले इलाकों पर हेलीकॉप्टर उड़ाने के अपने जोखिम हैं। इसके चलते पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता कि हादसे की वजह हेलीकॉप्टर से जुड़ी कोई तकनीकी खामी थी।
 
IAF ने किया जांच का ऐलान
 
अब बात बडगाम क्रैश की। यह भारत के पॉपुलर कल्चर में Mi-17 V5 के क्रैश का सबसे चर्चित हादसा है। मगर इस हादसे की वजह स्पष्ट है। इसके लिए हेलीकॉप्टर को कतई दोष नहीं दिया जा सकता है। न ही यह घटना हेलीकॉप्टर की तकनीकी दक्षता या क्षमता से जुड़ी है। जनरल रावत की जिस हादसे में मौत हुई, उसका ब्योरा अभी नहीं पता। लेकिन जहां हादसा हुआ, वह नीलगिरी में है। पहाड़ी इलाका है। यहां भी मौसम तेजी से बदलता रहता है। हादसे के समय वहां धुंध भी थी। अभी इतना ही पता है। हादसा क्यों हुआ, कैसे हुआ, इससे जुड़े ब्योरे शायद IAF की जांच में पता चलें।
 
बचाव कार्य में शानदार रेकॉर्ड
 
इस मामले में एक और जरूरी पक्ष है, भारत द्वारा Mi-17 V5 के इस्तेमाल का स्केल। भारत बड़ी संख्या में इन हेलीकॉप्टरों का इस्तेमाल करता है। सैनिक ड्यूटी और वीआईपी ड्यूटी के अलावा मॉनसून सीजन के दौरान कई बार राहत-बचाव कार्य की जरूरत पड़ती है। देश के अलग-अलग इलाकों, फिर चाहे वो उत्तराखंड का हिस्सा हो या केरल में जरूरत पड़े, भारतीय वायुसेना प्रमुखता से इस हेलीकॉप्टर को इस्तेमाल करती है। 2013 में सबसे पहले केदारनाथ आपदा के समय राहत-बचाव कार्य में लगाए जाने से अब तक यह लगातार इस्तेमाल होता रहा है। इसने मुश्किल स्थितियों में फंसे कई भारतीयों की जानें बचाई हैं। अगर आप इस इस्तेमाल के स्केल को देखते हैं, तो यह एक शानदार रेकॉर्ड है। इसलिए अभी इस निष्कर्ष पर पहुंचने का पर्याप्त आधार नहीं है कि हेलीकॉप्टर सुरक्षित नहीं है।
 
IAF के लिए चुनौती
 
भारत के सबसे बड़े सैन्य अधिकारी की इस तरह हुई मौत के चलते भारतीय वायुसेना के लिए सोल सर्चिंग की स्थिति पैदा हो गई है। अब IAF पर अपने उपकरणों, पायलटों और रखरखाव की  कुशलता को साबित करने का दबाव होगा। वह कितने अच्छे से यह कर पाता है, यह बात दो चीजों पर खासतौर से निर्भर करेगी। एक, जांच कितनी विस्तृत और ईमानदार होती है। दूसरा, इससे मिले सबक को IAF कितनी अच्छी तरह अपने प्रोटोकॉल में शामिल करता है। IAF इस जांच से जुड़ी जानकारी सार्वजनिक करने में कितनी पारदर्शिता बरतता है, यह भी अहम होगा। जांच रिपोर्ट से ही साबित हो पाएगा कि IAF इस हेलीकॉप्टर पर जितना भरोसा करता है, इसे जितना डिपेंडेबल प्रचारित किया जाता है, वह कितना सही है।
 
जांच पर दुनिया की भी होगी नजर
 
इस जांच पर दुनिया की भी नजर रहेगी। दुनिया के दर्जनों देश यह हेलीकॉप्टर या इसके किसी संस्करण का इस्तेमाल कर रहे हैं। अगर किसी तकनीकी खामी के चलते भारत में हादसा हो सकता है, तो उनके लिए भी किसी अनहोनी की आशंका रहेगी। ऐसे में वह भी जानना चाहेंगे कि 8 दिसंबर की दोपहर नीलगिरी की पहाड़ियों में ऐसा क्या हुआ जिसके चलते जनरल रावत को ले रहा हेलीकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त हुआ।
 
रूस भी इस जांच में दिलचस्पी रखेगा क्योंकि यह उन्हीं का बनाया हेलीकॉप्टर है। वह दुनिया के सबसे बड़े हथियार निर्यातक देशों में से है। Mi-17 सीरीज उसके बेस्ट-सेलिंग हेलीकॉप्टरों में से एक है। इससे जुड़े हादसे में भारत जैसे मित्र और ग्राहक देश के सबसे बड़े सैन्य अधिकारी का मारा जाना कोई छोटी बात नहीं। इसीलिए रूस भी जानना चाहेगा कि IAF ने अपनी जांच में इस हादसे का जिम्मेदार किसे माना।
 
ये सारी चीजें भविष्य की बात हैं। मगर फिलवक्त एक चीज तय लगती है। जनरल रावत की अप्रत्याशित मौत ने भारत के आगे एक बड़ा गंभीर सवाल खड़ा कर दिया है। सवाल यह कि आने वाले समय में अति विशिष्ट पद पर बैठे लोगों, जैसे राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और CDS को लाने-ले जाने के लिए किस तरह की व्यवस्था की जाएगी।
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