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Written By DW
Last Updated : शुक्रवार, 24 नवंबर 2023 (09:16 IST)

बच्चों में कम होता जा रहा है एंटीबायोटिक दवाओं का असर

बच्चों में कम होता जा रहा है एंटीबायोटिक दवाओं का असर - effect of antibiotics is decreasing in children
बच्चों को होने वाले कई प्रकार के संक्रमण का इलाज करने में एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल होता है लेकिन ये दवाएं तेजी से बेअसर हो रही हैं। यह एक खतरनाक स्थिति की ओर इशारा करता है। जब बच्चों में कान का संक्रमण हो या वह बैक्टीरियल इंफेक्शन के चलते सेप्सिस या मेनिनजाइटिस से जूझ रहे हों तो उन्हें अक्सर एंटीबायोटिक दवा दी जाती है। लेकिन सिडनी विश्वविद्यालय के एक ताजा रिसर्च में पता चला है कि टेस्ट की गई ज्यादातर एंटीबोयोटिक 50 फीसदी से कम असरदार रह गई हैं।
 
इसकी वजह बताई जा रही है शरीर में एंटीबायोटिक प्रतिरोधक क्षमता का विकास, जिसका मतलब है कि इन दवाओं का अब बैक्टीरिया पर कोई खास प्रभाव नहीं होता। पिछले 15 सालों के दौरान दुनियाभर में एंटीबायोटिक प्रतिरोधक क्षमता बढ़ी है। हालांकि नए और ज्यादा असरदार इलाज अभी तक सामने नहीं आए हैं।
 
इंसानी शरीर में एंटीबायोटिक प्रतिरोध खासतौर पर शिशुओं और छोटे बच्चों के लिए बेहद खतरनाक है। जब तक उनकी अंदरूनी प्रतिरोधक क्षमता पूरी तरह विकसित नहीं होती, तब तक वह खुद संक्रमण का सामनानहीं कर सकते।
 
एंटीबायोटिक का इस्तेमाल करते समय, ना सिर्फ यह जरूरी है कि सही दवा का प्रयोग हो बल्कि सही खुराक भी बेहद अहम है। लेकिन जब बात बच्चों की हो तो यह कहना ज्यादा आसान है और करना मुश्किल, क्योंकि वह दवा सिरप के तौर पर ही ले पाते हैं। आखिरकार एक बच्चे को चम्मच भर मीठा पदार्थ पिलाना आसान है, एक सख्त गोली खिलाने के मुकाबले।
 
गंभीर बैक्टीरियल इंफेक्शन के मामलों में एंटीबायोटिक का इस्तेमालपहली पसंद होता है। इनका असर 48 घंटे के भीतर दिखता है, यह बैक्टीरिया को शरीर में बढ़ने से रोकती हैं और उनके सेल को नष्ट करके बीमारी खत्म करती हैं। ज्यादातर बच्चे, कभी ना कभी कान में संक्रमण झेलते ही हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि पूरी दुनिया के बच्चों में कान का संक्रमण एक बेहद आम बीमारी है।
 
कान के बीच के हिस्से में हुए संक्रमण के साथ म्यूकस मेंब्रेन में सूजन आती है, खासकर कान के नाजुक हिस्सों में या फिर ऑडिटरी ट्यूब में जो गले की ओर जाती हैं। जब इन ट्यूब में रुकावट पैदा होती है और बलगम निकल नहीं पाता तो कान के पर्दे पर दबाव बनता है, जो छोटे बच्चों के लिए बहुत दर्दभरा हो सकता है। इस दर्द में एंटीबायोटिक जल्द आराम दे सकती हैं।
 
क्या एंटीबायोटिक के विकल्प हैं
 
ज्यादातर जानकार यह मानते हैं कि फिलहाल एंटीबायोटिक के कोई भरोसेमंद विकल्प मौजूद नहींहैं। संक्रमण की कुछ किस्मों का इलाज, एंटीमाइक्रोबियल पौधों और घरेलू उपायों से भी किया जाता है। जैसे कान के संक्रमण से निपटने के लिए सोते समय प्याज रखकर सोना एक परंपरागत घरेलू उपाय है।
 
हालांकि एंटीबायोटिक अब भी बेहतर और सबसे ज्यादा भरोसेमंद इलाज हैं। उदाहरण के लिए, सेप्सिस या खून में संक्रमण का तुरंत इलाज बेहद जरूरी है। मरीज को अगर बिना इलाज के छोड़ दिया जाए तो सेप्टिक शॉक लग सकता है, जिससे शरीर के अंग फेल होने और मौत का खतरा है।
 
सेप्सिस किसी बाहरी जख्म से हो सकता है, जब माइक्रोब खून में या शरीर के लिंफेटिक सिस्टम में पहुंच जाएं। वहां से, वह पूरे शरीर में फैल सकते हैं अगर उन्हें रोका ना जाए। इससे मेडिकल इमरजेंसी कि स्थिति पैदा हो सकत है। हालांकि ऐसे मामले बहुत दुर्लभ हैं।
 
रोग की पहचान जरूरी
 
एंटीबायोटिक से केवलबैक्टीरियल इंफेक्शन का इलाज हो सकता है, वायरल संक्रमण का नहीं। यही वजह है कि उचित चिकित्सीय मदद के लिए रोग की सही पहचान बहुत जरूरी कदम है। दक्षिण-पूर्व एशिया और एशिया पैसिफिक इलाकों में स्थिति बेहद गंभीर है। हर साल, इंडोनेशिया और फिलीपींस में हजारों बच्चों की मौत होती है, क्योंकि उन्हें यूरोप की तरह एंटीबायोटिक दवाएं नहीं मिल पातीं, या फिर जो दवाएं मुहैया हैं, वह बेअसर हैं।
 
साफ है कि इन परिस्थितियों में संक्रमण की पहचान कितनी ज्यादा अहम हो जाती है। रोगाणुओं को सही तरीके से पहचाना जाना चाहिए ताकि यह पता चल सके कि इलाज का उन पर कितना असर होगा और एक निश्चित दायरे में ही एंटीबायोटिक दवाओं का प्रयोग किया जाए।
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