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Written By DW
Last Updated : सोमवार, 19 अप्रैल 2021 (10:36 IST)

कोरोना पीड़ितों में बढ़ रहा है डिप्रेशन और पैनिक अटैक का खतरा

Corona epidemic | कोरोना पीड़ितों में बढ़ रहा है डिप्रेशन और पैनिक अटैक का खतरा
रिपोर्ट : कार्ला ब्लाइकर
 
कोविड 19 का असर सिर्फ शारीरिक तौर पर ही नहीं पड़ता। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के एक नए अध्ययन में पता चला है यह संक्रमण लोगों को मानसिक तौर भी बीमार बना सकता है। लोग डिप्रेशन का शिकार हो सकते हैं।
 
सांस लेने में तकलीफ, स्वाद और सुगंध का पता न चलना और शारीरिक कमजोरी। ये कुछ ऐसे लक्षण हैं जो पिछले एक साल में कोरोनावायरस से संक्रमित हुए लोगों में देखे गए हैं। जर्मनी के कोलोन शहर की रहने वाली डॉक्टर कैरोलिन ने डॉयचे वेले को बताया कि वह अपनी उम्र से बड़े करीबियोंऔर ऐसे अन्य लोगों को लेकर चिंतित हैं जिनके ऊपर इस महामारी का ज्यादा असर पड़ सकता है। 39 वर्षीय कैरोलिन कहती हैं कि मैंने सोचा कि मैं जवान हूं। मुझे पहले से कोई समस्या नहीं है। मैं एथलेटिक हूं। अगर मैं संक्रमित भी होती हूं, तो शायद मेरे साथ ज्यादा बुरा नहीं होगा। मैं निजी तौर पर कोरोना संक्रमण को लेकर डरी हुई नहीं थी।
 
जनवरी में कैरोलिन कोरोनावायरस की चपेट में आ गईं। शुरुआत में गंभीर लक्षण नहीं दिखे। बस हल्का बुखार, सिरदर्द और खांसी थी। लेकिन बाद में जो लक्षण उभर कर सामने आए, उसकी उम्मीद कैरोलिन को उम्मीद नहीं थी। वे लक्षण थे पैनिक अटैक और डिप्रेशन।
 
तीन में एक रोगी मानसिक बीमारी का शिकार
 
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी का एक अध्ययन 'द लैंसेट सकाइट्री' जर्नल में प्रकाशित हुआ है। इस अध्ययन में पाया गया कि कैरोलिन अकेली नहीं हैं जो कोरोना की वजह से मानसिक तौर पर बीमार हुईं। शोधकर्ताओं ने 2,36,000 से अधिक कोरोना से पीड़ित रोगियों के इलेक्ट्रॉनिक स्वास्थ्य रिकॉर्ड्स की जांच की। इनमें ज्यादातर रोगी अमेरिका के थे। इस जांच में यह बात सामने आई कि कोरोनावायरस से संक्रमित होने के छह महीने के भीतर 34 प्रतिशत रोगियों में किसी न किसी तरह की मानसिक बीमारी दिखी। हालांकि, स्ट्रोक और डिमेंशिया के मामले काफी कम देखे गए। 17 प्रतिशत कोरोना रोगियों में चिंता से जुड़ी परेशानी देखी गई। वहीं, 14 प्रतिशत में मनोदशा से जुड़ी परेशानी देखी गई, जैसे कि डिप्रेशन।
 
ऑक्सफोर्ड के शोधकर्ताओं ने मरीजों के दो समूहों पर अध्ययन किया। इनमें एक समूह इन्फ्लूएंजा वालों का था और दूसरा ऐसे रोगियों का जिन्हें सांस लेने से जुड़ी परेशानी (कोरोना को छोड़कर) थी। यह इसलिए था ताकि पक्का किया जा सके कि इन लोगों के बीच कोरोना महामारी से पीड़ित लोगों जैसी समस्याएं नहीं हैं।
 
ऑक्सफोर्ड के पॉल हैरिसन ने डॉयचे वेले को बताया कि हमारा डाटा समस्या के स्तर पर ध्यान आकर्षित करता है। यह इस विचार को दिखाता है कि कोरोना का असर लोगों पर काफी ज्यादा होता है, भले ही वे अस्पताल में भर्ती हों या नहीं। हैरिसन इस अध्ययन के मुख्य लेखक हैं।
 
कोरोनावायरस से संक्रमित होने के बावजूद कैरोलिन कभी अस्पताल में भर्ती नहीं हुई। लेकिन वह कोरोना संक्रमण के दौरान और बाद में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर गंभीर रूप से जूझती रही। इसकी शुरुआत कोरोना संक्रमण के जांच के समय से ही हो गई थी। वह अकेले कोलोन में अंधेरे पार्किंग गैरेज में स्थित एक परीक्षण केंद्र में गईं थी। वह एहतियात के तौर पर मरीजों के साथ काम करने से पहले टेस्ट करा लेना चाहती थीं। उन्हें पूरी उम्मीद थी कि उनकी टेस्ट रिपोर्ट निगेटिव आएगी। लेकिन जब उनका रिजल्ट पॉजिटिव आया, तो वह हैरान रह गईं।
 
कैरोलिन कहती हैं कि यह और बदतर हो गया। मेरे शारीरिक लक्षण बुरे नहीं थे। मैं मानसिक तौर पर परेशानियों का सामना कर रही थी। अपने परिवार में सिर्फ कैरोलिन ही कोरोनावायरस से संक्रमित हुई थीं। इसलिए, उन्हें अपने पति और बच्चों से पूरी तरह अलग रहना था। वह बिना दवा के सो नहीं पा रही थीं। उन्होंने कहा कि वह पहले की तुलना में ज्यादा भयभीत और उदास हो गई थीं।
 
कैरोलिन कहती हैं कि मैं सोचती रहती थी कि तुम उस बीमारी से पीड़ित हो जिससे लोग मर रहे हैं। मैं अचानक रात में उठ जाती थी और डर जाती थी। लगता था कि मुझे स्ट्रोक आ रहा है। मैं हिल नहीं सकती थी। सपने और वास्तविक दुनिया के बीच फंस गई थी। मैं पहले कभी इस तरह से भयभीत नहीं हुई थी।
 
अमेरिका के वर्जिनिया में रहने वाले 29 साल के लॉरेंस भी कोरोना महामारी से पहले मानसिक तौर पर बीमार नहीं हुए थे। अमेरिका में जब कोरोना तेजी से फैलने लगा, तो लॉरेंस भी चिंतित रहने लगे। उन्होंने डॉयचे वेले को बताया कि उस स्थिति तक तो उसे मैनेज किया जा सकता था। इसके बाद कोरोना की वजह से उनकी सास की मौत हो गई। दिसंबर में लॉरेंस और उनकी पत्नी कोरोनावायरस से संक्रमित हो गए। इससे उनके फेफड़ों पर असर पड़ा।
 
लॉरेंस कहते हैं कि इसके बाद से मुझे अस्थमा है। जब मुझे सांस लेने में समस्या आनी शुरू हुई, तो मुझे पैनिक अटैक आने लगे। ऐसा मुझे पहले कभी नहीं हुआ था। लॉरेंस हर समय चिंतित रहते हैं और अपने काम पर भी ध्यान नहीं दे पाते। करीब एक महीने के संघर्ष के बाद लॉरेंस आखिरकार अपना इलाज कराने डॉक्टर के पास पहुंचे। वे कहते हैं कि मैं नहीं कह सकता कि यह सीधे तौर पर कोरोना से जुड़ा हुआ था या नहीं लेकिन मैं काफी ज्यादा चिंतित रहने लगा था और आखिरकार मुझे डॉक्टर की मदद लेनी पड़ी।
 
दूसरी ओर, कैरोलिन को अपनी बहन से मदद मिली। कैरोलिन की बहन मनोचिकित्सक हैं। हालांकि, कैरोलिन भी अपनी चिंता की सही वजह का पता नहीं लगा सकीं। वह कहती हैं कि मैं पक्के तौर पर नहीं बता सकती कि यह सामान्य स्थिति की वजह से हुआ या क्वारंटाइन की वजह से। यह भी नहीं पता कि मेरा इलाज कैसे हुआ। या क्या यह बीमारी के कारण ही हुआ था।
 
कोरोना को गंभीरता से लेने के अन्य कारण
 
प्रोफेसर हैरिसन कहते हैं कि दोनों बातें संभव हो सकती हैं। आपको कोरोना संक्रमण है इस तनाव से निपटना, अलग रहना, नौकरी, अपना भविष्य और अपने स्वास्थ्य के बारे में चिंता करना। इन सब वजहों से चिंता और डिप्रेशन हो सकता है।
 
हैरिसन के अन्य निष्कर्षों से कुछ हद तक इस बात की पुष्टि होती है कि कोरोनावायरस से संक्रमित रोगियों में मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति के लिए ज्यादातर बाहरी परिस्थितियां जिम्मेदार हैं। हल्के लक्षण और गंभीर लक्षण, दोनों तरह के रोगियों के बीच चिंता और डिप्रेशन की समस्या लगभग एक समान संख्या में देखी गई।
 
हैरिसन कहते हैं कि मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले गंभीर असर को देखते हुए अब कोरोना से और अधिक सतर्क रहने की जरूरत है। हैरिसन अनुरोध करते हैं कि सभी लोग वैक्सीन लें। मेरे हिसाब से कोरोना की तुलना में वैक्सीन में खतरा कम है। और अगर आपको अलग रहने को कहा जाता है, तो मैं आपको सलाह दूंगा कि आप वही करें जो आपसे कहा जाता है। हम तभी बेहतर होंगे।
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