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Last Updated : सोमवार, 1 अक्टूबर 2018 (11:34 IST)

कतर में कंगाल विदेशी मजदूर

कतर में कंगाल विदेशी मजदूर - Condition of foreign laborers in Qatar
भारत, नेपाल और फिलीपींस के कई मजदूर कतर में बुरी तरह कर्जे में डूबे हैं। एमनेस्टी इंटरनेशल के मुताबिक 78 मजदूरों को बीते ढाई साल से तनख्वाह की एक कौड़ी तक नहीं मिली है। 2022 के फुटबॉल वर्ल्ड कप का फाइनल कतर के लुसैल शहर में होगा। शहर को चमकाने के लिए कतर 45 अरब डॉलर खर्च कर रहा है, लेकिन इस खर्चे में से कई मजदूरों को कुछ भी नहीं मिला है।


मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल के मुताबिक कतर ने कम से कम 78 विदेशी मजदूरों को फरवरी 2016 से तनख्वाह नहीं दी है। पैसे के अभाव में इन मजदूरों ने पैसा उधार लिया और अब हर एक पर औसतन दो हजार डॉलर का कर्ज चढ़ा हुआ है। यह उनकी कई महीनों की तनख्वाह के बराबर है। 20 महीने से तनख्वाह के लिए तरसने वालों में नेपाल, भारत और फिलीपींस के मजदूर हैं।

एमनेस्टी इंटरनेशनल के मुताबिक, मर्करी मीना नाम की एक ठेका कंपनी ने 'मजदूरों को हजारों डॉलर की मजदूरी और काम से जुड़े फायदे नहीं दिए, उन्हें असहाय और कौड़ी का मोहताज बना दिया।' कतर पर मजदूरों के शोषण के आरोप पहले भी लगते रहे हैं, लेकिन इस पैमाने पर तनख्वाह को रोके रखने का आरोप पहली बार सामने आया है। एमनेस्टी के आरोप के बाद फीफा से भी सवाल पूछे जा रहे हैं।

फीफा ने एमनेस्टी पर 'गुमराह' करने का आरोप लगाया है। फीफा के प्रवक्ता ने समाचार एजेंसी एएफपी से कहा कि तनख्वाह न पाने वाले मजदूर 2022 के वर्ल्ड कप से नहीं जुड़े हैं, 'हमें खेद है कि एमनेस्टी ने अपना बयान जारी करने के लिए इस तरह के गुमराह करने वाले तरीके का इस्तेमाल किया।' पाइपिंग फोरमैन का काम करने वाले फिलीपींस के कामगार एर्नेस्टो ने एमनेस्टी को बताया कि वे बीते दो साल से कतर में काम कर रहे हैं और बुरी तरह कर्ज में डूबे हैं। नेपाल से आए कुछ मजदूरों के मुताबिक घर पैसा भेजने के बजाए, उन्हें घर से पैसा मंगाना पड़ा, नेपाल में जमीन बेचनी पड़ी और बच्चों का स्कूल तक बंद करना पड़ा।

एमनेस्टी के मुताबिक, मर्करी मीना ने कतर के कफाला सिस्टम का फायदा उठाया। इस सिस्टम के तहत कामगारों को नौकरी बदलने या देश छोड़ने के लिए अपने बॉस की अनुमति लेनी पड़ती है। एमनेस्टी इंटरनेशनल का दावा है कि तनख्वाह न मिलने से परेशान कुछ मजदूरों ने अपने देश वापस लौटने की इच्छा जताई, तो उनसे कहा गया कि वापसी का खर्च उन्हें खुद उठाना होगा। कतर को 2010 में फीफा ने वर्ल्ड कप की मेजबानी सौंपी थीं। कतर पर मेजबानी पाने के लिए कई हथकंडे अपनाने का आरोप भी है।

खोजी पत्रकारों के मुताबिक, कतर ने मेजबानी की दौड़ में शामिल दूसरे देशों को बदनाम करने के लिए मीडिया में नेगेटिव रिपोर्टें भी प्रकाशित करवाईं। कतर हर बार ऐसे आरोपों से इनकार करता है। अप्रैल 2018 में कतर की राजधानी दोहा में अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन का दफ्तर भी खोला गया। इसका मकसद कतर में श्रम सुधार करना था, लेकिन इसके बावजूद कामगारों के शोषण की नई रिपोर्टें सामने आ रही हैं। इनकी वजह से फीफा और कतर पर दबाव बढ़ रहा है।

कतर ने इसी महीने ऐलान किया था कि वह कफाला सिस्टम से एक्जिट परमिट की शर्त हटाएगा, लेकिन यह कब से लागू होगा, इसका कोई ऐलान नहीं किया गया। कतर में वर्ल्ड कप की तैयारियों से सीधे और अप्रत्यक्ष रूप से करीब 20 लाख विदेशी कामगार जुड़े हैं। (मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच ने मानवाधिकारों के हनन के लिए एक बार फिर कतर की आलोचना की है। फुटबॉल विश्व कप की मेजबानी करने जा रहे कतर में विदेशी मजदूरों की दयनीय हालत है।)
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