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Written By DW
Last Updated : शुक्रवार, 22 मार्च 2024 (09:16 IST)

मृत्यु की भविष्यवाणी में एआई को 78 फीसदी कामयाबी

मृत्यु की भविष्यवाणी में एआई को 78 फीसदी कामयाबी - AI has 78 percent success in predicting death
-वीके/एए (एएफपी)
 
डेनमार्क में वैज्ञानिक एक ऐसा एआई मॉडल बनाने की कोशिश कर रहे हैं, जो भविष्यवाणी कर सके कि इंसान कितना जिएगा। इसके लिए करोड़ों लोगों का डेटा जमा किया जा रहा है। डेनमार्क के वैज्ञानिक करोड़ों लोगों का डेटा जमा कर रहे हैं ताकि एक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मॉडल उस डेटा के आधार पर यह अनुमान लगा सके कि कौन इंसान कितने दिन जिएगा। लेकिन इस प्रोजेक्ट का मकसद लोगों को तकनीक की ताकत और खतरों के बारे में जागरूक करना है।
 
लाइफ2वेक (life2vec) नामक इस प्रोग्राम के वैज्ञानिक कहते हैं कि उनके इस प्रोजेक्ट का कोई खतरनाक इरादा नहीं है बल्कि वे तो अपने आप सीखने वाले इन कम्प्यूटर प्रोग्रामों के पैटर्न्स की गहराई को समझना चाहते हैं। वे जानना चाहते हैं कि क्या ये प्रोग्राम स्वास्थ्य और सामाजिक घटनाओं का पूर्वानुमान लगा सकते हैं।
 
असीम हैं संभावनाएं
 
इस शोध की एक रिपोर्ट 'नेचर कम्प्यूटेशनल साइंस' में प्रकाशित हुई है। डेनमार्क टेक्निकल यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर जूने लेहमान कहते हैं, 'मानव जीवन के बारे में भविष्यवाणी के लिए यह एक सामान्य संरचना है।'
 
लेहमान कहते हैं कि संभावनाएं तो असीम हैं। वह बताते हैं, 'अगर आपके पास ट्रेनिंग डेटा है तो यह किसी भी चीज का अनुमान लगा सकता है। यह स्वास्थ्य के बारे में भविष्यवाणी कर सकता है। बता सकता है कि आप मोटे होंगे या आपको कैंसर हो सकता है अथवा नहीं।'
 
यह एल्गोरिदम वैसे ही काम करता है, जैसे चैटजीपीटी काम करता है। लेकिन यह जन्म, शिक्षा, सामाजिक लाभ और यहां तक कि काम के घंटों आदि का विश्लेषण करता है।
 
लेहमान और उनकी टीम लैंग्वेज-प्रोसेस करने वाले एल्गोरिदम को इस डेटा का विश्लेषण कर इंसान के बारे में भविष्वाणियां करना सिखा रही है। लेहमान कहते हैं, 'एक लिहाज से इंसान का जीवन कुछ घटनाओं का सिलसिला होता है। लोग जन्मते हैं, डॉक्टर के पास जाते हैं, स्कूल में जाते हैं, नई जगहों पर बसते हैं, शादी करते हैं आदि।'
 
अभी सार्वजनिक नहीं
 
लेहमान कहते हैं कि उनका सॉफ्टवेयर पूरी तरह निजी है और इंटरनेट पर फिलहाल किसी के इस्तेमाल के लिए उपलब्ध नहीं है। 'लाइफ2वेक' प्रोग्राम का आधार डेनमार्क के करीब 60 लाख लोगों का वह डेटा है जिसे देश की आधिकारिक एजेंसी स्टैटिस्टिक्स डेनमार्क ने जमा किया है। शोधकर्ता कहते हैं कि इस डेटा का विश्लेषण कर जीवन की अंतिम सांस तक होने वाली घटनाओं का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है।
 
इसके आधार पर जब वैज्ञानिकों ने मृत्यु का पूर्वानुमान लगाने की कोशिश की तो प्रोग्राम 78 फीसदी सही निकला। कोई व्यक्ति अपना शहर छोड़कर नई जगह बसेगा या नहीं, इसका पूर्वानुमान लगाने में उसे 73 फीसदी कामयाबी मिली।
 
मृत्यु की भविष्यवाणी
 
लेहमान कहते हैं कि मृत्यु की भविष्यवाणी के मामले में उनका एल्गोरिदम अब तक के किसी भी एल्गोरिदम से ज्यादा कामयाब है। वह कहते हैं, 'हम कम उम्र में होने वाली मौतों को आंकते हैं। इसलिए हम 35 से 65 साल तक के लोगों का समूह लेते हैं। फिर हम 2008 से 2016 के बीच के आंकड़ों के आधार पर अनुमान लगाने की कोशिश करते हैं कि अगले चार साल में किसी व्यक्ति की मृत्यु होगी या नहीं।'
 
शोधकर्ताओं के मुताबिक 35 से 65 साल के आयु-वर्ग में मृत्यु कम होती है, इसलिए इससे एल्गोरिदम को सत्यापित करना आसान है। लेकिन यह टूल अभी शोध के बाहर इस्तेमाल के लिए तैयार नहीं हैं। लेहमान बताते हैं, 'अभी तो यह एक रिसर्च प्रोजेक्ट है, जहां यह जांचा जा रहा है कि क्या संभव है और क्या नहीं।'
 
वैसे इस तरह के कई सॉफ्टवेयर इंटरनेट पर उपलब्ध हैं, जो बताते हैं कि कोई व्यक्ति कितने दिन जिएगा। लेकिन वैज्ञानिक कहते हैं कि वे सारे भरोसेमंद नहीं हैं और उनमें से बहुत धोखाधड़ी का तरीका भी हो सकते हैं।
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