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Written By DW

देश विभाजन का दर्द

भारत विभाजन
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विभाजन या बंटवारा किसी देश, भूमि या सीमा का नहीं होता, विभाजन तो लोगों की भावनाओं का हो जाता है। इस प्रकार के कई दर्द भरे विचार पाठकों ने पिछले सप्ताह प्रशनोलॉजी में हमसे शेयर किए।

विभाजन का दर्द वो ही अच्छी तरह जानते हैं जिन्होंने प्रत्यक्ष रूप से इसको सहा है। अपने देश के बंटवारे के दौरान जिन्हें अपना घर-बार छोड़कर जाना पड़ा, अपनों को खोना पड़ा, वही इसकी दास्तान बयान कर सकते हैं। आज तक इस भयानक दर्द के बारे में हमने सिर्फ किताबों में पढ़ा है। चेकोस्लोवाकिया देश के शांतिपूर्ण विभाजन की बात छोड़कर भारत-पाकिस्तान, उत्तर और दक्षिण कोरिया और जर्मनी का विभाजन आम लोगों के लिए काफी दर्दनाक रहा।...

विभाजन का कारण कोई भी हो, लेकिन रेखाएं जहां पड़ने वाली है, इनके पास रहने वाले लोगों पर इसका पहला सीधा असर पड़ता है। दो देशों के कायदे कानून अलग हो जाते हैं। बेवजह सीमाओं पर दोनों देशों की अपनी-अपनी सेना तैनात हो जाती है। एक दूसरे पर बेवजह निगरानी, शक की नजर तेज हो जाती है। इसका नतीजा दोनों देशों की ओर से शस्त्र-अस्त्रों का जमावड़ा, कभी-कभार सीमा क्षेत्रों में फायरिंग होती है, जिसका खामियाजा भुगतना पड़ता है आम लोगों को। लेकिन दोनों देशों के राजनेता अपना जीवन बिलकुल सुरक्षित बिताते हैं। देश का संरक्षण मुख्य मुद्दा बन जाता है और आम लोगों का विकास पीछे रह जाता है।
- संदीप जावले, पारली वैजनाथ, महाराष्ट्र

विभाजन या बंटवारा किसी देश, भूमि या सीमा का नहीं होता। विभाजन तो लोगों की भावनाओं का हो जाता है जो हमेशा के लिए उनको इतने गहरे जख्म दे जाता है कि वह उनकी खुद की और आने वाली नस्लों की जिंदगी को झिंझोड़ कर रख देता है। यह ऐसा थप्पड़ है जिसकी गूंज प्रभावित होने वालों को हमेशा सुनाई देती है। बंटवारे का शिकार आम आदमी होता है और उसका असर सदियों तक रहता है, चाहे वह बंटवारा कहीं का भी हो, घर का या देश का।
- सचिन सेठी, करनाल, हरियाणा

जब देश का विभाजन होता है तो आम आदमी को बहुत नुकसान झेलना पड़ता है। लोग अपनों से बिछड़ जाते हैं, घर, जमीन, दोस्त, रिश्तेदार, यहां तक की एक ही मां-बाप के दो बेटे-एक भारत में तो दूसरे को पाकिस्तान में रहना पड़ता है।
- पवन दूबे, आबू धाबी

साल 1947 में भारत देश का बंटवारा मजहब के नाम पर किया गया। परिणामस्वरुप भारत दो हिस्सों में बंट गया- भारत और पाकिस्तान। भारत दुनिया का एक अकेला देश है जिसमें आम आदमी को अपनी मर्जी से भारत या पाकिस्तान चुनने का विकल्प था। धर्म के नाम पर काफी संख्या में हिंदू पाकिस्तान से भारत आ गए और इसी तरह काफी संख्या में मुसलमान भारत से पाकिस्तान चले गए।

धर्म के नाम पर दंगे फसाद भड़क गए। हिन्दू द्वारा मुसलमान का, मुसलमान द्वारा हिन्दू का खून खराबा होना शुरू हो गया, जिसके परिणाम स्वरूप आम आदमी को चाहे वो हिन्दू था या मुसलमान अपना घर-बार, कारोबार, जमीन, जायदाद और परिवारों को मजबूरन छोड़ना पड़ा।

देश का बंटवारा मजहब के नाम पर क्यों हुआ, जब भी मैं इस प्रश्न के बारे में सोचता हूं तो मुझे केवल यही दिखाई देता है कि यह हमारे राजनेताओं ने अपने स्वार्थ के लिए धर्म के नाम पर आम आदमी का भी बंटवारा किया। आज हालत यह है कि हिन्दू हो या मुसलमान, दोनों ही एक दूसरे को शक की नजरों से देखते हैं। मेरे विचार में यही सबसे बड़ा नुकसान है जो आम आदमी को मजहब के नाम पर उठाना पड़ा।
- मितुल कंसल, शाहाबाद, मारकंडा, हरियाणा

नई फिल्म 'भाग मिल्खा भाग' में बंटवारे और बंटवारे के बाद अभावग्रस्त जिंदगी के असर को बखूबी दर्शाया गया है। फिल्म 'बार्डर' में पाकिस्तान से भागते लोगों की मारकाट और शहादत देखनी को मिलती है। उस समय केवल यही एक मिल्खा नहीं था, लाखों करोड़ों मिल्खा थे जिनमें बहुतों ने संघर्ष करते हुए दम तोड़ दिए।

बंटवारे की वजहें चाहे एक हो या अनेक, पर दोनों तरफ के लोगों को बंटवारे का दंश झेलना पड़ता है। पूर्वी जर्मनी और पश्चिमी जर्मनी तो आज एक हो गये और लोगों के दिलों की भी दरारें भी अब लगभग मिट सी गयी हैं। 60 साल से उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया एक दूसरे के जानी दुश्मन बने हुऐ हैं। दोनों देश के नागरिक एक दूसरे के खून के प्यासे बन गये हैं। भारत और पाकिस्तान का बंटवारा तो आज भी पके नासूर की तरह है। विकास का बजट रक्षा में खर्च हो रहा है।
- मधु द्विवेदी, अमेठी, उत्तर प्रदेश

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बहुत से लोग अपने परिवार से दूर हो जाते हैं। लोगों को तो अपना घर तक छोड़कर जाना पड़ता है। इन सब से परे लोगों को सबसे ज्यादा दुख तब होता है जब वे अपनी पुरानी यादों को छेड़ते हैं। मिल जुलकर रहने वाले लोग एक दूसरे के दुश्मन बन जाते हैं।
- हरजीत सिंह, जिला हाथरस, उत्तर प्रदेश

विभाजन हुए देश तो अपनों को अलग कर देते हैं। भारत-पाकिस्तान के अलग होने पर ये एक-दूसरे के दुश्मन बन गए। भारत के रहने वालों के रिश्तेदार पाकिस्तान में तो कुछ पाकिस्तान के रिश्तेदार भारत में रह गए। बंटवारे के समय आम लोगों को दंगा, हिंसा, उत्पीड़न झेलना पड़ा।

भारत-पाकिस्तान के विभाजन के समय की बातें पढ़ने एवं तस्वीरें देखने पर मेरे दिल को झकझोर देती हैं। राजनीति गलियारों से भी रिश्तों को मजबूत बनाने के बहुत प्रयास किए गए, लेकिन कोई कामयाबी नहीं मिलती। इसके कई कारण है 1965 और 1971 के युद्ध, कश्मीर में आतंकवाद, कारगिल युद्ध, सबरजीत की मौत अन्य जैसी घटनाएं।
- रेनु यादव, आज़मगढ़, उत्तर प्रदेश

विभाजन आम जनता के जीवन को प्रभावित करने वाली एक भयानक त्रासदी थी, जिससे अपने ही देश में लोग पराए हो गए। इस विभाजन की विभीषिका के कारण असंख्य लोगों को आजाद मुल्क के उगते सूरज की रोशनी, स्वच्छंद हवा भी नसीब न हो सकी, धार्मिक विद्वेष की ज्वाला ने न जाने कितनों को अपनों से जुदा कर दिया। विभाजन की विभीषिका के कारण आजाद मुल्क की ताजगी भरी हवा लाशों की दुर्गन्ध, रक्तपात, अलगाव में तब्दील हो गई। विभाजन ने मानवीय सभ्यता, संस्कृति वैचारिकता को सांप्रदायिक उत्कर्ष पर पहुंचाया।
- अंक प्रताप सिंह

भारत-पाक का बंटवारा एक बड़ी भूल थी जिसको लेकर हमारे नेताओं ने दूरगामी परिणामों के बारे में कुछ नहीं सोचा और अंग्रेज तो जाते-जाते विभाजन कर आपस में लड़ा गए। आज दोनों देश एक हो जाएं तो विश्व महाशक्ति बन सकते हैं, पर ऐसा भी कभी नहीं हो सकेगा। अब तो ये विभाजन का दर्द हमेशा बना रहेगा। आज हमारा पड़ोसी विश्वास करने लायक भी नहीं है। ऐसे में मुल्क में अमन चैन का आ पाना अभी फिलहाल मुश्किलात से भरा है।
- जाकिर हुसैन

जब परिवार का मुखिया एक-एक ईँट जोड़कर सपनों का घर बनाता है और अपने उस घर के आंगन में अपने नौनिहालों को अपनी भोजन की थाली से निवाला खिलाता है तो प्यार देखते ही बनता है। फिर एक दिन उसी घर के आंगन के बीच एक दीवार खड़ी हो जाती है। उस दिवार के दोनों तरफ मुखिया के अलग-अलग बेटों का परिवार पलता है जो एक दूसरे के दुख-दर्द को समझना तो दूर, जानना भी पसंद नही करते।

भाई-भाई पराए हो जाते हैं। मुखिया के दिल के कई टुकडे हो जाते हैं। भारत और पाकिस्तान भी किसी भाई से कम न थे। इस बंटवारे ने बहुत दर्द दिया है। पाकिस्तान से भागते लोगों की तत्कालिक परिस्थितियों का सहज अनुमान लगा पाना कठिन है। भारत पहुंचने के बाद क्या वो आजीवन कभी मुस्कराए होंगे? आजादी के बाद भारत पाक ने कभी भी एक दूसरे को भाई नहीं समझा। आज भी तीन युद्ध के बाद सीमा पर अघोषित युद्ध चल रहा है और लगभग रोज ही शहीद होने वाले सैनिकों का दर्द पूरा भारत झेल रहा है।
- अनिल कुमार द्विवेदी, अमेठी, उत्तर प्रदेश

संकलनः विनोद चड्ढा
संपादनः मानसी गोपालकृष्णन