सोमवार, 23 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. खेल-संसार
  2. क्रिकेट
  3. समाचार
  4. India vs New Zealand 3rd T20 match Super over
Written By वेबदुनिया न्यूज डेस्क
Last Updated : गुरुवार, 30 जनवरी 2020 (18:07 IST)

India vs New Zealand 3rd T20 match: किस्मत का मारा न्यूजीलैंड बेचारा...

India vs New Zealand 3rd T20 match: किस्मत का मारा न्यूजीलैंड बेचारा... - India vs New Zealand 3rd T20 match Super over
हैमिल्टन। अपनी धरती, अपने दर्शक और अपने अनुकूल वातावरण, इसके बाद भी न्यूजीलैंड की टीम तीसरे टी20 मैच में सुपर ओवर में बाजी हार गई। दिलों की धकड़नों को कई गुना तेज करने वाले इस मुकाबले में जब भारत जीता तो क्रिकेट टीकाकारों के मुंह से यही निकला, 'किस्मत का मारा, न्यूजीलैंड बेचारा।' 
 
बुधवार को सब चीजें न्यूजीलैंड के कप्तान केन विलियम्सन के अनुरूप चल रही थी। उसके गेंदबाजों ने भारतीय पारी को 20 ओवर में 5 विकेट पर 179 रन के स्कोर पर थाम दिया था। बल्लेबाजों के लिए स्वर्ग साबित हो रहे पिच पर 180 का लक्ष्य मुश्किल नहीं था। 
 
केन विलियम्सन मैच को आखिरी ओवर तक ले गए और अचानक शमी की गेंद पर 95 रनों पर आउट हो गए। यहीं पर मैच फिसल गया और शमी ने मैच को टाई पर खत्म करवा दिया। यानी न्यूजीलैंड ने 20 ओवर में 6 विकेट पर 179 रन बनाए। 
 
सुपर ओवर में न्यूजीलैंड के 17 रनों के जवाब में भारत 20 रन बनाकर न केवल मैच जीतने में सफल रहा बल्कि पहली बार न्यूजीलैंड में टी20 सीरीज जीतने में कामयाब रहा।

यह दूसरा प्रसंग था, जब भारत ने सुपर ओवर में मैच जीता है। इससे पहले 2007 के विश्व कप के ग्रुप मैच में पाकिस्तान के खिलाफ भारत ने टाई मैच के बाद सुपर ओवर में जीत हासिल की थी। 
 
न्यूजीलैंड की किस्मत कितनी खराब रही है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पिछले 6 महीने के भीतर उसने तीन टाई मैच खेले और सभी हारे। जुलाई 2019 के आईसीसी विश्व कप के फाइनल में भी इंग्लैंड के खिलाफ सुपर ओवर में हार मिली थी। इसके अलावा 10 नवम्बर को वह टी20 मैच में इंग्लैंड के हाथों ही सुपर ओवर में हारा और 29 जनवरी 2020 को उसे भारत ने सुपर ओवर में हराया। 
 
अतीत में झांके तो पता चलता है कि न्यूजीलैंड टीम ने टी20 इतिहास में 7 मैच टाई खेले हैं। इन 7 मैचों में से वह 1 सुपर ओवर और 1 बॉल आउट में ही जीत सका है। सुपर ओवर में हारने की वजह अनुभव की कमी और आत्मविश्वास की कमी रही।
ये भी पढ़ें
30 जनवरी... क्या एक बार फिर दिल्ली आ गया गोडसे?