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Written By WD Sports Desk
Last Modified: गुरुवार, 3 अक्टूबर 2024 (12:46 IST)

काली मिट्टी के घटते संसाधनों के कारण UPCA चिंतित, कहा मध्य प्रदेश में देखेंगे

काली मिट्टी के घटते संसाधनों के कारण UPCA चिंतित, कहा  मध्य प्रदेश में देखेंगे - Dwindling black soil resources force UPCA to look beyond Unnao
उत्तर प्रदेश क्रिकेट संघ (Uttar Pradesh Cricket Association) कई वर्षाें से यहां के ग्रीन पार्क स्टेडियम (Green Park Stadium) में पिच तैयार करने के लिए उन्नाव (Unnao) से काली मिट्टी प्राप्त करता रहा है लेकिन शहर में प्राकृतिक संसाधनों के तेजी से खत्म होने के कारण राज्य क्रिकेट संघ चिंतित है।
 
कानपुर से करीब 25 किलोमीटर दूर उन्नाव में न केवल उच्च गुणवत्ता वाले संसाधन कम हो रहे हैं बल्कि उपलब्ध मिट्टी की गुणवत्ता में भी काफी गिरावट आई है।
 
क्रिकेट पिच के लिए 50 प्रतिशत से अधिक चिकनी मात्रा वाली मिट्टी माकूल होती है।
 
ग्रीन पार्क स्टेडियम में एक सत्र में नौ पिचों पर करीब 150 मैच आयोजित लिए जाते है और जब मैच नहीं खेली जा रहे हैं तो इसका नवीनीकरण करना पड़ता है।
 
यूपीसीए के पिच क्यूरेटर शिव कुमार के मुताबिक, प्रत्येक सत्र में मिट्टी की जरूरत पड़ती है।
शिव कुमार ने 'पीटीआई' को बताया, ‘‘अपने पूरे करियर में हमने सिर्फ उन्नाव की मिट्टी का इस्तेमाल किया है। अब मुझे चिंता इस बात की है कि उन्नाव में उस प्राकृतिक संसाधन की ज्यादा मात्रा नहीं बची है। हम उपलब्ध संसाधन से दो साल और काम चला सकते हैं और इसके खत्म होने से पहले हमें एक नया क्षेत्र तलाशना होगा।’’
 
उन्होंने कहा, ‘‘उस क्षेत्र में मिट्टी लगभग खत्म हो चुकी है और अब हमें जो मिट्टी मिल रही है वह भी उतनी अच्छी नहीं है।’’
 
यूपीसीए उन्नाव के एक तालाब और 'काली मिट्टी' नामक गांव से काली मिट्टी लेता है। उस इलाके के खेत मिट्टी का सबसे बड़ा स्रोत हैं लेकिन सालों से हो रही खुदाई के कारण यह संसाधन खत्म होता जा रहा है।

यूपीएसए के क्यूरेटर ने कहा कि मिट्टी का मुख्य तत्व चिकनी मिट्टी है।
 
शिव कुमार ने कहा कि पहले मैदान के ऊपर से केवल एक फीट नीचे अच्छी गुणवत्ता वाली मिट्टी उपलब्ध थी लेकिन पिछले कुछ सालों में लगातार खुदाई के कारण अब ऐसा नहीं है।
यूपीसीए अब मिट्टी लाने के लिए ओडिशा और आंध्र प्रदेश जैसी जगहों पर जाने का विचार कर रहा है।
 
शिव कुमार ने कहा,‘‘उनके पास अच्छी चिकनी मिट्टी मात्रा वाले क्षेत्र हैं। मध्य प्रदेश में भी अच्छी चिकनी मिट्टी है। हम वहां से कुछ देखेंगे। अगर हमें नजदीक कोई जगह नहीं मिलती है तो हमें नई पिचें बनानी पड़ेंगी और यह एक समस्या बन सकती है।’’
 
शुरू से लेकर अंत तक पिच तैयार करने में लगभग 45 दिन का समय लगता हैं। तीन बार इस्तेमाल किए जाने के बाद कुछ पिचों को नवीनीकरण की आवश्यकता होती है।
 
विज्ञान स्नातक शिवकुमार ने कहा, ‘‘हमें पिचों पर कुछ काम करना होगा लेकिन इसके लिए हमें समान परिवार की मिट्टी की जरूरत होगी यानी ठीक उसी जगह की मिट्टी जिससे पिच शुरू में तैयार की गई थी।’’
 
उन्होंने कहा, ‘‘हम किसी दूसरे परिवार की मिट्टी का उपयोग नहीं कर सकते क्योंकि उसमें सामग्री अलग होगी।’  (भाषा)
 
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