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Written By भाषा
Last Modified: जयपुर , सोमवार, 21 मार्च 2011 (19:33 IST)

राजस्थान में खनिज की अहम भूमिका

राजस्थान खनिज संपदा
खनिज संसाधनों की दृष्टि से पश्चिमी राजस्थान का अत्यंत महत्व है। क्षेत्र में जहाँ खनिज सम्पदा के दोहन एवं विपणन के योजनाबद्ध प्रयास किए जा रहे हैं, वहीं राजस्व वृद्धि में भी इसका महत्वपूर्ण योगदान है।

राजस्थान स्टेट माइंस एंड मिनरल्स (आरएसएमएमएल) का राज्य के औद्योगिक खनिजों रॉक फास्फेट, जिप्सम, लाइमस्टोन, लिग्नाइट आदि खनिज सम्पदा का दोहन एवं विपणन करने वाला देश का प्रमुख सार्वजनिक उपक्रम है।

आरएसएमएमएल सूत्रों ने कहा कि हम लिग्नाइट आधारित बिजली पैदा करने वाले संयंत्रों को लंबी अवधि तक लिग्नाइट की आपूर्ति एवं गैर परम्परागत उर्जा स्रोत पवन उर्जा से बिजली पैदा करने के लिए निरंतर अग्रसर हैं।

सूत्रों ने कहा कि इस उपक्रम द्वारा स्थापित कुल पवन उर्जा संयंत्रों की क्षमता 106.4 मेगावाट हो चुकी है एवं इन संयंत्रों से विद्युत उत्पादन क्षमता लगभग 1,815 लाख यूनिट वार्षिक हो गई है।

सूत्रों ने कहा कि आरएसएमएमएल की पवन उर्जा परियोजना, जैसलमेर के क्लीन डेवलपमेंट मैकेनिज्म के अंतर्गत चार परियोजनों का पंजीकरण हो चुका है तथा इससे प्राप्त प्रमाणपत्र को विकसित देशों को विक्रय कर 11.00 करोड़ से अधिक विदेशी मुद्रा अर्जित की गई है।

जोधपुर संभाग में आरएसएमएमएल द्वारा एसबीयू-पीसी-लाइमस्टोन, जोधपुर के तहत जैसलमेर (गोट्न) नागौर आदि जिलों में लाइमस्टोन का उत्पादन किया जा रहा है।

उन्होंने कहा कि देश के कुल स्टील ग्रेड लाइमस्टोन के उत्पादन का 85 प्रतिशत जैसलमेर के सानू माइंस क्षेत्र में होता है। सूत्रों के अनुसार भारतीय इस्पात प्राधिकरण (सेल) के इस्पात संयंत्रों, टाटा स्टील, जिंदल स्टील आदि स्टील उद्योगों को लाइमस्टोन की आपूर्ति नियमित रूप से की जा रही है।

गोट्न से उत्पादित लाइमस्टोन केमिकल एवं सफेद सीमेंट उद्योगों के लिए काम में लिया जाता है। चालू वित्तीय वर्ष 2010-11 में करीब तीस लाख टन लाइमस्टोन का उत्पादन एवं बिक्री का प्रावधान है जिससे कम्पनी को एक सौ बीस करोड़ रुपए का राजस्व प्राप्त होगा। लाइमस्टोन को निश्चित आकार देने के लिए सानू माइंस, जैसलमेर में 25 करोड़ रुपए की लागत का एक क्रशिंग एवं स्क्रीनिंग संयंत्र वर्ष 1996-97 में स्थापित किया गया। इस संयत्र से 6.50 लाख टन सालाना लाइमस्टोन की क्रशिंग कर आपूर्ति की जा रही है। इसके अतिरिक्त करीब 18.50 लाख टन सालाना लाइमस्टोन की आपूर्ति आरएसएमएमएल द्वारा अन्य क्रशिंग संयंत्रों से की जा रही है।

उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों से छोटे आकार की कंकरीट भी बाड़मेर के तापीय विद्युत प्लांट एवं देश के विभिन्न सिंटरिंग संयंत्रों में उपयोग में लाई जा रही है। पहले इसका कोई इस्तेमाल नहीं होता था और इसका प्रयोग खदान में पुनर्भरण प्रक्रिया के लिए हो रहा था। से भरी जा रही थी। मौजूदा समय करीब 26 लाख टन सालाना लाइमस्टोन कंकरीट की देश के दूरस्थ स्थित इस्पात संयंत्रों को आपूर्ति की जा रही है।

सूत्रों ने कहा कि भविष्य में इस लाइमस्टोन की बढ़ती माँग को देखते हुए रेलवे लाइन का विस्तार सानू खदान तक करने का कार्य प्रगति पर है। इस परियोजना का अन्तिम प्रारूप अनुमोदन की स्थिति में है। इस पर लगभग 190 करोड़ रुपए की लागत आने की संभावना है।

उन्होंने बताया कि जैसलमेर परियोजना से भारतीय रेल को सालाना करीबन 450 करोड़ रुपए की आमदनी लाइमस्टोन परिवहन से जैसलमेर स्टेशन से हो रही है, जो कि किसी भी एक स्टेशन से रेल विभाग की अधिकतम आमदनी है। इस परियोजना से करीब तीन हजार लोगों को रोजगार मिल रहा है। (भाषा)