गुरुवार, 21 अगस्त 2025
  1. खबर-संसार
  2. खोज-खबर
  3. ज्ञान-विज्ञान
Written By राम यादव
Last Updated :बॉन, जर्मनी , बुधवार, 9 जुलाई 2014 (19:47 IST)

सृष्टि का अंत अभी नहीं, कहते हैं वैदिक ग्रंथ

कयामत
FILE
21 दिसंबर 2012 को कयामत का दिन करार दिया गया है। ऐसा इस आधार पर माना जा रहा है कि विख्यात माया सभ्यता के कैलेंडर के 400 वर्षों से चल रहे 13वें कालचक्र के अंत अंत भी हो जाएगा। लेकिन, हर गाहेबगाहे दुनिया के अंत की भविष्यवाणी करने वाले प्रलयवादी पोंगापंथी और मतलबपरस्त मीडिया मास्टर ढिंढोरा पीटने में जुटे हुए हैं कि माया कैलेंडर के साथ ही दुनिया का भी अंत हो जाएगा।

दुनिया का अंत तो इस बार भी नहीं होगा, हां इन प्रलयवादियों को अगले प्रलय के नए बहकावे की एक नई तारीख जरूर ढूंढनी पड़ेगी। इस विषय चर्चा में करीब 35 वर्षों से भारत के भीतर और बाहर ध्यान-साधना और भारत के वैदिक ज्ञान का प्रचार-प्रसार कर रहे स्वामी दिव्यानंद ने दुनिया के अंत संबंधी प्रश्न का उत्तर देते हुए एक जर्मन पत्रिका से कहा कि भारतीय वेदों के अनुसार पृथ्वी पर जीवनरूपी सृष्टिरचना क़रीब दो अरब 20 करोड़ वर्ष पुरानी है।

भारतीय ज्योतिषशास्त्र में ऐसी किसी भविष्यवाणी की बात सुनने में नहीं आई है, जो कहती हो कि 21 दिसंबर 2012 के दिन दुनिया का अंत हो कर ही रहेगा। हमें यदि विश्वास करना ही है, तो अपने ही शास्त्रों पर क्यों न विश्वास करें।
फ़िलहाल इसका क़रीब आधा समय बीत चुका है और आधा अभी बाक़ी है। इसी तरह (बाइबल में) जॉन की बताई संख्या की कूटभाषा में 42 महीनों का उल्लेख है। उसका भी यही अर्थ है, यानी 4.2 अरब वर्ष।"

स्वामी दिव्यानंद का कहना है कि सृष्टिरचना का हर दौर एक ब्रह्मदिवस, यानी 4.2 अरब वर्ष के बराबर होता है। यह समय बीत जाने के बाद अगली सृष्टिरचना 4.2 अरब वर्ष के अंतराल के उपरान्त नया ब्रह्मदिवस आने पर ही शुरू होगी।

वैज्ञानिक अनुमान भी यही कहते हैं कि पृथ्वी पर हर प्रकार के जीवन का अंत तब शुरू होगा, जब हमारा सूर्य गुब्बारे की तरह फूलते हुए सुपरनोवा बनने लगेगा। ऐसा आज से लगभग दो अरब वर्ष बाद होगा और लगभग चार अरब वर्ष बाद सुपरनोवा विस्फोट के साथ सूर्य का भी अंत हो जाएगा।

खगोल वैज्ञानिकों का मानना है कि पृथ्वी का सूर्य से पहले अंत होगा, क्योंकि एक समय ऐसा आयेगा, जब फूल कर कुप्पा बन रहा सूर्य उसे अपने भीतर समा लेगा। लेकिन, ऐसा अगले दो अरब वर्षों से पहले नहीं होगा।

कहने की आवश्यकता नहीं कि माया सभ्यता चाहे जितनी महान रही हो, वह भारत के वैदिक काल से बढ़-चढ़ कर कतई नहीँ थी। वेदों में पृथ्वी की आयु और उस पर जीवन की उत्पत्ति का जो अनुमान लगाया गया है, वह आज के वैज्ञानिक अनुमानों के बहुत निकट है।

वेदों में या भारतीय ज्योतिषशास्त्र में ऐसी किसी भविष्यवाणी की बात सुनने में नहीं आई है, जो कहती हो कि 21 दिसंबर 2012 के दिन दुनिया का अंत हो कर ही रहेगा। हमें यदि विश्वास करना ही है, तो अपने ही शास्त्रों पर क्यों न विश्वास करें।