• Webdunia Deals
  1. खबर-संसार
  2. »
  3. खोज-खबर
  4. »
  5. ज्ञान-विज्ञान
  6. सुंदरबन पर आई नई मुसीबत
Written By ND

सुंदरबन पर आई नई मुसीबत

दलदली जंगल चट करते कीड़े-मकोड़े

Sunderbans in crises | सुंदरबन पर आई नई मुसीबत
- कोलकाता से दीपक रस्तोगी
तेजी से घटती जमीन और कटते जंगल, सुंदरवन में पारिस्थितिकी असंतुलन की समस्या के लिए ये दो कारण कई दिनों से गिनाए जा रहे हैं। इनकी वजह से सुंदरवन का मौसम तेजी से बदला है जिससे यहां वन्यजीव पर गहरा असर पड़ रहा है। हाल में सुंदरवन में काम कर रही वैज्ञानिकों की टीम ने पाया है कि डेल्टा वाले इलाकों में सुंदरी के वृक्ष तेजी से नष्ट हो रहे हैं। स्थानीय लोग उन्हें बचाने की कोशिश कर रहे हैं पर प्रकृति से कौन लड़े?

ND
SUNDAY MAGAZINE
दरअसल, सुंदरवन पर इन दिनों अनजाने-से कुछ कीड़ों ने हमला कर दिया है। इल्ली (कैटरपिलर) और छोटे पतंगों की तरह दिखने वाले काले, भूरे और हरे रंग के इन कीड़ों की प्रजातियों की पहचान को लेकर वैज्ञानिकों में ऊहापोह की स्थिति है। पिछले तीन महीने से इन कीड़ों ने सुंदरवन के कई द्वीपों पर सुंदरी के पेड़ नष्ट कर डाले हैं। इन पेड़ों को देखकर आपको ऐसा लगेगा कि इन्हें काटा गया है और तने से छाल अलग कर दी गई है। ये कीड़े पत्तियों को कुछ इस तरह खाते हैं कि दूर से देखने पर प्रतीत होगा कि पेड़ों में आग लगाई गई हो लेकिन ध्यान से देखने पर समझ आता है कि यह कुछ तो ऐसी गड़बड़ है जिसे रोकने के लिए गहन शोध की जरूरत है। हाल में ऐसे कुछ कीड़ों को इकट्ठा कर कई शोध संसाधनों के पास भेजा गया है। अब तक जीओलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया या जादवपुर विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ ओशीनोग्राफी के विशेषज्ञ किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सके हैं। वहीं यहां के विभिन्न इलाकों में वैज्ञानिकों की और भी टीमें भेजी गई हैं और इन वैज्ञानिकों ने अब अपने शोध का दायरा बढ़ा दिया है।

यह भी पढ़े - सिकुड़ता सुंदरबन, फैलती चिंताएँ ...

शुरू में स्थानीय लोगों ने सुंदरवन में काम कर रहे कुछ वैज्ञानिकों को सुंदरी (मैन्ग्रोव) के वृक्षों के अचानक सूखकर भहरा जाने की सूचना दी तो लगा कि काठ की तस्करी करने वालों का यह नया तरीका तो नहीं है। पाखिरालय, सजनेखाली, लाहिरीपुर, रांगाबेलिया आदि द्वीप के गांवों में पहले भी सुंदरी के पेड़ काटे जाने और तस्करी की कई शिकायतें आती रही हैं। एक अनुमान के अनुसार, पिछले कुछ वर्षों में लगभग एक हजार वर्ग किलोमीटर में फैले जंगल साफ कर दिए गए हैं। कुछ क्षेत्र तो किसानों (स्थानीय और बंगाल के ही दूसरे इलाके से ले जाकर बसाए गए) ने धान की खेती लायक जमीन तैयार करने के लिए साफ किया तो कुछ तस्करों ने अपना उल्लू सीधा करने के लिए पेड़ काट डाले।

सुंदरबन के बाघों पर एक रिपोर्ट - सुंदरबन के आखिरी रक्ष

हाल में कई जगहों से सैकड़ों पेड़ काटे जाने की खबरें मीडिया में आईं तो पश्चिम बंगाल के सुंदरवन विकास मंत्री कांति गांगुली को 10-15 दिनों तक इलाकावार दौरा करना पड़ा लेकिन ताजा घटनाएं मानव अतिक्रमण का नतीजा नहीं थीं। पाखिरालय में काम कर रहे वैज्ञानिकों की टीम के प्रमुख गौतम सेन के अनुसार, 'गांववाले हमें कई जगह ले गए। हम यह देखकर चौंक गए कि हजारों-लाखों कीड़े डेल्टा क्षेत्र के कीचड़ में पेड़ों की जड़ों, तने और पत्तियों पर रेंग रहे हैं और मिनटों में पत्तियां साफ कर ले रहे हैं। बची-खुची पत्तियां और पेड़ ऐसे लगा कि मानों उन्हें जलाया गया हो। इन कीड़ों को पहचाना नहीं जा सका है। हमने उन्हें इकट्ठा कर जीओलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया को भेजा है।'

सुंदरवन में ऐसे कीड़ों के बारे में न कभी देखा गया और न ही सुना गया। आधा या एक इंच की लंबाई वाले कुछ कीड़े इल्लियों (कैटरपिलर) की तरह दिखते हैं और कुछ छोटे पतंगों की तरह। चारों द्वीपों पर बसे गांवों में पानी के बिल्कुल करीब उगने वाले पेड़ों को इन कीड़ों ने लगभग नष्ट ही कर दिया है। वैज्ञानिकों के अनुसार, कोई इल्ली या पतंगा पानी के इतने करीब रहता हो ऐसा पहले कभी देखा-सुना नहीं गया, खासकर नमकीन पानी के पास। हो सकता है कि ऐसे कीड़े किसी अन्य क्षेत्र में पाए जाते हों और यहां किसी जरिए से चले आए हों। हो सकता है कि जंगल के भीतरी इलाकों में ऐसे कीड़े पाए जाते हों, फिर भी उनका यह नवीन व्यवहार वैज्ञानिकों को अचरज में डाल रहा है।

अनुमान है कि मौसम परिवर्तन के चलते ऐसे नए किस्म के कीड़ों का आविर्भाव हुआ होगा। कुछ शोधकर्ता इस परिस्थिति को चक्रवाती तूफान आइला के प्रभाव से जोड़कर देखते हैं। आइला में सुंदरवन के कई छोटे द्वीप डूब गए। एक स्वयंसेवी संगठन के साथ जुड़े सर्वरंजन मंडल का मानना है कि हो सकता है कि इन कीड़ों की रिहाइश वाला द्वीप भी डूब गया हो और ये यहां आ पहुंचे हों। सुंदरी के वृक्षों के नष्ट करते हुए ये कीड़े अब सब्जियों के खेतों की ओर भी बढ़ने लगे हैं। अगर ये खेतों की ओर बढ़ने लगे या जंगल में अंदर की ओर पहुंचने लगे तो वन और फसल के लिए महामारी जैसी स्थिति हो जाएगी। दलदली जंगल या आबादी वाले इलाकों में फसलें बचाना टेढ़ी खीर होगी।

(आगपढ़े...)


ND
SUNDAY MAGAZINE
राज्य के जैव विविधता परिषद के सदस्य शिलांजन भट्टाचार्य के अनुसार, 'इसे आइला के बाद का असर माना जा सकता है। आमतौर पर बाढ़ का पानी उतरने के बाद दलदली वनों की पत्तियां खाने वाले कीड़े दिखते हैं। किसान उनसे परिचित भी होते हैं लेकिन पेड़ों के सूखकर भहरा जाने की घटनाएं नई दिख रही हैं।'

आइला तूफान के बाद सुंदरवन के कई इलाकों में स्थानीय किसानों ने अपने स्तर पर सुंदरी के वृक्ष लगाने की मुहिम छेड़ी थी। इन वृक्षों के चलते मीठे पानी के स्रोतों को बचाने में आसानी होती है। कुशला बर्मन, कुमकुम, तनिमा, सुजीत सरदार जैसे कई किसानों ने बीज लगाए थे। कड़ी देखभाल कर मैन्ग्रोव के पेड़ बड़े किए थे। प्राकृतिक वातावरण एवं वन्यजीव सोसायटी की अजंता डे के अनुसार, 'ये पेड़ बांध का भी काम करते हैं। साथ ही, इनकी जड़ों के बीच कई जीव प्रजनन भी करते हैं। सोनागांव, दुल्की, मथुराख, अमलामेथी आदि गांवों में मैन्ग्रोव की कम से कम 10 किस्में रोपी गई थीं। पिछले दो साल में इन पेड़ों ने अच्छा आकार ले लिया था।'

दरअसल, पिछले कुछ सालों से सुंदरवन से अच्छी खबरें नहीं आ रही हैं। जलवायु परिवर्तन के चलते दुनियाभर में जो इलाके विपदाग्रस्त हो चले हैं, उनकी सूची में सुंदरवन का नाम शीर्ष पर बताया जा रहा है। सुंदरवन क्षेत्र में 1980 से चलाए जा रहे एक प्रोजेक्ट में जो आंकड़े मिले हैं, उनसे पता चला कि दुनिया का यह सबसे बड़ा नदी डेल्टा क्षेत्र धीरे-धीरे गर्म हो रहा है। हर 12 साल में यहां के तापमान में 0.5 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हो रही है। यहां के तापमान में बढ़ोतरी की औसत दर ग्लोबल वार्मिंग की दर से आठ गुना ज्यादा है। यहां के भूगर्भ में तेजी से बदलाव के चलते यहां के मीठे पानी के स्रोतों में नमक की मात्रा बढ़ रही है।
चार साल पहले आई सुनामी के बाद सुंदरवन क्षेत्र के बारे में कई चिंताजनक आंकड़े आए थे। मसलन, वहां के 40 फीसदी द्वीपों का अस्तित्व खत्म हो गया। हजारों एकड़ दलदली जंगल नष्ट हो गए। बाद में आए चक्रवाती तूफान आइला के चलते द्वीपों का अस्तित्व तो नष्ट नहीं हुआ है लेकिन नमकीन पानी की समस्या बढ़ी है।

इलाके की खेती चौपट होने से खेती लायक नई जमीन की तलाश में जंगल काटे गए। कोलकाता विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अभिजित मित्र के अनुसार, 'तापमान बढ़ने के साथ ही पानी में द्रवीभूत ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ रही है। आशंका है कि पानी में द्रवीभूत ऑक्सीजन की मात्रा ज्यादा बढ़ने पर जलीय जीव-जंतुओं के अस्तित्व पर खतरा हो सकता है। इससे जीवों की प्रजनन और पाचन क्षमता कम होती जाती है।' हाल में यहां के रॉयल बंगाल टाइगर्स का वजन औसत से बेहद कम होने का पता चला है। वैज्ञानिक अभी बाघों को लेकर किसी नतीजे पर पहुंच ही नहीं पाए थे कि इल्लियों और पतंगों की नई समस्या सामने आए है। वैज्ञानिकों की चेतावनी है कि सुंदरवन में प्राकृतिक खाद्य श्रृंखला के प्रभावित होने लगी है। इल्लियों और पतंगों का हमला शायद उसी की चेतावनी है।