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Last Updated : बुधवार, 1 अक्टूबर 2014 (19:32 IST)

नई संचार तकनीक, नई चुनौतियाँ

न्यू डिजिटल डाटा चैलेंज

Digital Data Challenge | नई संचार तकनीक, नई चुनौतियाँ
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इंटरनेट और मोबाइल फोन का प्रचार-प्रसार बहुत तेजी से बढ़ रहा है, इसे हम सभी जानते हैं। पर,क्या हम यह भी जानते हैं कि इससे संसूचना (इन्फॉर्मेशन) और दूरसंचार (टेलीकम्यूनिकेशन) तकनीक के आगे क्या-क्या नई चुनौतियाँ पैदा हो रही हैं?

फरवरी के आरंभ में स्पेन के बार्सेलोना नगर में लगे संसार की सबसे बड़े मोबाइल फोन मेले के दर्शक जहाँ इस बात पर मुग्ध हो रहे थे कि टेलीविजन के साथ-साथ अब मोबाइल फोन भी त्रिआयामी (थ्री-डाइमेंशनल) होने जा रहा है, वहीं संसूचना व दूरसंचार विशेषज्ञ इस बात को लेकर चिंतित थे कि डिजिटल डेटा के प्रवाह में हो रहे इस अपूर्व विस्फोट को संभाला कैसे जाए?

उन्हीं दिनों विज्ञान पत्रिका साइंस में प्रकाशित एक लेख में दो अमेरिकी विशेषज्ञों ने लिखा कि सभी डिजटल सूचना-संग्रह माध्यमों पर संसार भर में जो सूचनाएँ संग्रहित हैं, उनकी मात्रा चार साल पहले, 2007 में, 295 ट्रिलियन बाइट के बराबर थी। एक अमेरिकी ट्रिलियन 1 के बाद 12 शून्यों वाली संख्या है। भारत में हम उसे 10 खरब कहेंगे।

पृथ्वी से चाँद की दूरी से भी आग
295 ट्रलियन बाइट सूचनाओं का यह वास्तव में इतना बड़ा भंडार है, कि उसे यदि CD-ROM पर जमा करना हो और सारे CD एक के ऊपर एक रखने हों, तो उनकी ऊँचाई पृथ्वी से चाँद की दूरी से भी आगे चली जाएगी। तब भी, यह स्थिति आज की नहीं, चार साल पहले की थी।

इस समस्या के जानकार जर्मनी के मॉक्सीमिलियन शौएनहेर का कहना है कि इससे भी, कम से कम दस गुना अधिक बाइट के बाराबर, वे डेटा हैं, जिनका चार साल पहले हम मनुष्यों ने टेलीफोन और इंटरनेट के द्वारा आपसी बातचीत में आदान-प्रदान किया।

तीसरा वर्ग है उन सूचनाओं का, जो घरेलू कंप्यूटर, गेम कंप्यूटर, मोबाइल फ़ोन और बड़े-बड़े कंप्यूटरों की गणना-क्षमता कहलाती हैं। यह गणना-क्षमता हर साल 58 प्रतिशत की दर से, लोगों के बीच आपसी संवाद 28 प्रतिशत की दर से और लंबे समय के लिए सूचना-संग्रह 23 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। हो यह रहा है कि सभी प्रयोजनों को मिला कर जिस तेजी से डेटा प्रवाह बढ़ रहा है, उस तेजी से इंटरनेट सेवा या मोबाइल फोन नेटवर्क की तकनीकी क्षमता बढ़ नहीं पा रही है।

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लंगड़ाते स्मार्टफो
जिन लोगों ने स्मार्टफोन कहलाने वाले एक से बढ़ कर एक आधुनिक मोबाइल फोन खरीद रखे हैं या टैबलेट पीसी लिए घूमते हैं, उनका दिन अक्सर कोसते-धिक्कारते और झल्लाहट उतारते बीतता है। वे पाते हैं कि हजार टीम-टाम से लैस उनका फोन या टैबलेट कंप्यूटर ऐन मौके पर लंगड़ाने लगता है। वे भड़ास अपने फोन या कंप्यूटर पर उतारते हैं, जबकि दोष मोबाइल नेटवर्क का होता है। फोन की ग्राहकी बेचने वाले भी यह नहीं बताते कि आजकल के उच्चकोटि के फोनों की क्षमता नेटवर्क की पहुँच से कहीं आगे है, इसलिए सड़कों की तरह अब मोबाइल नेटवर्क पर भी ट्रैफिक जाम होने लगा है।

बार्सेलोना वाले मोबाइल फोन मेले के समय वहाँ एक विश्व मोबाइल सम्मेलन का भी आयोजन हुआ। इस सम्मेलन में अंतरराष्ट्रीय दूरसंचार संघ ITU के महासचिव हमादू तूरे ने कहा कि हमारी नई सदी का पहला दशक मोबाइल फोन नेटवर्क के तूफानी निर्माण का दशक था। इस समय चल रहा दूसरा दशक मोबाइल ब्रॉडबैंड और स्मार्ट उपभोक्ता उपकरणों का दशक होगा।

जरूरत है मोबाइल ब्रॉडबैंड क
बात सिर्फ स्मार्ट फोनों की ही नहीं है, ऐसे बहुविध (स्मार्ट) दूरनियंत्रण उपकरण भी बाजार में आ रहे हैं, जो वायरलेस तकनीक पर आधारित हैं। उनकी संख्या अभी से 50 करोड़ पहुँच गई है। 2015 तक दो अरब हो जाने का अनुमान है। प्रयास यह भी है कि तब तक संसार की आधी जनसंख्या के पास, यानी साढ़े तीन अरब लोगों के पास, तेज गति इंटरनेट की भी सुविधा हो।

अंतरराष्ट्रीय दूरसंचार संघ ITU के महासचिव हमादू तूरे ने कहा, इन भावी नवीनताओं को देखते हुए मोबाइल फोन के लिए इस समय उपलब्ध फ्रीक्वेंसी-बैंड पूरे नहीं पड़ेंगे। इसलिए हमने संसार भर की सरकारों से कहा है कि वे मोबाइल फोन नेटवर्क के लिए नई फ्रीक्वेंसियाँ और बैंड उपलब्ध कराएँ। तूरे ने बताया कि अगले वर्ष विश्व रेडियो सम्मेलन होने वाला है। सम्मेलन के दौरान प्रयास यही होगा कि इस समय संसार भर में टेलीविजन प्रसारण को एनालॉग से डिजिटल बनाने की प्रक्रिया से जो बहुत सी फ्रीक्वेंसियाँ खाली होंगी, उनका मोबाइल इंटरनेट का विस्तार करने हेतु उपयोग किया जाए।

लेकिन, असली ब्रॉडबैंड या डेटा हाईवे तो तब आएगा, जब सब जगह ग्सास फाइबर (काँच के रेशे वाले) केबल बिछे होंगे। यह इतना महँगा सौदा है कि फिलहाल रेडियो फ्रीक्वेंसियों के बेहतर इस्तेमाल जैसे वायरलेस उपायों से ही काम चलाना होगा। मोबाइल फोन के डेटा संचार के लिए बने एक नये मानक (स्टैंडर्ड) 'लाँग टर्म इवोल्यूशन' LTE से यही आशा की जा रही है।

नया मानक है एलटी
LTE मोबाइल फ़ोन तकनीक की एक बिल्कुल नई पीढ़ी है, जिसे 3GPP-LTE, 3.9G,High Speed OFDM Packet Access (HSOPA), E-UTRAN (Evolved UTRAN) और Super 3G के नाम से भी जाना जाता है। LTE इस समय सबसे तेज तीसरी पीढ़ी (3G) वाले तकनीकी मानक UMTS (यूनीवर्सल मोबाइल टेलीकम्यूनिकेशन्स सिस्टम) से कहीं बढ़-चढ़ कर है, हालाँकि उसके भी उत्तराधिकारी LTE-Advanced के विकास का भी काम शुरू हो गया है।

LTE का सबसे बड़ा लाभ यह बताया जाता है कि उसके लिए इस समय के UMTS वाले रिसीवर-ट्रांसमिटर सेलों (एन्टेना स्टेशनों) में ख़ास परिवर्तन नहीं करने पड़ेंगे, फ्रीक्वेंसी-बैंडों की संख्या कहीं बढ़ जायेगी और अधिकतम 300 Mb प्रतिसेकंड डाउनलोड और 75 Mb प्रतिसेकंड अपलोड करना संभव हो जायेगा। उसके फ्रीक्वेंसी-बैंड होंगे 1,4, 3, 5, 10, 15 और 20 मेगाहर्ट्ज के। जर्मनी सहित कई देशों में इस बीच LTE फ्रीक्वेंसियों की नीलामी हो भी चुकी है।

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ऊँची दुकान में फीके पकवान
LTE का प्रचलन शुरू हो जाने पर मोबाइल ोन या इंटरनेट पर कोई वीडियो िल्म देखने की इस समय की सारी असुविधाएँ दूर हो जाने का दावा किया जा रहा है। फिल्म रुक-रुक कर या लंगड़ाती हुई आगे बढ़ती नहीं लगेगी। लेकिन, मोबाइल फोन तकनीक के जर्मन विशेषज्ञ मानफ्रेड क्लोइबर यहाँ भी ऊँची दुकान में फीके पकवान देखते है।

उनका कहना है कि हालाँकि बार्सेलोना में LTE मानक वाले प्रथम फोन भी दिखाए गए, पर उससे की जा रही सारी आशाएँ शुरू में ही पूरी नहीं हो जाएँगी। LTE वास्तव में एक ऐसा वायरलेस इंटरनेट मानक है, टेलीफ़ोन वार्ताएँ जिसके अनेक प्रयोजनों में से केवल एक प्रयोजन है। अभी तक तो मोबाइल फोन कंपनियाँ आपस में यही तय नहीं कर पाई हैं कि LTE मोबाइल फोन सेवा का स्वरूप क्या होगा।

क्लोइबर के अनुसार, उदाहरण के लिए, LTE में 'IP मल्टीमीडिया सबसिस्टम' नाम की एक ऐसी युक्ति होगी, जिसके द्वार डेटा-प्रवाह की क्वॉलिटी और मात्रा को उसकी किस्म और ग्राहक के अनुरूप नियंत्रित किया जा सकेगा।

'फ़ास्ट ट्रैक'भी और चुंगी-चौकियाँ भी
व्यवहार में इसका मतलब यह होगा कि, उदाहरण के लिए, बोल-बात वाले शाब्दिक डेटा को प्राथमिकता देने के उसी तरह के 'फ़ास्ट ट्रैक' बनाए जा सकते हैं, जिस तरह के फ़ास्ट ट्रैक हम बसों इत्यादि के लिए कुछ सड़कों पर देखते हैं। लेकिन, इसका मतलब यह भी हो सकता है कि जिस तरह कुछ सड़कों पर चुंगी-चौकियाँ या पुलिस- बाधाएँ होती हैं, वैसी ही बाधाएँ भी खड़ी की जा सकती हैं। ठीक इस समय भी तीसरी पीढ़ी वाले 3G मोबाइल फ़ोन के उपयोक्ता IP ऐप्स के द्वारा टेलीफ़ोन शुल्क से जहाँ बचने की कोशिश करते हैं, वहीं मोबाइल फ़ोन कंपनियाँ इसे रोकने में कोई कसर नहीं छोड़तीं।

जर्मनी की सरकार ने इस बीच मोबाइल फ़ोन कंपनियों से कहा है कि उन्हें LTE मानक को सबसे पहले देश के उन देहाती इलाकों में अपनाना होगा, जहाँ तेज गति इंटरनेट वाले DSLकेबल नहीं बिछाए गऐ हैं। उन्हें उन फ्रीक्वेंसी-बैंडों का उपयोग करना होगा, जो अब तक एनॉलॉग टेलीविजन प्रसारण के लिए आरक्षित थे। इन फ्रीक्वेंसी-बैंडों के सिग्नल कहीं दूर-दूर तक पहुँचते हैं, इसलिए उनके प्रसार के लिए उससे कहीं कम एन्टेना सेलों (टॉवरों) की जरूरत पड़ेगी, जितनी इस समय पड़ती है। लोगों को अपने घरों में DSLके बदले LTE-WLAN रूटर लगाना होगा, ताकि वे इंटरनेट का भी लाभ उठा सकें।

लोग तब भी भुनभुनाएँगे
मानफ्रेड क्लोइबर का मत है कि लोग तब भी भुनभुनाएँगे, क्योंकि वायरलेस इंटरनेट सामान्य (टेलीफोन केबल से जुड़े) इंटरनेट से कहीं महँगा होगा और उसके लिए कोई फ्लैट रेट (एकमुश्त किराया) भी नहीं होगा। कुछ कंपनियाँ फ्लैटरेट का भी वादा जरूर करेंगी, पर जैसे ही देखेंगी कि इस या उस ग्राहक की डेटा प्रवाह गति उनके लिए फायदेमंद सीमा से बाहर जा रही है, गति को इतना धीमा कर देंगी कि वह केवल ईमेल लिखने लायक रह जाए।

क्लोइबर का मानना है कि जब तक सब जगह काँच केबल नहीं बिछ जाते, ब्रॉडबैंड इंटरनेट का नैरोगेज रेलवे लाइन जैसा यही हाल रहेगा। भारत में भी एक न एक दिन LTE का पदार्पण होगा ही। कहने की आवश्यकता नहीं कि तब भारत में भी ब्रॉडबैंड इंटरनेट के नाम पर यही सब नाटक होगा।