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Written By WD

अंतरिक्ष में टॉयलेट की समस्या..!

अंतरिक्ष में टॉयलेट की समस्या..! -
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वैज्ञानिक बता रहे हैं कि अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष केन्द्र (आईएसएस) पर अपने प्रवास के दौरान अंतरिक्ष यात्री कैसे टॉयलेट का इस्तेमाल करते हैं। एक वीडियो में वैज्ञानिक हैंक ग्रीन बताते हैं कि गंदगी को इकट्‍ठा करने के लिए कैसे पम्प्स का इस्तेमाल किया जाता है। मूत्र को एकत्र करने के लिए एक फनल या कीप का इस्तेमाल किया जाता है, जिसमें एक हौज लगा होता है। इस तरह द्रव को इकट्‍ठा किया जाता है। एक एंटी ग्रेविटी मशीन की मदद से इस द्रव को रिसाइकल‍ किया जाता है और इसे फिर से पीने के पानी में बदला जाता है।

डेलीमेल ऑन लाइन में छपे एक लेख के अनुसार क्या कभी आपको इस बात पर आश्चर्य हुआ है कि आईएसएस पर भारहीनता के वातावरण में अंतरिक्ष यात्री कैसे टॉयलेट जाते होंगे? इस बारे में आपकी जिज्ञासा को मोंटाना के वैज्ञानिक हैंक ग्रीन शांत करते हुए कहते हैं कि आपको माइक्रो ग्रेविटी संडास के बारे में जानना होगा। अपने वीडियो में ग्रीन विस्तार से बताते हैं कि अंतरिक्ष यात्रियों को एक चूषण व्यवस्था (सक्शन सिस्टम) का उपयोग करना होता है। इन्हें क्रमश: नंबर वन और नंबर टू कहा जाता है। विदित हो कि आईएसएस पर जीवन के लिए अनिवार्य व्यवस्थाओं के तहत कुछ वेस्ट का फिर से इस्तेमाल किया जाता है।

अंतरिक्षयात्रियों को एक छोटी से टॉयलेट सीट पर बैठना पड़ता है जिसमें एक बहुत छोटा सा द्वार होता है। जबकि पृथ्वी पर हम ऐसी टॉयलेट सीटों का इस्तेमाल करते हैं जोकि 12 से 28 इंच तक व्यास की होती हैं। पर अंतरिक्ष में यह सीट केवल चार इंच तक ही चौड़ी होती है। उनको अपनी सीट पर बने रहने के लिए नियंत्रकों का इस्तेमाल करना होता है ताकि जब वे सीट पर बैठें तो गंदगी इधर उधर ना होने पाए। इसका प्रशिक्षण देने के लिए नासा एक ऐसे टॉयलेट का इस्तेमाल करती है जिसमें अंदर एक कैमरा लगा होता है जिसकी मदद से टॉयलेट सीट पर सही तरीके से बैठने का अभ्यास करते हैं।

उल्लेखनीय है कि अंतरिक्ष में टॉयलेट एक वैक्यूम क्लीनर की तरह काम करता है और ठोस अपशिष्ट (सॉलिड वेस्ट) को यह चूस लेता है। गौरतलब है कि इस अपशिष्ट को अंतरिक्ष में फेंक नहीं दिया जाता है, वरन इसे स्टेशन के एक कैपसूल में रख दिया जाता है जिसे पृथ्वी पर भेज दिया जाता है। लेकिन पेशाब करने की अलग व्यवस्था होती है और इसके लिए एक अलग यंत्र का इस्तेमाल किया जाता है। प्रत्येक अंतरिक्षयात्री को एक फनल दी जाती है जिससे एक हौज एडेप्टर जुड़ा होता है। जब अंतरिक्ष यात्री फनल का इस्तेमाल करते हैं तो इसके पंखे (फैंस) पेशाब को बाहर निकालकर एक वेस्ट वाटर टैंक में जमा कर देते हैं।

ग्रीन बतलाते हैं कि साधारण तौर पर पुरुष और महिला अंतरिक्षयात्रियों के लिए अलग-अलग किस्म के सेट अप्स नहीं होते हैं, लेकिन यह महिलाओं के लिए अधिक सुविधाजनक होते हैं। वे फनल्स को सीधे अपने शरीर से चिपका सकती हैं और जो उनके शरीर से पूरी तरह से फिट हो जाती है। इसके बाद चूषण (सक्शन) को चालू किया जा सकता है। लेकिन पुरुषों के लिए यह थोड़ा मुश्किल होती है क्योंकि उन्हें फनल को पकड़कर अपने शरीर के इतने पास रखनी पड़ती है ताकि सारी पेशाब फनल में ही जाए और इसके साथ यह भी ध्यान रखना पड़ता है कि फनल को इतनी जोर से शरीर से ना जोड़ें कि इससे कोई चोट पहुंचे।

आपको यह जानकर भी आश्चर्य होगा कि अंतरिक्ष में उपयोग की जाने वाली टॉयलेट सस्ती नहीं होती है और इसे बनाने में एक करोड़ दस लाख पौंड (या दस करोड़ 90 लाख डॉलर) से अधिक राशि खर्च होती है। जबकि पूरे सेट अप को बनाने में पंद्रह करोड़ पौंड (या पच्चीस करोड़ डॉलर) तक की राशि खर्च होती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि पेशाब की सुविधा बहुत जटिल होती है।

वर्ष 2008 से अंतरिक्षयात्रियों ने एक नई व्यवस्‍था का उपयोग किया जोकि पेशाब को शुद्ध कर इसे पानी में बदल देती है। इस पानी को दोबारा से रिसाइकल किया जाता है और इसका इस्तेमाल पीने के पानी और नहाने के लिए किया जाता है। अंतरिक्ष में पेशाब का तो इस्तेमाल कर लिया जाता है लेकिन अगर वैज्ञानिक गंदगी का भी कोई इस्तेमाल खोज लें तो अंतरिक्ष यात्रियों को और भी सुविधा होगी।