Hirpora red potato: दक्षिण कश्मीर के हिरपोरा इलाके के स्थानीय लोगों ने इसे स्वीकार किया है कि कश्मीर का स्वदेशी हिरपोरा लाल आलू (Hirpora red potato), जो अपने अनोखे स्वाद और बनावट के लिए प्रसिद्ध है, विलुप्त होने के कगार पर है। ऐतिहासिक मुगल रोड के किनारे स्थित और हिरपोरा वन्यजीव अभयारण्य (Wildlife Sanctuary) से घिरा हिरपोरा पारंपरिक रूप से आलू की खेती के लिए जाना जाता है।
इन कारणों से आ रही है कमी : पत्रकारों से बात करते हुए हिरपोरा के निवासियों ने कहा कि पूरे भारत में अपने विशिष्ट स्वाद और कुरकुरेपन के लिए जाने जाने वाले आलू की खेती में रासायनिक उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग, बीमारियों के प्रकोप और खराब उपज जैसे कारकों के कारण नाटकीय रूप से कमी देखी गई है।
स्थानीय किसान अब्दुल रहमान का कहना था कि एक दशक पहले हिरपोरा के लगभग हर घर में यह लाल आलू उगाया जाता था। अब गांव के 800 परिवारों में से केवल 10 से 20 परिवार ही इसे उगाते हैं और वह भी बहुत छोटे पैमाने पर।
गिरावट के बावजूद स्थानीय लोग आशान्वित : गिरावट के बावजूद स्थानीय लोग आशान्वित हैं, कुछ लोग अभी भी कम मात्रा में इस बेशकीमती फसल को उगाना जारी रखे हुए हैं। उनका मानना है कि सरकार इन किसानों से बीज खरीदकर और यह सुनिश्चित करने के बाद कि बीजरोग मुक्त हैं और ठीक से जांचे गए हैं, उन्हें अन्य उत्पादकों को वितरित करके इसके पुनरुद्धार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
विशेषज्ञों का मत था कि खेती के तरीकों में बदलाव, विशेष रूप से क्षेत्र में सेब के बागों की बढ़ती संख्या ने आलू की गुणवत्ता और मात्रा को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है। उन्होंने कहा कि सेब की खेती के अतिक्रमण से मिट्टी की संरचना और सूक्ष्म जलवायु में बदलाव आया है जिसने बदले में आलू की खेती को प्रभावित किया है।
वे कहते थे कि हमने आलू की अन्य किस्मों को भी आजमाया, लेकिन हिरपोरा रेड जैसी कोई भी किस्म इस क्षेत्र में नहीं बची। इस आलू में अद्वितीय गुण हैं और यह 1,600 मीटर से अधिक ऊंचाई पर सबसे अच्छा पनपता है। हिरपोरा और पास का सेडो क्षेत्र इसे उगाने के लिए आदर्श है।
क्या कहते हैं कृषि विभाग के अधिकारी? : उत्पादन में गिरावट को स्वीकार करते हुए कृषि विभाग के एक अधिकारी का कहना था कि सरकार स्थिति से अवगत है और उसने हिरपोरा रेड आलू के पुनरुद्धार के लिए 2 परियोजनाएं उच्च अधिकारियों को सौंपी हैं जिनमें शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय शामिल है। अधिकारी के बकोल, विभाग इस स्वदेशी किस्म को पुनर्जीवित करने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रहा है।
अधिकारियों के अनुसार एक किसान ने परीक्षण के लिए अपनी जमीन देने पर सहमति जताई है और हम उन लोगों से बीज लेंगे, जो अभी भी लाल आलू उगा रहे हैं। इन बीजों का रोगों के लिए परीक्षण किया जाएगा और हम स्कास्ट के विशेषज्ञों के साथ मिलकर यह पता लगाएंगे कि आलू का उत्पादन कम क्यों है और इसका आकार छोटा क्यों है? विभाग खेती के लिए सर्वोत्तम परिस्थितियों का पता लगाने के लिए मिट्टी की जांच भी कर रहा है।
बालपोरा में कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) अलग से पुनरुद्धार कार्यक्रम पर काम कर रहा है। अधिकारी ने कहा कि इस लाल आलू में स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने की क्षमता है। यह उच्च ऊंचाई पर पनपता है, जो इसे हिरपोरा और सेडो जैसे क्षेत्रों के लिए उपयुक्त बनाता है। हम अपने पुनरुद्धार प्रयासों के हिस्से के रूप में कम पैदावार के कारणों और फसल को प्रभावित करने वाली संभावित बीमारियों सहित सभी कारकों पर विचार कर रहे हैं। हमें विश्वास है कि स्थानीय किसानों के सहयोग से हम सफल होंगे।
Edited by: Ravindra Gupta