मेटा (Meta) के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग द्वारा हाल ही में की गई घोषणाओं ने सोशल मीडिया और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बीच की बहस को फिर से गर्मा दिया है। जुकरबर्ग ने घोषणा की है कि उनकी कंपनी अपने प्लेटफार्मों जैसे फेसबुक, इंस्टाग्राम और थ्रेड्स से फैक्ट-चेकर्स (तथ्य-जांचकर्ताओं) को हटा देगी। उनका कहना है कि इससे 'सेंसरशिप में नाटकीय रूप से कमी आएगी,' और राजनीति से जुड़ी सामग्री को बढ़ावा मिलेगा। यह कदम एक्स (पूर्व में ट्विटर) के सामुदायिक नोट्स के समान फीचर अपनाने की योजना का हिस्सा है।
मार्क जुकरबर्ग का मानना है कि मेटा के फैक्ट-चेकर्स 'राजनीतिक रूप से पक्षपाती' थे और उन्होंने मंच के प्रति विश्वास को नुकसान पहुंचाया है। उन्होंने यह भी कहा कि कंपनी की कंटेंट मॉडरेशन टीमें अब कैलिफ़ॉर्निया से टेक्सास स्थानांतरित होंगी, जिससे 'पूर्वाग्रह की चिंताओं' को कम किया जा सके। हालांकि, उन्होंने स्वीकार किया कि इस बदलाव से ग़लत चीज़ों को पकड़ने की क्षमता कम हो सकती है।
मार्क जुकरबर्ग का कहना है कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बढ़ावा देगा, लेकिन आलोचकों का मानना है कि यह गलत सूचना फैलाने वालों के लिए एक बड़ा अवसर है। जुकरबर्ग के इस कदम की मानवाधिकार संगठनों और विशेषज्ञों ने कड़ी आलोचना की है। नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मारिया रेसा ने इसे 'तथ्य-मुक्त दुनिया' की ओर एक खतरनाक कदम बताया, जो कि 'तानाशाही प्रवृत्तियों' को बढ़ावा दे सकता है। उनका कहना है कि पत्रकारों और फैक्ट-चेकर्स के पास नैतिकता और मानकों का एक ढांचा होता है, जबकि मेटा का यह कदम झूठ, डर और नफरत को बढ़ावा देगा। उल्लेखनीय है कि फेसबुक का अतीत विवादों से भरा रहा है।
मार्क की अमेरिकी सीनेट में माफी : 31 जनवरी 2024 को जुकरबर्ग ने उन बच्चों के परिवारों से माफी मांगी थी जिन्हें सोशल मीडिया के कारण नुकसान हुआ था। 2018 में म्यांमार में फेसबुक की विवादास्पद भूमिका (रोहिंग्या मुसलमानों के नरसंहार में फेसबुक के इस्तेमाल) को लेकर मेटा ने स्वीकार किया था कि इसका उपयोग हिंसा भड़काने, विभाजन को बढ़ावा देने और ऑफ़लाइन हिंसा को भड़काने के लिए किया गया था।
फ्रांसिस हौगेन का खुलासा (2021) : मेटा की एक व्हिसलब्लोअर के खुलासे में बताया गया था कि कंपनी ने सुरक्षा के बजाय लाभ को प्राथमिकता दी, जिससे अफ्रीका और मध्य-पूर्व जैसे क्षेत्रों में हिंसा और अपराध बढ़े। मेटा की पूर्व कर्मचारी फ्रांसिस हौगेन ने दावा किया था कि फेसबुक के अफ्रीका और मध्य पूर्व जैसे गैर-अंग्रेजी भाषी प्लेटफॉर्म्स में सुरक्षा नियंत्रण की कमी थी और इथियोपिया में मानव तस्करों और सशस्त्र समूहों द्वारा फेसबुक का इस्तेमाल किया जा रहा था।
फिलीपींस में एमनेस्टी इंटरनेशनल ने आरोप लगाया था कि अधिकारियों ने फेसबुक का उपयोग कार्यकर्ताओं को 'रेड-टैग' करने और उन्हें आतंकवादी घोषित करने के लिए किया। मानवाधिकार समूह एमनेस्टी इंटरनेशनल ने दावा किया था कि फिलीपींस में सरकारी अधिकारी फेसबुक का उपयोग युवा कार्यकर्ताओं को 'रेड-टैग' करने के लिए कर रहे हैं, जिसका इस्तेमाल कार्यकर्ताओं और अन्य लोगों को कथित 'कम्युनिस्ट विद्रोहियों' और 'आतंकवादियों' के रूप में लेबल करने के लिए किया जाता है।
क्या हो सकते हैं इसके संभावित प्रभाव : मेटा का यह कदम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम गलत सूचना के प्रसार के बीच संतुलन की जटिलता को उजागर करता है। जुकरबर्ग का तर्क है कि वे लोगों को अधिक स्वतंत्रता देना चाहते हैं, लेकिन आलोचकों का मानना है कि यह गलत सूचना और नफरत फैलाने वालों को खुली छूट देगा।
जुकरबर्ग के इन दावों को कई विशेषज्ञों और मानवाधिकार संगठनों ने चुनौती दी है। नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मारिया रेसा ने मेटा के इस कदम को 'तथ्य मुक्त दुनिया' की ओर एक खतरनाक कदम बताया है। उन्होंने जुकरबर्ग के इस दावे को भी खारिज कर दिया कि फैक्ट-चेकर बहुत अधिक राजनीतिक रूप से पक्षपाती थे। रेसा का कहना है कि पत्रकारों के पास मानकों और नैतिकता का एक समूह होता है, जबकि फेसबुक का यह कदम झूठ, क्रोध, डर और नफरत को मंच पर फैलाने की अनुमति देगा।
मेटा के इतिहास को देखते हुए, यह जरूरी है कि इस निर्णय का गहराई से मूल्यांकन किया जाए। मंच का दुरुपयोग पहले भी समाज में हिंसा और विभाजन का कारण बना है। यह बदलाव सोशल मीडिया के परिदृश्य को बदल सकता है, लेकिन इसकी सफलता इस पर निर्भर करेगी कि मेटा गलत सूचना और नफरत से निपटने के लिए कितने प्रभावी उपाय अपनाता है। यह निर्णय न केवल टेक्नोलॉजी के भविष्य को प्रभावित करेगा बल्कि समाज और लोकतंत्र पर भी गहरा प्रभाव डाल सकता है।