गुरुवार, 19 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. समाचार
  2. मुख्य ख़बरें
  3. अंतरराष्ट्रीय
  4. Why is the French presidential election important for India?
Written By Author राम यादव

भारत के लिए क्यों महत्वपूर्ण है फ्रांस का राष्ट्रपति चुनाव?

भारत के लिए क्यों महत्वपूर्ण है फ्रांस का राष्ट्रपति चुनाव? - Why is the French presidential election important for India?
फ्रांस के वर्तमान राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों और भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की दोस्ती किसी से छिपी नहीं है। फ्रांस लंबे समय से भारत की प्रतिरक्षा तैयारियों में उदारतापूर्वक हाथ बंटा रहा है। ऐसे में भारत के लिए फ्रांस के राष्ट्रपति चुनाव का महत्व काफी बढ़ जाता है। 
 
भारत के लिए फ़्रांस का महत्व : फ्रांस यूरोपीय संघ का अकेला ऐसा देश है, जो भारत की सैन्य शक्ति बढ़ाने में लगातार सहयोग देता रहा है। रफ़ाल विमानों के सौदे को लेकर विपक्ष और मीडिया जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भ्रष्ट और चोर कह रहे थे, उस समय किसी ने ध्यान नहीं दिया कि रफ़ाल के निर्माता फ्रांस को भारत की इस घरेलू चख-चख से कहीं ठेस तो नहीं पहुंच रही! ठेस इसलिए, क्योंकि 
 
प्रथम रफ़ाल विमान के हस्तांतरण समारोह में फ्रांस की रक्षामंत्री मदाम फ्लोरेंस पार्ली ने कहा कि उनका देश भारत के साथ न केवल व्यावहारिक और तकनीकी दृष्टि से सहयोग करेगा, बल्कि ''जब बात 36 रफ़ाल विमानों को समय पर देने की हो, तो वह इस पर भी पूरा ध्यान देगा कि उनका डिज़ाइन भारतीय वायुसेना के विशिष्ट मानदंडों के अनुसार ही बने।''

इस समारोह के बाद जब भारतीय रक्षामंत्री राजनाथ सिंह फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों से मिले, तो माक्रों ने भी एक बहुत ही स्पष्ट और ज़ोरदार अंदाज़ में टिप्पणी करते हुए कहा कि ''फ्रांस की राज्य सत्ता उग्र इस्लामी आतंकवाद से लड़ने के लिए वह सब करेगी, जो वह कर सकती है।''  
 
घनिष्ठ संबंध : नरेंद्र मोदी की सरकार आने के बाद से भारत और फ्रांस के बीच अपने ढंग का एक नया और अनोखा गंठबंधन बना है। प्रमाण के तौर पर प्रेक्षक गिनाते हैं कि फ्रांस और भारत के बीच 11 अरब डॉलर का पारस्परिक व्यापार पहले से ही है। रफ़ाल-सौदा अकेले ही क़रीब 30 अरब डॉलर के बराबर है।

इसके अतिरिक्त भारत को मिले फ्रांस के 49 मिराज युद्धक विमानों के अद्यतीकरण (अपग्रेडेशन) का भी तीन अरब डॉलर का एक अनुबंध है। 80 के दशक में ख़रीदे गए इन विमानों को आधुनिक बनाने का काम भारत में ही 'एचएएल' के कारख़ानों में किया जा रहा है। इसके लिए आवश्यक तकनीकी ज्ञान एवं साधन भारत को पहले ही मिल चुके हैं।
 
फ्रांसीसी डिज़ाइन वाली छह स्कॉर्पीन पनडुब्बियां भी भारत में बन रही हैं। उनके के लिए आवश्यक तकनीकी ज्ञान भारत को हस्तांतरित कर दिया गया है। तीन पनडुब्बिया बन भी चुकी हैं। भारत को मिलने जा रहे 36 में से पहला रफ़ाल सौंपे जाने के समय भारत-विरोधी कुछ लोग समारोह स्थल के पास प्रदर्शन करना चाहते थे, लेकिन उन्हें भगा दिया गया। 
 
जनवरी 2018 में भारत और फ्रांस के बीच नौसैनिक सहयोग के एक दूरगामी समझौते को अंतिम रूप दिया गया था। उस में कहा गया है कि भारतीय नौसेना, अफ्रीका के पास लाल सागर तट पर बसे जिबूती में फ्रांस के मुख्य नौसैनिक अड्डे तथा दक्षिणी हिंद महासागर के रेउन्यों द्वीप समूह वाले फ्रांसीसी नौसैनिक अड्डों का उपयोग कर सकती है।

फ्रांस ही यूरोप का एकमात्र ऐसा देश है, जिस के हिंद महासागर और प्रशांत महासागर में चार नौसैनिक अड्डे हैं। फ्रांस के पास अबू धाबी में भी एक नौसैनिक सुविधा है। भारत को उसके इस्तेमाल की भी अनुमति मिल सकती है। 1983 में भारत और फ्रांस के बीच नौसैनिक अभ्यासों की एक परंपरा शुरू हुई थी, जो अब भी अबाध चल रही है।

1998 में भारत द्वारा दूसरी बार परमाणु परीक्षणों के बाद उस पर लगे प्रतिबंधों को उठाने में भी फ्रांस की प्रमुख भूमिका रही है। वह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता का भी प्रबल समर्थक है। फ्रांस के साथ हुए रफ़ाल जैसे किसी समझौते को लेकर दोषारोपण करने वालों को पहले इन तथ्यों को जान लेना चाहिए।

मोदी-माक्रों दोस्ती : भारत तो यही चाहेगा कि इमानुएल माक्रों ही दुबारा फ्रांस के राष्ट्रपति बनें। प्रधानमंत्री मोदी और माक्रों के बीच बहुत अच्छी पटती भी है। मई 2021 में जब पुर्तगाल में यूरोपीय संघ के नेताओं का शिखर सम्मेलन हो रहा था, तब प्रधानमंत्री मोदी भी आमंत्रित थे। लेकिन भारत में उस समय कोविड-19 के भीषण प्रकोप के कारण उन्हें विडियो के माध्यम से अपनी बात कहनी पड़ी।

वे चाहते थे कि किसी टीके के पेटेंट जैसी बौद्धिक संपत्तियों के संरक्षण संबंधी (टीआरआईपीएस/ ट्रिप्स') समझौते के प्रावधानों को कुछ समय के लिए स्थगित कर दिया जाए, ताकि कोविड-19 के टीके बड़े पैमाने पर तेज़ी से बन सकें। इस पर सबसे अधिक आपत्ति तत्कालीन जर्मन चांसलर अंगेला मेर्कल को थी। उनका कहना था कि टीकों के उत्पादन की प्रक्रिया बहुत जटिल होती है। पेटेंट के लिए संरक्षण नहीं होने पर कंपनियां नये टीकों के लिए शोधकार्य में दिलचस्पी नहीं लेंगी।

फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों ने इस का दोटूक जवाब देते हुए कहा : वैक्सीन सप्लाई के बारे में भारत को किसी का भाषण सुनने की ज़रूरत नहीं है। भारत मानवता के हित में पहले ही (वैक्सीनों का) काफ़ी निर्यात कर चुका है। हम यह भी जानते हैं कि भारत इस समय किस स्थिति में है। उन्नत देशों से उन्होनें कहा कि उनका पहला कर्तव्य ग़रीब देशों को टीके दान में देना होना चाहिए।(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और करीब एक दशक तक डॉयचे वेले की हिन्दी सेवा के प्रमुख रह चुके हैं)