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Last Updated : गुरुवार, 24 जुलाई 2025 (15:43 IST)

अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप बन गए हैं यूरोप के लिए सिरदर्द

Trump became a headache for Europe
Trump Headache for Europe: अमेरिका में डॉनल्ड ट्रम्प के दुबारा राष्ट्रपति बनने से ठीक पहले तक यूरोप-वासियों को पूरा विश्वास था कि दशकों से चल रहा यूरोप-अमेरिकी गठजोड़, अभी कई और दशकों तक पूर्ववत ही बना रहेगा। वे सोच रहे थे कि जर्मनी से गए ट्रम्प के परदादा की तरह, अमेरिका के लगभग सारे गोरे निवासी अतीत में क्योंकि यूरोप से ही जा कर वहां बसे थे, इसलिए इस बीच दुनिया का सबसे धनवान और बलवान देश बन गए अमेरिका का वरदहस्त, नाटो सैन्य गठबंधन के रूप में, यूरोप- वासियों की आगे भी प्रसन्नतापूर्वक रक्षा करता रहेगा। 
 
यूरोप-वासियों की यह खामख़याली, डॉनल्ड ट्रम्प के शपथ-ग्रहण के बाद से ही चिलचिलाती धूप में रखी बर्फ की तरह पिघलने लगी है। मत सर्वेक्षण यही कहते दिख रहे हैं कि जिसने ट्रंप पर भरोसा किया, उसका होगा बंटाधार! 
 
मतसर्वेक्षण : 'यूरोपियन काउन्सिल ऑन फॉरेन रिलेशन्स (ECFR)', हिंदी में 'यूरोपीय वैदेशिक संबंध परिषद' एक ऐसा यूरोपीय 'थिंक टैंक' है, जो अपने निष्पक्ष सर्वेक्षणों और विश्लेषणों के लिए पुरस्कार पा चुका है। उसने मई, 2025 में 12 यूरोप देशों के 16,440 निवासियों के बीच यह जानने के लिए एक मतसर्वेक्षण किया कि वे यूरोप के प्रति डॉनल्ड ट्रम्प के रुख को कैसा पाते हैं।
 
इस प्रश्न के उत्तर में कि आप अपने देश की दृष्टि से ट्रम्प को अच्छा पाते हैं या बुरा— रोमानिया के 22, हंगरी के 38, पोलैंड के 36, स्विट्ज़रलैंड के 51, इटली के 48, एस्तोनिया के 47, फ्रांस के 55, ब्रिटेन के 56, जर्मनी के 65, पुर्तगाल के 56, स्पेन के 66 और डेनमार्क के 78 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे अपने देश के लिए ट्रम्प का दुबारा राष्ट्रपति बनना बुरा समझते हैं।
 
इसी प्रकार इस प्रश्न के उत्तर में कि आप विश्वशांति के लिए ट्रम्प को हितकारी मानते हैं या अहितकारी— रोमानिया के 21, हंगरी के 37, पोलैंड के 41, स्विट्ज़रलैंड के 58, इटली के 44, एस्तोनिया के 53, फ्रांस के 50, ब्रिटेन के 60, जर्मनी के 60, पुर्तगाल के 63, स्पेन के 63 और डेनमार्क के 64 प्रतिशत लोगों का मानना था कि ट्रंप विश्व शांति के लिए हितकारी नहीं सिद्ध होंगे।
 
पश्चिमी यूरोप के मत : केवल पश्चिमी यूरोप में हुए एक सर्वेक्षण के अनुसार, रूस के साथ शांति समझौता करने का अमेरिकी प्रशासन का विचार बेहद अलोकप्रिय है। ब्रिटेन, स्पेन, फ्रांस और इटली में 52 से 78 प्रतिशत तक लोग यूक्रेन को समझौता वार्ताओं से बाहर रखने को अस्वीकार्य मानते हैं। शेष यूरोप में भी बड़ी संख्या में लोग यही राय रखते हैं। ज़्यादातर ब्रिटिश नागरिक (65 प्रतिशत) और स्पेनवासी (55 प्रतिशत) सोचते हैं कि रूस किसी भी शांति समझौते के 10 साल के भीतर यूक्रेन पर पुनः हमला कर देगा; 49 प्रतिशत फ्रांसीसी और 48 प्रतिशत जर्मन भी यही मानते हैं। इटली के लोग इस पर बंटे हुए हैं— 35 प्रतिशत मानते हैं कि एक और युद्ध की संभावना है, पर 37 प्रतिशत ऐसा नहीं मानते।
 
फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टारमर ने ऐसी किसी भी स्थिति से निपटने के लिए यूक्रेन में यूरोपीय शांति सैनिकों को तैनात करने का प्रस्ताव रखा है, किंतु दोनों देशों में इस विचार का समर्थन और विरोध करने वालों का अनुपात अपेक्षाकृत अधिक पाया गया। लगभग 52 प्रतिशत ब्रिटिश नागरिक इस योजना का समर्थन करते हैं, जबकि 27 प्रतिशत लोग इसके विरोध में हैं। 49 प्रतिशत फ्रांसीसी इसके पक्ष में और 29 प्रतिशत इसके विरोध में हैं। 53 प्रतिशत स्पेनवासी भी समर्थन में थे, लेकिन जर्मनी और इटली में केवल 36 और 37 प्रतिशत लोग ही इसके लिए तैयार थे।
 
अमेरिका की केंद्रीय भूमिका नहीं :  'यूरोबैरोमीटर' कहलाने वाले यूरोपीय संघ के 25 मार्च के मतसर्वेक्षण में पाया गया कि संघ के सदस्य देशों की 74 प्रतिशत जनता यूरोपीय संघ की सदस्यता से लाभान्वित होती रही है, इसलिए वह यूरोपीय संघ की नीतियों के साथ है। इस सर्वेक्षण के बहाने से अमेरिका को यह संदेश दिया जा रहा है कि यूरोपवासी एक ऐसी वैश्विक व्यवस्था बनाना चाहते हैं, जिसके अंतर्गत 'यूरोपीय महाद्वीप की सुरक्षा में अमेरिका की केंद्रीय भूमिका नहीं होगी।' यूरोपवासी अपने लिए मित्र तो चाहते हैं, पर साथ ही वे आज की अनिश्चय भरी दुनिया में 'अपने पैरों पर आप खड़े होने की तैयारी भी कर रहे हैं।' 
 
इस जनमत सर्वेक्षण में स्वीडन का उदाहरण देते हुए कहा गया है कि स्वीडन एक ऐसा देश है, जो अटलांटिक महासागर के पार बसे अमेरिका के साथ गहरे सांस्कृतिक एवं राजनितिक संबंधों से जुड़ा रहा है। वह यूरोपीय संघ में पूरी तरह घुल-मिल जाने से बचता रहा है। तब भी, मतसर्वेक्षण के माध्यम से वहां की 79 प्रतिशत जनता ने यही कहा है कि यूरोपीय संघ की सदस्यता उसके लिए अच्छी रही है।
 
स्वीडिश जनता का मत : स्वीडन के ही सर्वाधिक बिक्री वाले दैनिक 'दागेन्स न्यीहेतर' ने अपने एक अलग जनमत सर्वेक्षण में पाया कि अमेरिका के प्रति स्वीडिश जनता का मत इस बीच बहुत तेज़ी से बदला है। अब केवल 10 प्रतिशत लोग ही अमेरिका के बारे में सकारात्मक विचार रखते हैं। इस गिरावट के पीछे मुख्य कारण राष्ट्रपति ट्रंप का घमंडी अक्खड़पन ही है। इस दैनिक के अनुसार, स्वीडन के 86 प्रतिशत लोग ट्रंप को लोकतंत्रिक मानदंडों और बहुपक्षवाद के प्रति अमेरिकी प्रतिबद्धता में गिरावट का प्रतीक मानते हैं। इस कारण अमेरिका तथाकथित 'आज़ाद दुनिया' (फ्री वर्ल्ड) की नेतागिरी अब खो चुका है। 
 
समग्र यूरोप के स्तर पर, 'यूरोबैरोमीटर' मतसर्वेक्षण के 66 प्रतिशत प्रतिभागियों का यही संदेश है कि वैश्विक संकटों और यूरोप की सुरक्षा संबंधी प्रश्नों के प्रसंग में, यूरोपीय संघ को अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिए अपनी तैयारियों को बढ़ाना होगा।
 
यूरोपीय संघ के लिए रूस परम शत्रु : यूरोपीय संघ के केवल हंगरी और स्लोवाकिया दो ऐसे देश हैं, जहां की सरकारें यूरोपीय एकता के प्रश्न पर बाक़ी देशों जैसा उत्साह नहीं दिखातीं। दोनों का रूस की तरफ झुकाव, यूरोपीय संघ के बाकी देशों को पसंद नहीं आता। यूक्रेन पर हमले के कारण यूरोपीय संघ ने रूस को अपना परम शत्रु घोषित कर रखा है। उसका हर प्रकार से बहिष्कार किया जा रहा है। जबकि हंगरी और स्लोवाकिया रूस से तेल और गैस ले रहे हैं।
 
जहां तक अमेरिका की बात है, डॉनल्ड ट्रंप के दुबारा आते ही यूरोपीय संघ, जो कभी एक शांति परियोजना हुआ करता था, अब एक युद्ध परियोजना बनता जा रहा है— यह प्रक्रिया 2022 में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पूतिन द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण से शुरू हुई है और अब तेज़ होती जा रही है।
 
वास्तव में, द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद का पश्चिमी यूरोप, 1948 में अमेरिका के ही बनाए नाटो सैन्य गठबंधन की शीतल छत्रछाया का आदी हो गया था। कभी सोचा ही नहीं था कि एक दिन ऐसा भी आ सकता है, जब अमेरिका यह कह देगा कि अपनी लड़ाई खुद लड़ो, हम तुम्हारे लिए लड़ने नहीं आएंगे। 
77 वर्ष पुराना नाटो : नाटो सैन्य गठबंधन हालांकि यह सोच कर बना था कि 77 वर्ष पूर्व का तत्कालीन कम्युनिस्ट सोवियत संघ (रूस) यदि पश्चिमी यूरोप के किसी देश पर आक्रमण करने का दुस्साहस करेगा, तो अमेरिका और नाटो के यूरोपीय देश मिलकर उससे लड़ेंगे। 1991 में विघटित सोवियत संघ का उत्तराधिकारी बने आज के रूस द्वारा अपने सीमांत पड़ोसी यूक्रेन पर 24 फरवरी, 2022 के हमले के बाद से, यूरोप की शांति और सुरक्षा को लेकर यूरोपीय संघ के देशों में भयंकर बेचैनी फैल गई है। उन्हें डर है कि रूस को यदि अभी ही नहीं रोका गया, तो बेचारे यूक्रेन को हड़पने के बाद रूसी सैनिक दनदनाते हुए यूरोपीय संघ के पूर्वी देशों में और वहां से बर्लिन और पेरिस तक भी पहुंच सकते हैं। इसलिए, रूस को हर क़ीमत पर यूक्रेन से या तो भगाना या फिर वहीं रोकना होगा। यूरोपीय संघ में कहा जा रहा है कि यूक्रेन को रूस से बचाना, पूरे यूरोप को बचाने के समान है।
 
यूरोपीय संघ के देश लेकिन यह सोच कर परेशान भी हैं कि नाटो के मुखिया अमेरिका की भागीदीरी के बिना तो वे रूस से लड़ ही नहीं पाएंगे। उनके पास वैसे आधुनिक व भारी हथियार हैं ही नहीं, जो अमेरिका के पास हैं। वे चाहते हैं कि अमेरिका, यूक्रेन को ऐसे अमोघ अस्त्र प्रदान करे, जो यूरोपीय संघ के देशों के पास नहीं हैं, ताकि रूस को यूक्रेन तक ही सीमित रखा जा सके।
 
भारत को भी फंसाने का प्रयास : ट्रंप कह रहे हैं कि ऐसे हथियार हम यूक्रेन को तभी देंगे, जब उनकी क़ीमत सहित सारा ख़र्च यूरोपीय संघ उठाएगा। यूरोपीय संघ को ही चीन और भारत को रूसी तेल ख़रीदने से रोकना भी होगा, ताकि रूस को तेल से मिलने वाली आय बंद हो। ट्रंप लगे हाथ भारत और चीन को भी अपने दुश्चक्र में फंसाने का प्रयास कर रहे हैं। 
 
इस तरह यूरोप का पुनः सैन्यीकरण न केवल एक सांस्कृतिक और सैन्य चुनौती बन गया है, बल्कि सबसे पहले एक बजटीय चुनौती भी है। यूरोपीय देश फिलहाल इस बात पर भी विभाजित हैं कि यूरोपीय संघ सुरक्षा और रक्षा के मामले में अमेरिका से क्या सचमुच स्वतंत्र हो सकता है, या अपने आंतरिक मतभेदों को दूर कर एक एकीकृत वैश्विक शक्ति के रूप में कार्य कर सकता है? 
 
रूस की जीत यूरोप के लिए अस्वीकार्य : यूरोप वालों का मानना है कि यूक्रेन में रूस की स्पष्ट जीत, यूरोप के लिए एक अस्तित्वगत ख़तरा होगी। यूक्रेन को एक विश्वसनीय सशस्त्र बल वाले संप्रभु राज्य के रूप में बनाए रखना, अमेरिकी सैन्य गारंटियों से बचने का सबसे अच्छा विकल्प होगा। अधिकांश यूरोपीय नहीं चाहेंगे कि यूक्रेन को दिया जा रहा अपना पूरा सैन्य समर्थन यूरोप वापस ले ले, रूस के कब्ज़े वाले क्षेत्रों को छोड़ने के लिए यूक्रेन पर दबाव डाले या रूस पर लगाए गए अपने आर्थिक प्रतिबंध हटा ले— भले ही ट्रंप का अमेरिका ये काम संभवतः पहले ही कर दे। यूरोपीय कंपनियां भी अपने निर्यातों पर ट्रंप द्वारा थोपे जा रहे सीमा-शुल्कों से घबराई हुई हैं।
 
इस समय का सबसे बड़ा विरोधाभास यही है कि जहां राष्ट्रपति ट्रंप, चीन और रूस जैसे प्रमुख प्रतिस्पर्धियों के साथ अपने संबंधों को वैचारिकता से मुक्त कर रहे हैं, वहीं यूरोप के साथ संबंधों को वे अपनी वैचारिकता से बांध रहे हैं। अमेरिका मुख्यतः यूरोप से ही गए लोगों का देश है, पर जर्मनवंशी डॉनल्ड ट्रंप के दुबारा राष्ट्रपति बनते ही यूरोप और अमेरिका के बीच खाई और अधिक चौड़ी हो गई है।
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