हमारा ब्रह्मांड पैदा ही नहीं होना चाहिए था, वैज्ञानिक
लंदन। दुनिया के शीर्ष स्तरीय वैज्ञानिकों का मानना है कि वे अभी भी इस गु्त्थी से दो चार हो रहे हैं कि अपने अस्तित्व में आने के बाद हमारा ब्रह्मांड अपने आपही समाप्त क्यों नहीं हो गया? उनका कहना है कि विज्ञान का भी यही कहना है लेकिन ऐसा क्यों नहीं हुआ, यह उनकी चिंता का विषय है।
ब्रह्मांड के मानक मॉडल के अनुसार ब्रह्मांड की शुरुआत में पदार्थ (मैटर) और एंटी मैटर समान मात्रा में था। माना यह जाता है कि दोनों ही एक दूसरे को समाप्त कर देते और अंत में आज हमारे चारों ओर किसी तरह का कोई मैटर नहीं रहता। लेकिन कभी ऐसा हुआ नहीं जिसके चलते यह ब्रह्मांड आज भी बना हुआ है लेकिन अब वैज्ञानिकों ने कुछ नई खोज करना शुरू कर दी है। शोधकर्ताओं का सारा दिमाग यह जानने में लगा है कि मैटर और एंटी-मैटर में क्या अंतर है और दोनों में क्या अंतर है कि इसके चलते दुनिया अभी भी मौजूद है।
इस क्रम में वैज्ञानिकों ने तमाम अन्य संभावनाओं की तलाश की है। उनका मानना है कि क्या दोनों प्रकार के कणों-मैटर एंड एंटीमैटर- का भार, इलेक्ट्रिक चार्ज और कुछ अन्य अलग है जिसकी जानकारी वैज्ञानिकों को अब तक नहीं है। इस मामले में फास्ट रेडियो का कहना है कि इस संबंध में ब्रह्मांड का सर्वाधिक रहस्यमय संदेश यही है कि ' हमारे सभी प्रेक्षणों में मैटर और एंटीमैटर के बीच पूरी तरह से समरूपता और संतुलन है इसलिए हमारा मानना है कि ब्रह्मांड को तो वास्तव में पैदा ही नहीं होना चाहिए था।' यही विचार सर्न में हाल ही में किए गए एक परीक्षण की लेखिका क्रिस्टीन स्मोरा का कहना है।
वह कहती हैं कि यहां पर कहीं भी असमरूपता या असंतुलन दिखाई देना चाहिए लेकिन हम यह क्यों नहीं समझ पा रहे हैं कि अंतर कहां है, समानता को तोड़ने वाले आधार का स्रोत क्या है? हाल ही में, नवीनतम संभावना इस बात को लेकर है कि मैटर और एंटीमैटर की चुम्बकीयता अलग हो सकती है लेकिन नई शोधों से पता लगता है कि इस मामले में भी दोनों समान हैं लेकिन सबसे बड़ा सवाल अभी भी जहां का तहां है कि ब्रह्मांड आखिर बना क्यों हुआ है?
डॉ. स्मोरा के नेतृत्व में एक नया अध्ययन किया गया जिसके तहत 'एजेंल पार्टीकल' खोजा गया। यह कण दोनों ही मैटर और एंटी मैटर हैं। डॉ. स्मोरा ने इस बात का मापन किया कि एंटी-प्रोटोन्स हमारे आसपास रहने वाले प्रोटोन्स से क्यों अलग हैं? उन्होंने अत्यधिक सूक्ष्म विवरण के साथ एंटी मैटर की चुम्बकीयता को मापा तो उन्हें पता चला कि मैटर और एंटी-मैटर दोनों ही ठीक तरह से समान निकली, यह भी कम आश्चर्यजनक बात नहीं थी।
विदित हो कि सर्न रिसर्च के वैज्ञानिक ऐंटी-प्रोटोन्स को एक विशेष 'पेनिंग ट्रैप्स' में पकड़ते हैं क्योंकि एंटी मैटर को किसी तरह आप एक भौतिक कंटेनर में नहीं डाल सकते हैं। इस तरह छोटी सी अवधि में इस तरह की बढ़ोत्तरी केवल तभी संभव हो सकी जबकि पूरी तरह से नई विधियों का उपयोग किया गया।' इस आशय की जानकारी काम में लगे शोधकर्ताओं के उस गुट के प्रवक्ता स्फीटन उल्मर ने दी।
शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि जल्द ही वे एंटी-प्रोटोन्स की और अधिक गहन तरीके से जांच कर सकेंगे और देखेंगे कि क्या वे इस रहस्य और गहरे तरीके से अन्य संभावनाओं की भी तलाश करेंगे। वै वैज्ञानिक यह पड़ताल कर सकते हैं कि क्या एंटी-मैटर की ग्रेविटी उपर से नीचे की ओर होती है। इसका अर्थ यह है कि यह परिणामस्वरूप उपर से नीचे की ओर है। इस आशय की रिपोर्ट कॉस्मॉस ने दी है।