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Written By Author राम यादव

चीन की हाइपरसोनिक मिसाइलें दुनिया के लिए नई धमकी, भारत के लिए भी चिंता

China hypersonic missiles
चीन पहले से ही अपने पड़ोसी एशियाई देशों के लिए ही नहीं, यूरोप और अमेरिका के लिए भी एक ख़तरा बना हुआ है। यह ख़तरा अब एक नए उत्कर्ष पर पहुंचता दिख रहा है। उसने गुप्त रूप से ध्वनि की गति से भी कई गुनी अधिक गति वाले ऐसे हाइपरसोनिक मिसाइलें बना ली हैं, जो अमेरिका व उसके सभी पश्चिमी मित्र देशों को बहुत बेचैन कर रही हैं। 
 
इस बेचैनी के लिए पश्चिमी देश वास्तव में स्वयं ही ज़िम्मेदार हैं। 9 सितंबर, 1976  को कम्युनिस्ट चीन के संस्थापक माओ त्सेतुंग की मृत्यु के बाद, उनके उत्तराधिकारी देंग श्याओपिंग ने जैसे ही यह कहना शुरू किया कि उन्हें इससे कोई मतलब नहीं है कि 'बिल्ली काली है या सफ़ेद, मतलब इससे है कि वह चूहे पकड़ती है या नहीं', तभी से पश्चिमी देश आंख मूंदकर चीन में धुंआधार ऐसे निवेश करने लगे, मानो चीन भी उन्हीं की तरह का कोई लोकतांत्रिक पूंजीवादी देश ही है। 
 
चीन में निवेश करना और वहां अपनी कोई शाखा खोलना पश्चिमी देशों की कंपनियों के लिए वैश्विक प्रतिष्ठा का पर्याय बन गया। जो चीन नहीं गया, मानो वह कहीं नहीं गया। चीन ने तभी से जो तूफ़ानी आर्थिक और तकनीकी प्रगति की है, वह पश्चिमी देशों के अदूरदर्शी क्षुद्रबुद्धि निवेशों की कृपा और और उनकी तकनीक के बिना संभव नहीं हुई होती। पश्चिमी देश चीनी माल-सामान पर आज इतने निर्भर हैं कि चीन से सस्ते में अपना पिंड छुड़ा भी नहीं सकते।
 
चीन अमेरिका से आगे निकल जाएगा! : वे अब चीख-चिल्ला रहे हैं कि चीन ने 'भौतिकी की सीमाओं' को धक्का मारकर सरकाते हुए DF-17 नाम की मध्यम दूरी की मिसाइल का और उसे DF-ZF नाम के हाइपरसोनिक अस्त्रमुख (वारहेड) से लैस करने का सफल परीक्षण किया है। वे कांप रहे हैं कि चीन न केवल आर्थिक रूप से, बल्कि सैन्यबल से भी अगले कुछ वर्षों में अमेरिका से आगे निकल जाएगा।
 
चीनी हाइपरसोनिक मिसाइलों के कथित परीक्षणों की बार-बार आ रही रिपोर्टों से हो रही बेचैनी को हालांकि छिपाने का भी प्रयास हो रहा है। मीडिया में इसकी चर्चा नहीं के बराबर है। पश्चिमी सैन्य विशेषज्ञ स्तब्ध हैं कि हाइपरसोनिक गति के हथियारों की होड़ में चीन शायद अभी से अमेरिका से भी आगे निकल गया हो सकता है। 
 
20 डिग्री सेल्सियस तापमान पर सामान्य हवा में ध्वनि की प्रसारगति 1,234.8 किलोमीटर प्रतिघंटा होती है। हाइपरसोनिक मिसाइलें वायुमंडल की ऊपरी परतों में 6000 किलोमीटर प्रति घंटे से भी अधिक की गति से यात्रा करती हैं। पारंपरिक अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइलों (आईसीबीएम) के विपरीत, हाइपरसोनिक मिसाइलें एक स्पष्ट प्रक्षेपमार्ग का पालन नहीं करतीं, इसलिए उनका पता लगाना बेहद मुश्किल होता है।
 
इसके अलावा, ये मिसाइलें तेज़ी से अपना उड़नपथ बदल भी सकती हैं, जिसका अर्थ है कि पृथ्वी पर से उन्हें मार-गिराने की कोई हवाई सुरक्षा प्रणाली, सही समय पर उन्हें व उनमें रखे बमों आदि को आकाश में ही नष्ट नहीं कर सकती। हाइपरसोनिक मिसाइलें परमाणु हथियार भी ले जा सकती हैं।
 
परमाणु-सक्षम हाइपरसोनिक मिसाइलों का परीक्षण : चीन परमाणु बम लेजाने के सक्षम हाइपरसोनिक मिसाइलों के परीक्षण कर चुका है और नए परीक्षण भी कर रहा है। दिसंबर 2021 में, अमेरिकी रक्षामंत्रालय पेंटागॉन ने पहली बार परमाणु बम सक्षम चीनी हाइपरसोनिक मिसाइलों के परीक्षण की आधिकारिक पुष्टि की थी। पेंटागॉन ने बताया कि चीन, अगस्त 2021 में अपना परीक्षण कर चुका था। अमेरिकी सेना ने इसे 'चिंताजनक' जानकारी के रूप में वर्गीकृत किया।
 
किंतु चीन इस तरह की ख़बरों का बार-बार खंडन करता रहा है। उसका कहना है कि वे  केवल पुन: प्रयोज्य अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी वाले नियमित परीक्षण थे। अमेरिका में चीनी दूतावास के प्रवक्ता लियू पेंग्यु के अनुसार, 'चीन की हथियारों की दौड़ में कोई दिलचस्पी नहीं है। किंतु सभी जानते हैं कि चीन सच बोलने लगे, तो चीन नहीं रह जाएगा। चीन के पास पहले से ही मध्यवर्ती दूरी के ऐसे बैलिस्टिक मिसाइल हैं, जो हाइपरसोनिक हथियारों से लैस हैं।
 
हाइपरसोनिक ग्लाइडर वारहेड : उन में से एक DF-17 की रेंज 2000 किलोमीटर से अधिक है। 2014 से उसके परीक्षण होते रहे हैं। उसे दोंगफेंग-ज़ेंगफू (डीएफ-जेडएफ) नाम के हाइपरसोनिक ग्लाइडर वारहेड से लैस किया गया है। उसकी गति ध्वनि की गति से 10 गुना अधिक है, यानी 12,000 किलोमीटर प्रति घंटे से भी अधिक है। अमेरिकी खुफिया अनुमानों के अनुसार, यह हाइपरसोनिक मिसाइल बहुत सटीक है और पड़ोसी देशों ताइवान, दक्षिण कोरिया और जापान की हवाई सुरक्षा को दरकिनार करने के सक्षम है। 
 
इस साल अप्रैल में खबरें आई थीं कि चीन ने YJ-21 नामक हाइपरसोनिक मिसाइल का सफलतापूर्वक परीक्षण किया है। जर्मन दैनिक 'फ्रांकफ़ुर्टर रुंडशाउ' ने भी यह ख़बर दी थी। यह मिसाइल समुद्री युद्ध के लिए है। YJ-21 के बारे में कहा जा रहा है कि उसका परिवर्तनशील उड़नपथ बहुत अप्रत्याशित होने के कारण उसे समय रहते मार-गिरना टेढ़ी खीर है। वह 1500 किलोमीटर दूर तक का लक्ष्य साध सकती है। उसके परीक्षणों को अमेरिका के लिए इस चेतावनी के तौर पर देखा जा रहा है कि अमेरिका ताइवान से दूर रहे।
China hypersonic missiles
चीनी परीक्षण ने 'भौतिकी की सीमा' को सरकाया : चीनी मिसाइलों का यह नया युग वास्तव में बहुत पहले ही शुरू हो चुका था। अमेरिका के 'वॉल स्ट्रीट जर्नल' की एक रिपोर्ट के अनुसार, चीन ने 6,000 किलोमीटर प्रति घंटे से भी अधिक की गति वाले एक हाइपरसोनिक ग्लाइडर से एक प्रक्षेप्य (प्रोजेक्टाइल) को दागने में सफलता पाई है। ग्लाइडर को पहले एक हाइपरसोनिक रॉकेट द्वारा प्रक्षेपित किया गया। रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि चीन ऐसा करने में सक्षम हो गया है, तो वह 'भौतिकी की सीमाओं' को धकेल कर सरका देने के समर्थ भी हो गया है।
 
प्रक्षेप्य का प्रकार और उपयोग ज्ञात नहीं है। हालांकि, ऐसा कोई प्रक्षेप्य हवाई रक्षा प्रणालियों को भ्रमित कर सकता है या सीधे किसी लक्ष्य पर हमला भी कर सकता है। इस तरह की हाइपरसोनिक मिसाइल होने का यह भी अर्थ है कि बहुत संभव है कि चीन और भी अधिक दूरी पर के लक्ष्यों को भेदने के समर्थ हो गया होगा। कहा जा रहा है कि ऐसे मिसाइल को रोक पाना लगभग असंभव होगा। वह अमेरिका तक न केवल उत्तरी ध्रुव की तरफ़ से, बल्कि दक्षिणी ध्रुव की तरफ़ से भी पहुंच सकता है।
 
पश्चिमी सैन्य विशेषज्ञ चकित हैं : पश्चिमी सैन्य विशेषज्ञ इन परीक्षणों से चकित हैं। कहा जा रहा है कि अमेरिका के पास  बराबरी की कोई तकनीक नहीं है। उसके लिए यह एक नए 'स्पूतनिक आघात' के समान है। आज के रूस के पूर्ववर्ती सोवियत संघ ने, 1957 में अपना जो पहला उपगग्रह अंतरिक्ष में भेज कर उसे पृथ्वी की परिक्रमा-कक्षा में स्थापित किया था, उसे 'स्पूतनिक' नाम दिया गया था। सोवियत संघ की सफलता ने उस समय अमेरिका सहित सभी पश्चिमी देशों को एकदम सन्न कर दिया था। उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि सोवियत संघ उनसे पहले अंतरिक्ष में पहुंच जाएगा। 
 
भारत के लिए बड़ी चिंता : परमाणु बम ले जाने के सक्षम हाइपरसोनिक मिसाइलों के चीनी परीक्षण, अमेरिका और उसके पश्चिमी मित्र देशों से कहीं अधिक, भारत के लिए भी चिंता का एक नया विषय होने चाहिए। अमेरिका-यूरोप तो फिर भी चीन से कई हज़ार किलोमीटर दूर हैं। भारत की तो चीन के साथ साझी सीमा है और सीमा पर 1962 से बार-बार सैन्य झड़पें भी होती रही हैं। भारत को भी शस्त्रीकरण की एक ऐसी होड़ में शामिल होना पड़ेगा, जो उसके लिए असह्य बोझ सिद्ध हो सकती है। 
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