मुस्लिमों की कॉलोनियां अलग क्यों..?
देश के किसी भी कोने में चले जाएं, देखने में आता है कि मुस्लिम वर्ग के लोग अलग कॉलोनियों और बस्तियों में ही रहते हैं। दरअसल, इंदौर रिलीजन कॉन्क्लैव 'हमसाज' कार्यक्रम के दूसरे दिन इस्लामिक विद्वान अख्तर उल वासे को इस तरह के सवाल का सामना करना पड़ गया।
जब वासे वहां मौजूद लोगों के सवालों का जवाब दे रहे थे, तो एक व्यक्ति ने पूछ लिया कि मुस्लिम लोग अलग कॉलोनी या बस्तियों में क्यों रहते हैं? क्या यह कबीलाई संस्कृति का परिचायक नहीं हैं? और मुसलमान अन्य धर्मों के लोगों के साथ मिलकर रहेंगे तो क्या इससे सामाजिक समरसता को बढ़ावा नहीं मिलेगा।
इस सवाल के जवाब में प्रो. वासे ने कहा कि मुसलमानों को हिन्दुओं के साथ में मिलकर रहना चाहिए। शासन और प्रशासन को चाहिए कि वह इस तरह की व्यवस्था करे। मकान बनाने वाली सरकारी संस्थाओं को इसकी व्यवस्था करनी चाहिए। विभिन्न कॉलोनियों और योजनाओं में मुसलमानों को कुछ भूखंड और भवन आरक्षित किए जाने चाहिए। हिन्दू मूल रूप से सेकुलर हैं। मुसलमानों को बिलकुल भी डरना नहीं चाहिए। निकायों को भी ध्यान रखना चाहिए कि एक वर्ग की कॉलोनियां विकसित ही न हों।
तीन तलाक से जुड़े एक सवाल के जवाब में वासे ने कहा कि मैं तीन तलाक का विरोधी हूं। कुरान में भी कहीं इसका उल्लेख नहीं है। इस्लाम में हलाला की भी कोई गुंजाइश नहीं है, जो ऐसा करता है कि वह अल्लाह का सबसे बड़ा गुनाहगार हैं। बहुविवाह की इस्लाम में इजाजत है, लेकिन कुरान में इसका आदेश नहीं बल्कि प्रावधान है। इस्लाम में महिलाओं को अधिकार हैं। यदि मर्द नामर्द हैं तो महिलाओं खुला लेकर उससे मुक्ति पा सकती हैं।