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Written By WD Feature Desk
Last Updated : मंगलवार, 1 जुलाई 2025 (12:40 IST)

दलाई लामा का चयन कैसे होता है? भारत के तवांग में जन्मे थे छठे दलाई लामा

Dalai Lama Birthday
तिब्बती बौद्ध धर्म के आध्यात्मिक प्रमुख (Dalai Lama) दलाई लामा का चयन एक प्राचीन, पवित्र और गहन परंपरा का हिस्सा है, जो शुभ संकेतों, धार्मिक मान्यताओं और तिब्बती समुदाय की सहमति पर आधारित है। वर्तमान दलाई लामा, तेनजिन ग्यात्सो, 6 जुलाई 2025 को अपना 90वां जन्मदिन मनाएंगे। यह अवसर न केवल उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण पड़ाव है, बल्कि तिब्बती बौद्ध धर्म के भविष्य और 15वें दलाई लामा के चयन की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। आइए, जानते हैं कि दलाई लामा का चयन कैसे होता है और भारत के साथ इसका ऐतिहासिक संबंध क्या है।
 
दलाई लामा का चयन, परंपराएं और प्रक्रिया: वर्तमान दलाई लामा ने कहा है कि वह अगले दलाई लामा के चयन के लिए तिब्बती धार्मिक परंपराओं और तिब्बती जनता से परामर्श करेंगे। उनका कहना है कि यह तय करना जरूरी है कि "दलाई लामा की संस्था को जारी रखना चाहिए या नहीं।" उन्होंने यह भी बताया कि वह इस प्रक्रिया के लिए स्पष्ट लिखित निर्देश छोड़ेंगे। दिलचस्प बात यह है कि दलाई लामा ने संकेत दिया है कि उनका उत्तराधिकारी एक लड़की, एक कीट, या किसी वयस्क में उनकी आत्मा का स्थानांतरण भी हो सकता है। हालांकि, उन्होंने जोर देकर कहा कि अगले दलाई लामा की खोज और पहचान "तिब्बती बौद्ध परंपराओं के अनुसार" ही होगी।
 
दलाई लामा के चयन की प्रक्रिया में निम्नलिखित संकेतों और विधियों का उपयोग किया जाता है:- 
पूर्व दलाई लामा के सामान की पहचान: वर्तमान दलाई लामा, तेनजिन ग्यात्सो, को दो साल की उम्र में 13वें दलाई लामा के सामान को पहचानने की उनकी असाधारण क्षमता के आधार पर चुना गया था। यह प्रक्रिया यह विश्वास दर्शाती है कि दलाई लामा अवलोकितेश्वर बोधिसत्व का अवतार हैं।
 
शुभ संकेत और चमत्कार: इतिहास में कई दलाई लामाओं का चयन शुभ संकेतों के आधार पर हुआ है। उदाहरण के लिए, 1758 में 8वें दलाई लामा के जन्म के समय तिब्बत में भरपूर फसल हुई थी और एक इंद्रधनुष दिखाई दिया, जिसके बारे में कहा गया कि उसने उनकी मां को छुआ था। इसके अलावा, उस बच्चे ने कमल ध्यान की मुद्रा में बैठने की कोशिश की, जिससे उनकी पहचान की पुष्टि हुई।
नाम निकालने की परंपराएं: दलाई लामा के चयन के लिए कई बार विशेष विधियों का उपयोग किया जाता है। एक तरीके में संभावित उत्तराधिकारियों के नाम कागज पर लिखकर आटे की लोइयों में छिपाए जाते हैं। एक अन्य प्राचीन विधि में स्वर्ण कलश से नाम निकाला जाता है। हालांकि, वर्तमान दलाई लामा ने चेतावनी दी है कि बीजिंग के पास मौजूद स्वर्ण कलश का यदि गलत उपयोग हुआ, तो उसमें कोई आध्यात्मिक गुणवत्ता नहीं होगी।
 
भारत और छठे दलाई लामा का ऐतिहासिक संबंध: अब तक 14 दलाई लामाओं का जन्म विभिन्न सामाजिक पृष्ठभूमियों में हुआ है, जिनमें कुलीन परिवारों से लेकर खानाबदोश चरवाहे परिवार शामिल हैं। अधिकांश दलाई लामाओं का जन्म मध्य तिब्बती क्षेत्रों में हुआ, जबकि एक का जन्म मंगोलिया में हुआ। लेकिन एक तथ्य जो भारत को इस परंपरा से जोड़ता है, वह है छठे दलाई लामा, त्सांगयांग ग्यात्सो का जन्म। वे 1682 में भारत के अरुणाचल प्रदेश के तवांग क्षेत्र में पैदा हुए थे। तवांग का मोनपा समुदाय आज भी इस ऐतिहासिक संबंध को गर्व के साथ याद करता है। त्सांगयांग ग्यात्सो एक कवि और आध्यात्मिक नेता थे, जिन्हें उनकी रहस्यमयी जीवनशैली और काव्यात्मक रचनाओं के लिए जाना जाता है।
 
दलाई लामा की संस्था का भविष्य: वर्तमान दलाई लामा ने अपनी उम्र और स्वास्थ्य को देखते हुए अगले दलाई लामा के चयन की प्रक्रिया को और पारदर्शी बनाने की बात कही है। उन्होंने यह भी संकेत दिया है कि यह जरूरी नहीं कि उनका उत्तराधिकारी एक बच्चा ही हो; यह एक लड़की या कोई अन्य रूप भी हो सकता है। यह विचार तिब्बती बौद्ध धर्म की लचीली और समावेशी प्रकृति को दर्शाता है। इसके अलावा, दलाई लामा ने यह भी चेतावनी दी है कि चीन द्वारा दलाई लामा के चयन में हस्तक्षेप की कोशिशें उनकी परंपराओं को कमजोर कर सकती हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि तिब्बती जनता और धार्मिक नेताओं की सहमति ही इस प्रक्रिया का आधार होगी।
 
तिब्बती संस्कृति में दलाई लामा का महत्व: दलाई लामा न केवल तिब्बती बौद्ध धर्म के आध्यात्मिक नेता हैं, बल्कि तिब्बती संस्कृति और पहचान के प्रतीक भी हैं। तिब्बत के लोग उन्हें अवलोकितेश्वर, करुणा के बोधिसत्व का अवतार मानते हैं। 1959 में चीनी दमन के बाद वर्तमान दलाई लामा को भारत में शरण लेनी पड़ी, और तब से वे धर्मशाला, हिमाचल प्रदेश से अपनी गतिविधियों का संचालन कर रहे हैं। भारत में तिब्बती समुदाय और दलाई लामा के बीच गहरा संबंध है, जो छठे दलाई लामा के जन्म से और मजबूत होता है।
 
दलाई लामा का चयन तिब्बती बौद्ध धर्म की एक अनूठी और आध्यात्मिक प्रक्रिया है, जो शुभ संकेतों, परंपराओं और गहरी आस्था पर आधारित है। भारत का अरुणाचल प्रदेश, विशेष रूप से तवांग, इस परंपरा का एक अभिन्न हिस्सा रहा है, क्योंकि वहां छठे दलाई लामा का जन्म हुआ था। जैसे-जैसे वर्तमान दलाई लामा अपने 90वें जन्मदिन के करीब पहुंच रहे हैं, पूरी दुनिया की नजर इस बात पर है कि अगले दलाई लामा का चयन कैसे होगा और यह तिब्बती संस्कृति, आध्यात्मिकता और वैश्विक शांति के लिए क्या मायने रखेगा।
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