Interesting facts about Indus Valley Civilization: लगभग 4500 वर्ष पहले, भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिमी हिस्सों में एक असाधारण सभ्यता का उदय हुआ – सिन्धु घाटी सभ्यता, जिसे हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है। यह सभ्यता अपनी समकालीन सभ्यताओं, जैसे मेसोपोटामिया और मिस्र, से कहीं अधिक विस्तृत थी और इसने शहरी नियोजन, कला, और व्यापार के क्षेत्र में अद्वितीय प्रगति की थी। सिंधु घाटी सभ्यता लगभग 3300 ईसा पूर्व से 1900 ईसा पूर्व तक फली-फूली और अपनी समकालीन सभ्यताओं, जैसे मेसोपोटामिया और मिस्र, से कई मायनों में आगे थी।
1920 के दशक में, पुरातत्वविदों ने पंजाब और सिंध (अब पाकिस्तान में) में हड़प्पा और मोहनजोदड़ो के प्राचीन शहरों की खोज की। इन खोजों ने दुनिया को एक भूली हुई सभ्यता के अस्तित्व से अवगत कराया, जिसने इतिहास की हमारी समझ को पूरी तरह से बदल दिया।
पाकिस्तान में सिंधु घाटी के निशान:
सिंधु घाटी सभ्यता मुख्य रूप से सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों के किनारे विकसित हुई थी। आज के पाकिस्तान के पंजाब और सिंध प्रांतों में इस सभ्यता के सबसे महत्वपूर्ण स्थल पाए जाते हैं।
• पंजाब: पंजाब प्रांत में हड़प्पा इस सभ्यता का एक प्रमुख केंद्र था, जिसके नाम पर ही इसे हड़प्पा सभ्यता कहा जाता है। यह स्थल साहिवाल शहर के पास स्थित है और यहां सुनियोजित नगर, पक्की ईंटों के घर और उन्नत जल निकासी प्रणाली के अवशेष मिले हैं। इसके अलावा, पंजाब के अन्य क्षेत्रों में भी सिंधु घाटी सभ्यता के छोटे-बड़े स्थल खोजे गए हैं।
• सिंध: सिंध प्रांत में मोहनजोदड़ो (जिसका सिंधी भाषा में अर्थ है "मृतकों का टीला") सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण नगर था। यह लरकाना जिले के पास स्थित है और अपनी विशाल सार्वजनिक स्नानागार ("ग्रेट बाथ"), अन्न भंडार और सुनियोजित सड़कों के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है। सिंध के अन्य महत्वपूर्ण स्थलों में कोट दीजी, आमरी और चन्हुदड़ो शामिल हैं, जो इस सभ्यता के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालते हैं।
इन मुख्य स्थलों के अलावा, खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान प्रांतों में भी सिंधु घाटी सभ्यता के कुछ पुरातात्विक अवशेष पाए गए हैं, जो इस सभ्यता के भौगोलिक विस्तार को दर्शाते हैं। इसकी समृद्धि और उन्नति के कुछ प्रमुख पहलू इस प्रकार हैं:
नगर नियोजन: इंजीनियरिंग का अद्भुत नमूना
सिन्धु घाटी सभ्यता की सबसे प्रभावशाली विशेषताओं में से एक इसका उत्कृष्ट नगर नियोजन था। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो जैसे शहर ग्रिड प्रणाली पर आधारित थे, जहाँ सड़कें एक दूसरे को समकोण पर काटती थीं, जिससे आयताकार ब्लॉक बनते थे। प्रत्येक शहर में सुनियोजित जल निकासी व्यवस्था थी, जिसमें ढकी हुई नालियाँ और सोख्ता गड्ढे शामिल थे, जो स्वच्छता के प्रति उनकी उन्नत सोच को दर्शाते हैं। घरों का निर्माण पक्की ईंटों से किया गया था और उनमें स्नानघर, रसोई और कई कमरे होते थे। मोहनजोदड़ो का विशाल स्नानागार, जिसे 'द ग्रेट बाथ' कहा जाता है, एक अद्भुत संरचना है जो धार्मिक या सामुदायिक स्नान के लिए इस्तेमाल होती रही होगी।
कला और शिल्प: रचनात्मकता का संगम
सिन्धु घाटी सभ्यता के लोगों की कला और शिल्प कौशल भी अद्वितीय था। उन्होंने मिट्टी के बर्तन बनाए, जिन पर सुंदर चित्रकारी की जाती थी। टेराकोटा की मूर्तियाँ, जिनमें मातृदेवी और जानवरों की आकृतियाँ प्रमुख हैं, उनकी धार्मिक मान्यताओं और सामाजिक जीवन पर प्रकाश डालती हैं।
धातु कर्म में भी वे कुशल थे। उन्होंने तांबे, कांस्य और सोने से बनी वस्तुएँ बनाईं, जिनमें औजार, हथियार, गहने और मूर्तियाँ शामिल हैं। उनकी सबसे प्रसिद्ध कलाकृतियों में से एक 'नृत्य करती लड़की' की कांस्य प्रतिमा है, जो उनकी कलात्मक प्रतिभा का अद्भुत उदाहरण है।
व्यापार और वाणिज्य: दूर देशों से संबंध
सिन्धु घाटी सभ्यता के पुरातात्विक अवशेषों से पता चलता है कि उनका व्यापार दूर-दूर तक फैला हुआ था। मेसोपोटामिया के साथ उनके व्यापारिक संबंध थे, जहाँ से उन्हें लाजवर्द जैसे कीमती पत्थर मिलते थे। उन्होंने समुद्री और स्थलीय दोनों मार्गों से व्यापार किया। बाट और माप की एक समान प्रणाली का उपयोग उनके सुव्यवस्थित व्यापारिक गतिविधियों का प्रमाण है।
लिपि: एक अनसुलझा रहस्य
सिन्धु घाटी सभ्यता की लिपि आज भी एक रहस्य बनी हुई है। हजारों मुहरें मिली हैं जिन पर छोटे-छोटे लेख उत्कीर्ण हैं, लेकिन उन्हें अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है। इस लिपि को समझने से हमें उनकी भाषा, साहित्य और प्रशासनिक व्यवस्था के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिल सकती है।
पतन: एक रहस्यमय अंत
लगभग 1900 ईसा पूर्व के आसपास, सिन्धु घाटी सभ्यता का पतन शुरू हो गया। इसके कारणों को लेकर कई सिद्धांत हैं, जिनमें जलवायु परिवर्तन, नदियों का सूखना, बाढ़, विदेशी आक्रमण या आंतरिक सामाजिक परिवर्तन शामिल हैं। हालांकि, इस महान सभ्यता के अंत का रहस्य आज भी पूरी तरह से सुलझा नहीं है।
आज भले ही सिंधु का अधिकांश भाग पाकिस्तान में स्थित है, लेकिन इसका ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व भारत के हृदय में आज भी जीवित है। यह नदी हमें हमारी जड़ों से जोड़ती है, हमें हमारी गौरवशाली अतीत की याद दिलाती है। सिंधु, सचमुच में, भारत की एक प्राचीन और अमूल्य धरोहर है, जिसके बिना भारतीय इतिहास की कल्पना भी मुश्किल है। यह सिर्फ एक नदी नहीं, बल्कि एक सभ्यता, एक संस्कृति और एक पहचान है।