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Written By WD Feature Desk
Last Updated : शुक्रवार, 2 मई 2025 (14:15 IST)

इंदिरा गांधी को क्यों करना पड़ा था पाकिस्तान से युद्ध, अमेरिकी विरोध के बावजूद दिया था मुंहतोड़ जवाब

India Pakistan 1971 War
Indira Gandhi: 'गुंगु गुड़िया' को 'आयरन लेडी' तब कहा जाने लगा जब उन्होंने 1971 में अपने दृढ़ इरादों से पाकिस्तान के 2 टूकड़े कर दिए थे। इंदिरा गांधी ने 1971 के युद्ध में विश्व शक्तियों के सामने न झुकने के नीतिगत और समयानुकूल निर्णय क्षमता से पाकिस्तान को परास्त किया और बांग्लादेश को मुक्ति दिलाकर स्वतंत्र भारत को एक नया गौरवपूर्ण क्षण दिलवाया। ऐसे समय जबकि अमेरिका भारत के खिलाफ था और उसने अपना 7वां युद्ध का बेड़ा पाकिस्तान की मदद के लिए भेज दिया था। आओ जानते हैं इस विजय पराक्रम की संपूर्ण कहानी। ALSO READ: पहलगाम का बदला, मई में हो सकता है भारत-पाकिस्तान युद्ध? सैन्य कार्रवाई की जमीन तैयार कर रही है मोदी सरकार
 
भारत का विभाजन हुआ तब तात्कालीन नेताओं ने पंजाब और बंगाल का भी बंटवारा करने स्वीकार करने की सबसे बडी गलती की थी जबकि जिस पूर्वी बंगाल को पाकिस्तान बनाया गया वहां पर 40 प्रतिशत हिंदू रहते थे। 1947 ईस्वी में भारत के विभाजन के समय तत्कालीन नेताओं ने पूर्वी बंगाल को इस आधार पर पाकिस्तान के जिम्मे सौंप दिया कि वह एक मुस्लिम बहुल क्षेत्र है, जबकि वहां पर 40 प्रतिशत के लगभग हिन्दु आबादी भी निवास करती थी और जहां पर हिन्दू धर्म से जुड़े कई शक्तिपीठ एवं प्राचीन व ऐतिहासिक स्थल भी मौजूद थे। भारत को इसी शर्त पर स्वाधीनता प्रदान की गई कि उसका विभाजन भारत तथा पाकिस्तान नाम के दो राज्यों में कर दिया जाए। फलस्वरूप बंगाल के ढाका तथा चटगांव डिवीजन के कुछ जिलों को अलग करके पूर्वी पाकिस्तान का निर्माण कर दिया गया। 
 
बंगाल के मुस्लिमों ने भारत विभाजन के समय कभी भी पाकिस्तान का हिस्सा नहीं बनना चाहा था। वहां के आधे लोग भारत से मिलना चाहते थे और अधिकतर लोग एक स्वतंत्र देश बनना चाहते थे। इसी भावना के चलते पाकिस्तानियों ने बंगाल का दमन करना प्रारंभ किया। वहां के शिया और हिन्दुओं पर अत्याचार का लंबा सिलसिला प्रारंभ हुआ। इस अत्याचार के चलते लाखों हिन्दुओं और मुस्लिमों ने भारत की ओर पलायन करना प्रारंभ कर दिया था। परिणाम स्वरूप बंगाली मुस्लिमों ने भारत से मदद की गुहार लगाई और बंगाल को पाकिस्तान से स्वतंत्र कराने के लिए अंदोलन चले। इसमें मुक्तिवाहिनी का महत्वपूर्ण योगदान रहा। ALSO READ: युद्ध के बारे में क्या कहती है महाभारत, जानिए 10 खास सबक

क्यों लड़ना पड़ी पाकिस्तान से लड़ाई:
पाकिस्तान के सैनिक तानाशाह याहिया ख़ां ने 25 मार्च 1971 को पूर्वी पाकिस्तान की जन भावनाओं को सैनिक ताकत से कुचलने का आदेश दे दिया था। इसके बाद शेख मुजीब को गिरफ्तार कर लिया गया। मुक्ति संग्राम के दौरान पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा किए गए नरसंहार के दौरान करीब 30 लाख लोग मारे गए थे और लाखों लोगों ने भारत में शरण ली थी। पाकिस्तान के दमन चक्र से परेशान हजारों बंगाली हिंदू शरणार्थी भारत में आ चुके थे और भारत एक अच्छे पड़ोसी की तरह उन्हें सभी सुविधाएं दे रहा था। लेकिन कब तक यह सिलसिला चलता। पाकिस्तानी सेना ने नरसंहार मचा रखा था। इससे भारत के पश्‍चिम बंगाल और पूर्वोत्त की सीमा पर हालात बिगड़ गए। ऐसे कठिन समय में इंदिरा गांधी ने बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में यह स्पष्ट कर दिया था कि हम लोगों को मरते हुए नहीं देख सकते। अब हमारे यह जरूरी है कि हम कठोर निर्णय लें।ALSO READ: क्या भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध होने वाला है, क्या कहते हैं ग्रह नक्षत्र
 
ऐसे कठिन समय में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी चाहती थीं कि अप्रैल में पाकिस्तान पर आक्रमण किया जाए। इस बारे में इंदिरा गांधी ने थल सेनाध्‍यक्ष जनरल मानेकशॉ की राय ली। तब मानेकशॉ ने इंदिरा जी से यह स्‍पष्‍ट कह दिया कि वे पूरी तैयारी के साथ ही युद्ध के मैदान में उतरना चाहते हैं। उस वक्त भारत के पास सिर्फ एक पर्वतीय डिवीजन था और इस डिवीजन के पास पुल बनाने की क्षमता नहीं थी। तब मानसून की शुरुआत होनी थी और ऐसे समय में पूर्वी पाकिस्तान में प्रवेश करना मुसीबत बन सकता था। इसके बाद 3 दिसंबर, 1971 को इंदिरा गांधी के कोलकाता में एक जनसभा को संबोधित करने के दौरान पाकिस्तानी वायुसेना के विमानों ने भारतीय वायुसीमा को पार कर पठानकोट, श्रीनगर, अमृतसर, जोधपुर, आगरा आदि सैनिक हवाई अड्डों पर बम गिराने शुरू कर दिए।
 
फिर उसी वक्‍त इंदिरा गांधी ने दिल्ली लौटकर मंत्रिमंडल की आपात बैठक की और युद्ध शुरू हुआ। अब भारतीय सेना की कमान जनरल मानेक शॉ जैसे अनुभवी व कुशल सेनानायक के हाथ में थी। उन्होंने जीवन में कभी हारना सीखा ही नहीं। उनके इस निर्णय से रशिया को छोड़कर पूरा विश्‍व उनके खिलाफ खड़ा हो गया था लेकिन इंदिरा गांधी ने अपने इरादे स्पष्ट कर दिए थे।
 
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सारी कोशिशें की कि कोई हल निकल आए और शरणार्थी वापस घरों को लौट जाएँ, पर यह नहीं हो सका। बंगवासियों (मुजीब की सेना) ने अपनी मुक्ति वाहिनी बनाकर पश्चिमी पाकिस्तानी हुकूमत से संघर्ष शुरू कर दिया। पाकिस्तान सरकार ने इसे भारत समर्थित युद्ध माना व 3 दिसंबर 1971 को भारत पर आक्रमण कर दिया।
ऐसे समय अब भारत के पास प्रत्यक्ष रूप से युद्ध में जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। भारत ने दो मोर्चों पर लड़ाई लड़ी। पहला पश्‍चिमी पाकिस्तान की सीमा पर और दूसरा पूर्वी पाकिस्तान की सीमा पर। भारत ने बंगाल की खड़ी में अपने युद्ध पराक्रम का प्रदर्शन किया। भारत ने समुद्र के रास्ते बंगल जाने वाली सैनिक सामग्री को रोक दिया और दूसरी ओर अरब की खाड़ी में कराची पर हमले की तैयारी शुरू कर दी। 
 
पश्‍चिमी पाकिस्तान पर लड़ाई:
5 दिसंबर, 1971 को पाकिस्‍तानी सेना से नि‍पटने के लिए भारतीय नौसेना ने 'ऑपरेशन ट्राइडेंट' चलाया था। नौसेना ने कराची बंदरगाह पर पहला मिसाइल हमला किया। इसके बाद नौसेना ने पाकिस्तानी जहाज 'खैबर' को नष्‍ट कर दिया। अरब की खाड़ी में युद्ध का संचालन नौसेना पोत मैसूर से एडमिरल कुरुविल्ला की कमांड में हो रहा था। भारतीय नौसेना के दस्ते ने कराची बंदरगाह पर आक्रमण किया व पाकिस्तानी नौसेना के कई युद्धपोत कराची बंदरगाह में डुबो दिए गए। इस हमले के बाद भारतीय नौसेना का पश्चिमी मोर्चे पर वर्चस्व हो गया। 
 
पूर्वी पाकिस्तान पर लड़ाई: 
पूर्व में तेजी से आगे बढ़ते हुए भारतीय सेना ने जेसोर और खुलना पर कब्जा किया। पूर्व पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) स्थित गंगासागर में एक भीषण लड़ाई लड़ी गई। तब भारत की 14 गार्ड्‍स रेजीमेंट को गंगासागर क्षेत्र में किलाबंदी किए हुए पाकिस्तानी सैनिक अड्डे पर कब्ज़ा करने का कार्य सौंपा गया। भारतीय सैनिकों ने योजनाबद्ध तरीके से 3 दिसंबर 1971 की सुबह के 2 बजे सैनिक कार्रवाई शुरू की। शत्रु की भारी गोलाबारी के बीच, बंकरों को ध्वस्त करते हुए वे अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ते चले गए। उनके लक्ष्य के करीब पहुंचने पर पाकिस्तानी सैनिकों ने एक अतिसुरक्षित दुमंज़िला इमारत से गोलाबारी कर बड़ी संख्या में भारतीय सैनिकों को हताहत कर दिया। 
 
इसके बाद बंगाल की खड़ी के लिए अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति निक्सन ने पाकिस्तान का पक्ष लेते हुए अमेरिकी नौसेना का 7वां बेड़ा भारत की ओर रवाना कर दिया था। अमेरिकी बेड़े के आने पर युद्ध की दिशा बदल सकती थी, पर अमेरिकी बेड़े के पहुंचने के पहले ही भारतीय सेनाओं ने युद्ध को ही निर्णायक मोड़ दे दिया। पाकिस्तान की पनडुब्बी गाजी को विशाखापट्टनम नौसैनिक अड्डे के पास डुबो दिया गया। इतिहास में पहली बार किसी नौसेना ने दुश्मन की नौसेना को एक सप्ताह के अंदर पूरी तरह से नेस्तनाबूद कर दिया था।
 
पाकिस्तानी सेना का आत्मसपर्पण:
भारतीय सेना को 14 दिसंबर के दिन एक गुप्ता संदेश मिला, जिसमें यह था कि ढाका के गवर्नमेंट हाउस में एक महत्वपूर्ण बैठक होने वाली है, जिसमें पाकिस्तानी प्रशासन के बड़े-बड़े अधिकारी भाग लेने वाले हैं। भारतीय सेना ने तय किया और बैठक के दौरान ही मिग 21 विमानों ने भवन पर बम गिरा कर मुख्य हॉल की छत उड़ा दी। गवर्नर मलिक ने लगभग कांपते हाथों से अपना इस्तीफा लिखा। 16 दिसंबर की सुबह जनरल जैकब को मानेकशॉ का संदेश मिला कि आत्मसमर्पण की तैयारी के लिए तुरंत ढाका पहुंचें।
 
उस वक्त भारतीय नौसेना और थल सैनिकों का पराक्रम चरम पर था। हजारों सैनिकों को मरते हुए देख और खुद को ढाका में घिरा हुआ देख 15 दिसंबर को पाकिस्तानी सेनापति जनरल एके नियाजी ने युद्धविराम की गुहार लगाकर आत्मसमर्पण की पेशकस की। इसके बाद 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी फौजों ने आत्मसमर्पण कर दिया। करीब 93 हजार से अधिक पाकिस्तानी सैनिकों को बंदी बना लिया गया जो कि इतिहास का सबसे बड़ा बंदीकरण था। 
16 दिसंबर का वह फोटो जब भारत के लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा और पाकिस्तान के लेफ्टिनेंट जनरल एके नियाजी ने आत्मसमर्पण के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए थे। वह फोटो आज भी भारतवासियों की आंखों में बसा हुआ है।
 
जब संसद भवन के अपने दफ्तर में बैठी इंदिरा गांधी एक टीवी इंटरव्यू दे रही थीं, तभी जनरल मानेक शॉ ने उन्‍हें बांग्लादेश में मिली शानदार जीत की खबर दी। और इंदिरा जी ने लोकसभा में शोर-शराबे के बीच घोषणा की, कि युद्ध में भारत को विजय मिली है। तब उनके बयान के बाद पूरा सदन जश्‍न में डूब गया।
 
इसके बाद इंदिरा गांधी ने पूर्वी पाकिस्तान के स्वतंत्रता की घोषणा की। इस युद्ध में न सिर्फ पाकिस्तान की हार हुई, बल्कि वह 2 टुकड़ों में बंट गया। इस युद्ध के बाद बांग्लादेश के नाम से एक अलग देश बना। यह युद्ध करीब 13 दिनों तक चला। करीब 3,900 भारतीय सैनिक इस युद्ध में शहीद हुए थे, जबकि 9,851 घायल हो गए थे।  इस तरह भारतीय सेना ने 16 दिसंबर को अपनी विजय गाथा लिखीं और 1971 का यह ऐतिहासिक दिन आज भी भार‍त में विजय दिवस के रूप में मनाते हैं।