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Last Updated : शुक्रवार, 29 नवंबर 2024 (15:04 IST)

कुतुबमीनार का इतिहास, कितना पुराना है और किसने बनवाया, जानिए इसके ध्रुव स्तंभ होने का सच

Qutub Minar
Qutub Minar
History of Vishnu dhruv stambha Qutub Minar : कुतुब मीनार को ध्रुव स्तंभ या विष्णु स्तंभ कहे जाने की बात एक बार फिर उठी है। हिन्दू इतिहास के जानकार कहते हैं कि पहले यह एक वैधशाला थी जहां पर से खगोलीय घटनाओं को देखकर दर्ज किया जाता था। 2.5 मीटर ऊँची यह मीनार यूनेस्को की विश्व धरोहर स्मारकों की सूची में भी शामिल है। आओ जानते हैं कि क्या यह सच है। 
 
 
वर्तमान इतिहास के अनुसार : 
1. कहते हैं कि कुतुबमीनार का निर्माण कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1193 में शुरू करवाया था। इल्तुतमिश ने इसमें तीन मंजिले जुड़वाई। फिर सन् 1386 में मीनार को दुर्घटना के बाद दुरुस्त करवाया फिरोजशाह तुगलक ने। कहते हैं कि इस इमारत का निर्माण शुरू करने वाला कुतुबद्दीन एबक मोहम्मद गोरी का गुलाम था और उसने अपने मालिक के लिए इसकी नींव रखी थी।  
 
2. कुछ इतिहासकार मानते हैं कि कुतुबुद्दीन ऐबक के नाम पर ही इस मीनार का नाम पड़ा जबकि कुछ बताते हैं कि बगदाद के संत कुतुबद्दीन बख्तियार काकी के नाम पर इस मीनार का नाम कुतुबमीनार पड़ा। यह भी कहते हैं कि अरबी में 'कुतुब' को एक 'धुरी', 'अक्ष', 'केन्द्र बिंदु' या 'स्तम्भ या खम्भा' कहा जाता है। कुतुब को आकाशीय, खगोलीय और दिव्य गतिविधियों के लिए प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार कुतुब मीनार का अर्थ खगोलीय स्तम्भ या टॉवर होता है।
 
हिन्दू इतिहास के अनुसार : 
1. कुतुब मीनाकर के संबंध में प्रो. एमएस भटनागर गाजियाबाद ने दो लेख लिखे हैं जिनमें इसकी उत्पत्ति, नामकरण और इसके इतिहास की समग्र जानकारी है। इनमें उस प्रचलित जानकारियों को भी आधारहीन सिद्ध किया गया है जो कि इसके बारे में इतिहास में दर्ज हैं या आमतौर पर बताई जाती हैं। उन्होंने इस अद्वितीयी और अपूर्व इमारत के बारे में सच्चाई जाहिर करने का दावा किया है और इससे जुड़ीं सभी भ्रामक जानकारियों, विरोधाभाषी स्पष्टीकरणों और दिल्ली के मुगल राजाओं और कुछ पुरातत्ववेताओं की गलत जानकारी को उजागर किया है।
 
2. यह मीनार वास्तव में ध्रुव स्तम्भ है या जिसे प्राचीन हिंदू खगोलीय वेधशाला का एक मुख्य निगरानी टॉवर या स्तम्भ है। दो सीटों वाले हवाई जहाज से देखने पर यह टॉवर 24 पंखुड़ियों वाले कमल का फूल दिखाई देता है। इसकी एक-एक पंखुड़ी एक होरा या 24 घंटों वाले डायल जैसी दिखती है। चौबीस पंखुड़ियों वाले कमल के फूल की इमारत पूरी तरह से एक‍ हिंदू विचार है। इसे पश्चिम एशिया के किसी भी सूखे हिस्से से नहीं जोड़ा जा सकता है जोकि वहां पैदा ही नहीं होता है।  
 
3. मीनार पर अंकित कुरान की आयतें एक जबर्दस्ती और निर्जीव डाली हुई लिखावट है जो कि पूरी तरह से हिंदू डिजाइन के सुंदर चित्रवल्लरी वाली धारियों पर ऊपर से लिखी गई हैं।
 
4. इस इमारत की लम्बवत प्रोजेक्शन लाइन्स जो ‍कि टॉवर की प्रत्येक स्टोरी के शीर्ष पर बनी पत्थरों पर बारीक कारीगरी के मध्य बिंदुओं से लेकर इसके आधार पर बने क्षैतिज समधरातल पर एक कमल के फूल का निर्माण करते हैं जो कि टॉवर शीर्ष के ऊपर आसमान से देखा जा सकता है। ध्रुव स्तंभ का यह कमल के रूप में उठा हुआ भाग अतीत के किसी वास्तुविद या पुरातत्ववेत्ता के द्वारा सोचा या बनाया नहीं जा सकता है। आप कह सकते हैं कि ध्रुव स्तम्भ को मोहम्मद गोरी या कुतुबुद्दीन एबक का निर्माण बताने का को‍ई प्रश्न नहीं है। जिन सुल्तानों का इस मीनार के साथ नाम जुड़ा है, उन्होंने इसके आवरण को नष्ट कर दिया, जिन पत्थरों पर मनुष्य या पशुओं के आकार बने थे, उन्हें उलटा कर दिया और इन पर अरबी में लिखावट को उत्कीर्ण कर डाला। वास्तव में, इन सुल्तानों की इस बात के लिए प्रशंसा नहीं की जा सकती है कि उन्होंने मीनार बनाई। किसी भी व्यक्ति ने इस आशय का लेख, अभिलेख या शिलालेख छोड़ा है कि उसने इस मीनार के बनवाने की शुरुआत कराई।   
dhruv stambha
dhruv stambha
5. कुतुब मीनार के पास जो बस्ती है उसे महरौली कहा जाता है। यह एक संस्कृ‍त शब्द है जिसे मिहिर-अवेली कहा जाता है। इस कस्बे के बारे में कहा जा सकता है कि यहां पर विख्यात खगोलज्ञ मिहिर (जो कि विक्रमादित्य के दरबार में थे) रहा करते थे। उनके साथ उनके सहायक, गणितज्ञ और तकनीकविद भी रहते थे। वे लोग इस कथित कुतुब टॉवर का खगोलीय गणना, अध्ययन के लिए प्रयोग करते थे।
 
6. इस टॉवर के चारों ओर हिंदू राशि चक्र को समर्पित 27 नक्षत्रों या तारामंडलों के लिए मंडप या गुंबजदार इमारतें थीं। कुतुबुद्‍दीन के एक विवरण छोड़ा है जिसमें उसने लिखा कि उसने इन सभी मंडपों या गुंबजदार इमारतों को नष्ट कर दिया था, लेकिन उसने यह नहीं लिखा कि उसने कोई मीनार बनवाई।
 
7. जिस मंदिर को उसने नष्ट भ्रष्ट कर दिया था, उसे ही कुव्वत-अल-इस्लाम मस्जिद का नाम दिया। कुतुब मीनार से निकाले गए पत्थरों के एक ओर हिंदू मूर्तियां थीं जबकि इसके दूसरी ओर अरबी में अक्षर लिखे हुए हैं। इन पत्थरों को अब म्यूजियम में रख दिया गया है। 
 
8. इससे यह बात साबित होती है कि मुस्लिम हमलावर हिंदू इमारतों की स्टोन-ड्रेसिंग या पत्‍थरों के आवरण को निकाल लेते थे और मूर्ति का चेहरा या सामने का हिस्सा बदलकर इसे अरबी में लिखा अगला हिस्सा बना देते थे। बहुत सारे परिसरों के खम्भों और दीवारों पर संस्कृत में लिखे विवरणों को अभी भी पढ़ा जा सकता है। कॉर्निस में बहुत सारी मूर्तियों को देखा जा सकता है लेकिन इन्हें तोड़फोड़ दिया गया है।  
 
9. प्रवेश द्वार के एक ओर पत्थर का कमल का फूल बना है जो कि यह सिद्ध करता है कि यह एक हिंदू इमारत थी। मध्यकालीन इमारतों में पत्‍थरों के फूल बनाना एक प्रमुख हिंदू परम्परा रही है। मुस्लिम कभी भी इमारतें बनाते समय इस तरह के फूल नहीं बनाते हैं। टॉवर पर चित्र वल्लरी पर नमूनों में इनमें मिलावट नजर आती है, ये एकाएक समाप्त हो जाते हैं या बेमेल लाइनों का घालमेल नजर आता है। कमल की कलियों जैसे हिंदू रूपांकन के बीच में अरबी के अक्षरों को फैला दिया गया है।
 
10. अगर आप टॉवर के शीर्ष पर एक एयरोप्लेन से देखें तो आपको विभिन्न गैलरियां ऊपर से नीचे तक एक दूसरे में फिसलती नजर आती हैं और ये एक 24 पंखुड़ी वाले किसी पूरी तरह से खिले कमल की तरह दिखाई देती हैं। विदित हो कि 24 का अंक वैदिक परम्परा में पवित्र माना जाता है क्योंकि यह 8 का गुणनफल होता है। टॉवर की इंटों का लाल रंग भी हिंदुओं में पवित्र समझा जाता है। इस टॉवर का नाम विष्णु ध्वज या विष्णु स्तम्भ या ध्रुव स्तम्भ के तौर पर जाना जाता था जिससे यह स्पष्ट होता है कि यह खगोलीय प्रेक्षण टॉवर था।
 
11. पास में ही जंग न लगने वाले लोहे के खम्भे पर ब्राह्मी लिपि में संस्कृत में लिखा है कि विष्णु का यह स्तम्भ विष्णुपाद गिरि नामक पहाड़ी पर बना था। इस विवरण से साफ होता है कि टॉवर के मध्य स्थित मंदिर में लेटे हुए विष्णु की मूर्ति को मोहम्मद गोरी और उसके गुलाम कुतुबुद्दीन ने नष्ट कर दिया था। खम्भे को एक हिंदू राजा की पूर्व और पश्चिम में जीतों के सम्मानस्वरूप बनाया गया था।
 
12. टॉवर में सात तल थे जोकि एक सप्ताह को दर्शाते थे, लेकिन अब टॉवर में केवल पांच तल हैं। छठवें को गिरा दिया गया था और समीप के मैदान पर फिर से खड़ा कर दिया गया था। सातवें तल पर वास्तव में चार मुख वाले ब्रह्मा की मूर्ति है जो कि संसार का निर्माण करने से पहले अपने हाथों में वेदों को लिए थे।
Vishnu stambha
Vishnu stambha
13. ब्रह्मा की मूर्ति के ऊपर एक सफेद संगमरमर की छतरी या छत्र था जिसमें सोने के घंटे  की आकृति खुदी हुई थी। इस टॉवर के शीर्ष तीन तलों को मूर्तिभंजक मुस्लिमों ने बर्बाद कर दिया जिन्हें ब्रह्मा की मूर्ति से घृणा थी। मुस्लिम हमलावरों ने नीचे के तल पर शैय्या पर आराम करते विष्णु की मूर्ति को भी नष्ट कर दिया।
 
14. लौह स्तम्भ को गरुड़ ध्वज या गरुड़ स्तम्भ कहा जाता था। यह विष्णु के मंदिर का प्रहरी स्तम्भ समझा जाता था। एक दिशा में 27 नक्षत्रों के म‍ंदिरों का अंडाकार घिरा हुआ भाग था। लाल पत्थरों का एक विशाल, अलंकृत दरवाजा एक पवित्र क्षेत्र को जाता था जिसे नक्षत्रालय कहा जाता था। इसलिए परम्परागत रूप से मुख्य द्वार को आलय-द्वार के तौर पर जाना जाता है।
 
15. टॉवर का घेरा ठीक तरीके से 24 मोड़ देने से बना है और इसमें क्रमश: मोड़, वृत की आकृति और त्रिकोण की आकृतियां बारी-बारी से बदलती हैं। इससे यह पता चलता है कि 24 के अंक का सामाजिक महत्व था और परिसर में इसे प्रमुखता दी गई थी। इसमें प्रकाश आने के लिए 27 झिरी या छिद्र हैं। यदि इस बात को 27 नक्षत्र मंडपों के साथ विचार किया जाए तो इस बात में कोई संदेह नहीं रह जाता है कि टॉवर खगोलीय प्रेक्षण स्तम्भ था। 
 
16. टॉवर के निर्माण में बड़े-बड़े शिलाखंडों को एक साथ जोड़कर रखने के लिए इन्हें लोहे की पत्तियों से बांध दिया गया है। इसी तरह की पत्तियों को आगरे के किले को बनाने में इस्तेमाल किया गया है। मैंने (भटनागर) अपनी पुस्तक 'ताज महल एक राजपूत महल था' में किलों की उत्पत्ति के बारे में विस्तार से लिखा है और यह सिद्ध किया है कि यह मुस्लिमों के समय से पहले मौजूद था। इससे यह भी सिद्ध होता है कि बड़ी इमारतों में पत्थरों को जोड़े रखने के लिए लोहे की पत्तियों का प्रयोग करना एक हिंदू विधि थी। यही विधि तथाकथित दिल्ली की कुतुब मीनार में भी इस्तेमाल की गई है।
 
इसके साथ यह भी सिद्ध होता है कि कुतुब मीनार मुस्लिमों के भारत में आने से पहले की इमारत है। अगर 24 पंखुड़ी वाले कमल को इसके केन्द्र से ऊपर की ओर खींचा जाता है तो इस तरह का एक टॉवर बन जाएगा। और कमल का स्वरूप कभी भी मुस्लिम नहीं होता है। 

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