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चार्ली चैप्लिन भारतवंशी बंजारे थे, एक चिट्ठी ने खोला रहस्य

चार्ली चैप्लिन भारतवंशी बंजारे थे, एक चिट्ठी ने खोला रहस्य - Do you know Charlie Chaplin was of Indian origin
स्विट्ज़रलैंड के आर्थिक रूप से सबसे सशक्त वर्गों में से एक की बमरोधी कंक्रीट की तिजोरी में कुछ ऐसा है, जो सोने की सिल्लियों से भी बढ़-चढ़ कर है। वहां, किसी विस्फोट को भी सह जाने वाले दरवाज़े और बहुत ही मज़बूत छड़ों की बनी जाली के पीछे, 20वीं सदी के एक सबसे प्रसिद्ध व्यक्ति के अवशेष हैं। एक ऐसा व्यक्ति, जिसे आपने फ़िल्मों और तस्वीरों में अनगिनत बार देखा होगा। खूब हंसा और तालियां पीटी होंगी। नाम था– चार्ल्स स्पेंसर चैप्लिन। कहलाते थे चार्ली चैप्लिन। अपने समय के सबसे महान कॉमेडियन। जन्म हुथा था 16 अप्रैल 1889 को इंग्लैंड में।
 
25 दिसंबर के दिन हर वर्ष जब सारी दुनिया ईसा मसीह के जन्म का उल्लासपर्व क्रिसमस मनाती है, तब चार्ली चैप्लिन के प्रशंसक और भक्त, स्विट्ज़रलैंड के कोर्सीएर-सुर-वेवेरी में उनकी की क़ब्र पर फूल चढ़ाते हैं। अपने अंतिम दिनों में वे स्विट्ज़रलैंड में रहने लगे थे। 2022 का 25 दिसंबर इस दुनिया से उनके प्रयाण का 45वां वर्ष है। 
 
उनकी मृत्यु के दो ही महीने बाद,1 और 2 मार्च 1978 के बीच वाली रात में क़ब्र से उनका शव ग़ायब हो गया था। ग़ायब करने वाले उनके परिवार से 6 लाख स्विस फ्रांक देने की मांग कर रहे थे। पर वे पकड़े गए और चार्ली चैप्लिन को उसी क़ब्र में पुनः दफ़नाया गया।
 
बहुमुखी प्रतिभावान थे 
चार्ली चैप्लिन कॉमेडियन ही नहीं, फ़िल्म निर्देशक, पटकथा लेखक, फ़िल्म एडिटर, संगीत रचयिता और फ़िल्म निर्माता भी थे। उन्हें फ़िल्म-जगत का पहला 'स्टार' माना जाता था। फ़िल्मी इतिहास का सबसे प्रभावशाली कॉमेडियन कहा जाता था। ऑस्कर जैसे पुरस्कारों और अलंकरणों की भी कोई कमी नहीं थी। लोग उनके बारे में बहुत कुछ जानते थे। 
 
भारत में स्वर्गीय राज कपूर उनसे बहुत प्रभावित थे। राज कपूर की फ़िल्म 'आवारा' इसका सबसे प्रबल प्रमाण है। चार्ली चैप्लिन का रूपरंग और चरित्र भी किसी फक्कड-मस्त आवारे के समान ही था। पर कोई नहीं जानता था कि चार्ली चैप्लिन का भारत से कोई आनुवंशिक (जेनेटिकल) संबंध भी हो सकता है। वे एक रोमा, यानी भारतवंशी बंजारे हो सकते हैं। 
 
आरंभ में जिस तिजोरी का ज़िक्र है, उसमें क्या-क्या रखा है, यह भी पूरी तरह कोई नहीं जानता। हुआ यह कि 1991 में चार्ली चैप्लिन की विधवा, ओना की मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के बाद, उनकी बेटी, विक्टोरिया चैप्लिन को ऐसी कुछ चीज़ें विरासत में मिलीं, जो उनके पिता की थीं।
 
एक चिट्ठी ने खोला रहस्य
विक्टोरिया को एक मेज़ भी विरासत में मिली थी, जिसकी एक दराज़ हठपूर्वक बंद रही। जब ताला खोलने वाले ने उसे किसी तरह खोला, तो उसमें टेढ़े-मेढ़े बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा हुआ एक पत्र मिला। पत्र 1970 के दशक का था। पत्र में टैमवर्थ नाम की जगह के जैक हिल नाम के एक अस्सी वर्षीय व्यक्ति ने चार्ली चैप्लिन को सूचित करने के लिए लिखा था कि वे दक्षिणी लंदन के सबसे प्रसिद्ध पुत्रों में से एक नहीं हैं, बल्कि एक "जिप्सी महिला के कारवां की दुनिया में आए थे, जो मेरी मौसी थी। वे बर्मिंघम के पास स्मेथविक के ब्लैक पैच में पैदा हुए थे।" 
 
चार्ली चैप्लिन का जन्म प्रमाणपत्र कभी नहीं मिला। उनकी मां हना – जिनके मायके का नाम हिल था– एक घुमंतू बंजारे परिवार की थीं। 1880 के दशक में ब्लैक पैच नाम की, बर्मिंघम के बाहरी औद्योगिक इलाके में एक संपन्न रोमा बस्ती हुआ करती थी। यानी, चार्ली चैप्लिन वेस्ट मिडलैंड्स में रहने वाले, दूर अतीत में कभी भारत से आए, बंजारों के एक परिवार में पैदा हुए थे।
 
यूरोपीय बंजारे भारतवंशी हैं
यूरोप में आम तौर पर रोमा और सिंती कहलाने वाले बंजारों का पश्चिमी भारत से पलायन लगभग एक हज़ार वर्ष पूर्व उस समय शुरू हुआ, जब भारत पर विदेशी इस्लामी शासकों के आक्रमण बढ़ने लगे। आक्रमणकारी उस समय डोम, गुज्जर, सांसी, चौहान, सिकलीगर, ढांगर इत्यादि जातियों के लोगों को गुलाम बना कर पश्चिमी एशिया की तरफ ले जाते थे। 
 
कुछ तो बार-बार बिकते-बिकते और कुछ मौका पाने पर अपने को छुड़ाकर भागते हुए यूरोप के देशों में पहुंचे। उन्हें तब भी हर जगह बहुत अपमान, तिरस्कार और अत्याचार सहने पड़े और अब भी सहने पड़ते हैं।
 
समय के साथ वे यूरोप में सबसे बड़ा अल्पसंख्यक समुदाय बन गए हैं। अनुमान है कि यूरोप में इस समय अलग-अलग जातीय नामों वाले एक से सवा करोड़ रोमा और सिंती रहते हैं। सिंती अपने आप को वे लोग कहते हैं, जिनके पूर्वजों को सिंध से पलायन करना पड़ा था। 
 
रोमा हों या सिंती, वे स्थानीय धर्मों और भाषाओं को अपना लेते हैं, पर आपसी बोलचाल की उनकी भाषा पर हिंदी, सिंधी, पंजाबी, राजस्थानी और संस्कृत की छाप भी साफ़ मिलती है। उनकी गिनती हिंदी जैसी ही है। झंडा भी भारत के तिंरगे जैसा है। उन्हें दुख इस बात का है भारत में उन्हें भुला दिया गया है। भारत की सरकारों से उन्हें कोई सहायता-समर्थन नहीं मिलता।
 
इस समुदाय में चार्ली चैप्लिन के अलावा वैसे तो चित्रकार और मूर्तिकार पब्लो पिकासो, गायक एल्विस प्रेस्ली, टेनिस खिलाडी इली नस्तासे, जर्मनी के फुटबॉल खिलाडी मिशाएल बालाक, रूसी ऑपेरा गायिका अना नेत्रेम्बको, हॉलीवुड अभिनेत्री रीता हेवर्थ और सलमा हायेक जैसे कई बड़े-बड़े नाम भी मिलते हैं। पर रोमा और सिंती लोग कुल मिला कर बहुत ग़रीब, निरीह और अत्याचार पीड़ित हैं। 
 
हिटलर ने न केवल यहूदियों का जातिसंहार किया, यूरोप के 5 लाख रोमा-सिंती बंजारों को भी जीवित नहीं छोड़ा, क्योंकि वे गोरे-चिट्टे आर्यों जैसे नहीं थे।