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नंदलाल मंडलोई और मंडलोई दफ्तर

नंदलाल मंडलोई और मंडलोई दफ्तर - Nandlal Mandloi and Mandloi Office
नंदलाल मंडलोई ईसा की 18वीं शती के प्रारंभिक युगीन मालवा के इतिहास का एक बहुचर्चित व्यक्ति रहा है। वह स्वयं अथवा उसका घराना मालवा में कितना महत्वपूर्ण और प्रभावशाली था तथा मालवा में मराठा आधिपत्य की स्थापना में उसका कितना-क्या हाथ रहा था, आदि अनेक प्रश्नों पर कई बरसों तक वाद-‍िववाद होते रहते थे। गहरी व्यापक ऐतिहासिक खोज के फलस्वरूप पिछले 50 वर्षों में जो प्रामाणिक आधार-सामग्री सामने आई है, उससे निरंतर उठने वाले अधिकतर विवादास्पद प्रश्नों के विश्वसनीय उत्तर प्राप्त हो चुके हैं।
 
इस घराने का मूल पुरुष बलराम चौधरी मालवा का ही निवासी श्रीगौड़ ब्राह्मण था। कालांतर में उसका पुत्र चूड़ामन और पौत्र नंदलाल क्रमश: कम्पेल परगने के चौधरी नियुक्त हुए और वहीं से इस घराने का महत्व और प्रभाव बढ़ने लगा। इस घराने के पुराने समकालीन अभिलेखों का अपना महत्व है। ईसा की वर्तमान 20वीं सदी के प्रारंभ से ही इस अभिलेख-संग्रह की ओर, जो 'मंडलाई दफ्तर' कहलाता रहा है, अधिकतर संशोधकों की दृष्टि रही है। सर्वप्रथम शिपोशी (जिला रत्नागिरि) के श्री वि. अठले ने इस दफ्तर को देखा-भाला और वहां के अधिकांश महत्वपूर्ण अभिलेखों की प्रतिलिपियां कर ली थीं। ग्वालियर क्षेत्र के सुज्ञात उत्साही संशोधक भास्कर रामचंद्र भालेराव ने भी इस दफ्तर के अभिलेखों की प्रतिलिपियां संग्रहीत की थीं।
 
'मंडलोई दफ्तर' में तब सुलभ मूल फारसी अभिलेखों के मराठी भाषांतर अठले संग्रह में संग्रहीत हैं। भालेराव संग्रह में कुछ अभिलेखों के मूल फारसी पाठ देवनागरी अक्षरों में लिखे सुलभ हैं। मंडलोई दफ्तर के सारे प्रारंभिक अभिलेख मूलत: फारसी में लिखे मिलते हैं। ये सारे अभिलेख मुगल शासन और मालवा सूबे के मुगल अधिकारियों के लिखे हुए हैं। अन्य अभिलेख क्षेत्रीय हिन्दी अथवा मराठी में लिखे हुए हैं।
 
अत: सहज-सुलभ 'मंडलोई दफ्तर' को ही सर्वप्रथम हाथ में लिया गया था। तथापि इसका शुभारंभ करने के उद्देश्य से इस लेख में 'मंडलोई दफ्तर' के कुछ महत्वपूर्ण फारसी अभिलेखों के हिन्दी अनुवाद प्रकाशित किए जा रहे हैं। उनके सन्-संवत् ठीक कर हिजरी तारीखों की अंगरेजी तारीखें भी दी जा रही हैं। कुछ महत्वपूर्ण पत्र इस प्रकार हैं:-
 
(1) मालवा के सूबेदार वजीर खां मुहम्मद ताहिर खुरासानी (अक्टूबर, 1664 ई. से अक्टूबर 9, 1672 ई. तक) की दी हुई चूड़ामन की चौधरी पद पर नियुक्ति की सनद (अठले संग्रह)।
 
सूबा मालवा, सरकार उज्जैन, परगना कम्पेल के वर्तमान और भावी अमलदारों को मालूम हो अमलदारों, पटेलों और रय्यत को कि सुंदरदास का पुत्र और उदेराम का पौत्र, चिंतामण, जो उक्त परगने का चौधरी था, निस्सतान मर गया है। इसकी सूचना मिली है। इसी संदर्भ में यह भी मालूम हुआ है कि बलराम का बेटा चूड़ामण और उक्त (उदेराम के) पौत्र चिंतामण, ये दोनों ही अपने पिताओं के संदर्भ के समय में ही उनके स्थान पर उदेराम के साथ मिल-जुलकर काम करते थे। यह (चूड़ामण) स्वामी भक्त और बादशाही की खैरख्वाही चाहने वाला है तथा रय्यत को सुख देगा। अत: उसकी प्रार्थना है कि चौधरी के पद पर उसे नियुक्त किया जाए। इसलिए उक्त परगने के चौधरी पद पर चूड़ामन को बहाल किया जाता है। सो सब ही लोग उसे इस परगने का चौधरी मानें और उसके आदेशानुसार चलें। जुलूसी सन् 12।

(2) मालवा के सूबेदार शाहजादा आजम का परवाना नंदलाल चौधरी के नाम (अठले संग्रह)।
 
सम्मानित नंदलाल चौधरी को मालूम हो कि आज तक शासन के प्रति तुम्हारी खैरख्वाही आदि व्यवहार की सारी जानकारी सैयद अहमद ने लिखकर यहां भिजवाई है। तुम्हें मालूम हो कि शेख अहलादि को वहां अमीन के पद पर नियुक्त करने के लिए अर्ज हुई है। सो उस पद पर रहते हुए वह फौजदारी का काम भी देखता रहेगा। तुम अपनी तरफ से खातिर जमा रखकर मुल्क में बुवाई और फसल को इकट्ठा करवाकर, आबादी बढ़कर, वसूल-वासलात समय पर बराबर करते जाओ। इन (अच्छी) सेवाओं के लिए तुम्हें हुजूर पेश किया जाएगा, इसका भरोसा रखना। ता. 16 रबी-उस-सानी, सन् 45 जुलूसी।
 
(3) नए बसाए गए नंदलालुरा संबंधी सनद, नंदलाल चौधरी के नाम। (अठले संग्रह)। कस्बा इंदौर के वर्तमान और भावी अहलकारों और कारकूनों को मालूम हो कि- सूबा मालवा, सरकार उज्जैन, कस्बा इंदौर के नंदलाल चौधरी ने उस कस्बे में अपने नाम से 'नंदलालुरा' नामक एक नया पुरा बसाया है और उस नए पुरे में सायर आदि करों से छूट दिए जाने संबंधी (प्रार्थना पत्र) आया है। अतएव वहां के व्यापारी और काम-धंधे वाले लोग सुखपूर्वक वहां बसकर व्यापार-धंधा बढ़ाएंगे जिससे आगे चलकर यहां लोगों की बस्ती बढ़ेगी। सो अब तुम भी उन पर सायर वगैरा किसी प्रकार का कोई कर नहीं लगाओगे, इस बारे में तुम्हें विशेष ताकीद की जाती है। ता. 19 रबी-उल-अव्वल, सन् 5 जुलूसी।
 
(4) मुगल साम्राज्य के वजीर सैयद अब्दुला खां का परवाना नंदलाल चौधरी के नाम। (अठले संग्रह)।
 
परगना कंपेल के वर्तमान और भावी अहलकारों और कारकूनों के नाम कि उस परगने के हाकिम और पटेलों ने वहां से लिखकर यह प्रार्थना की है कि नंदलाल चौधरी उस परगने की वसूल-वासलात करने और गांवों को आबाद करने में बड़ी मेहनत कर बादशाही हुकूमत की बहुत खैरख्वाही कर रहा है। सो इस बारे में सबको ज्ञात हो कि इन बातों वगैरा के इनाम में आबाद और गैरआबाद ऐसे कुल 8 गांव उसे इनाम में दिए गए हैं। सो उसे परगने के अन्य जागीरदारों की ही तरह वह इस परगने के चौधरी पद की हेतु उन गांवों का निर्बाध उपभोग करता रहे। सरकार के लिए आवश्यक उपयोगी सेवाएं करते रहने के लिए ये गांव उसके अधीन कर उसे उनका निर्बाध उपभोग करने दिया जाए। यही हुकुम देने के लिए यह परवाना दिया जा रहा है। सो कोई भी उसे किसी प्रकार का त्रास या बाधा नहीं दे। ता. 5 रबी-उस-सानी, सन् 5 जुलूसी।
 
'मंडलोई दफ्तर' में संग्रहीत कुल 12 फारसी अभिलेखों से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि अपने स्वर्गीय पिता चूड़ामण चौधरी के उत्तराधिकार में परगना कंपेल का चौधरी पद नंदलाल चौधरी को सन् 1700 ई. के आरंभ में मिला था। तब से ही नंदलाल चौधरी पूरी स्वामी भक्ति और शुभेच्छा के साथ मुगल साम्राज्य की सेवा बराबर करता रहा। अपने इस पद के वेतन और अन्य सेवाओं के लिए उसने समुचित रकमें निर्धारित करवाकर अपने आधीन परगना कंपेल की शाही आमदनी-मेहसूल तथा अन्य करों से प्राप्त होने वाली रकम से अपने वेतन आदि की सब ही रकमें ले लेने का आदेश भी प्राप्त कर लिया। फर्रुखसियर के सिहासनारूढ़ होने पर नंदलाल चौधरी ने तत्संबंधी उक्त पूर्व के शासकीय आदेशों की पुष्टि में तद्विषयक नई सनद भी प्राप्त कर ली थी।
 
इधर सन् 1711 ई. के प्रारंभ से ही मराठा आक्रमणकारी मालवा पहुंचकर वहां सर्वत्र लूटमार करने लगे थे। उस क्षेत्र के अन्य शासकीय अधिकारियों की ही भांति नंदलाल चौधरी के पास भी समुचित सैन्य बल नहीं था कि इन मराठा आक्रमणकारियों का सफलतापूर्वक सामना कर सके। उनके द्वारा की जाने वाली लूटपाट से अपने परगने कंपेल को बचाकर वहां की प्रजा की सुरक्षा करने के लिए उसने तब ही आक्रमणकारियों द्वारा मांगी गई परगने की चौथ दे दी थी। चौथ के रूप में यों मराठों को दी गई रकम नंदलाल चौधरी को तदनंतर कंपेल परगने की सरकारी आमदनी में से सन् 1711 ई. में मुजरा दे दी गई होगी, क्योंकि सन् 1715 ई. में तत्संबंधी अभिलेखों में 'हमेशा की तरह' शब्दों में इसका स्पष्ट संकेत मिलता है।
 
अप्रैल, 1715 में जब मराठा कंपेल परगना में पहुंचे तब का विवरण एक समकालीन पत्र में इस प्रकार मिलता है। 'बड़वाह घाटे पर नर्मदा पार कर कोई 10,000 मराठा घुड़सवार तिलवाड़ा आ पहुंचे। उनके मुखिया कंपेल परगने से, जो नसरत खां की जागीर में है, पिछले तीन साल की चौथ मांग रहे हैं। इसी कारण उस परगने का आमिल तो उज्जैन चला गया है। नंदलाल चौधरी और कंपेल कस्बे के अन्य निवासियों ने अपने कुटुम्बियों को पहाड़ों में भेज दिया है तथा स्वयं वहां से भाग जाने को तैयार बैठे हैं। मराठों के संदेश के जवाब में उन्होंने कहला भेजा है कि चौथ उन्हें चुका दी जाएगी, अत: वे उस (कंपेल) तालुका के गांवों को बरबाद नहीं करें। उन्होंने 2 घोड़े और कुछ नकद रुपए भी (मराठों को) भेजे हैं।' यों तब रु. 25,000 मराठों को चौथ के देकर कंपेल परगने की सुरक्षा की गई थी।
 
कंपेल परगने की सुरक्षा के साथ ही उसी परगने के महत्वपूर्ण कस्बे इंदौर की उन्नति तथा वहां व्यापार की वृद्धि आदि के लिए भी नंदलाल चौधरी प्रयत्नशील था। इसी उद्देश्य से उसने इंदौर कस्बे में अपने नाम से एक नयापुरा बसाकर वहां के व्यापार पर सायर आदि सब प्रकार के करो से छूट प्राप्त कर ली थी। यों उसने इंदौर के भावी आर्थिक और औद्योगिक विकास का शुभारंभ भी किया था। मुगलशाही शासन के प्रति की गई इन सेवाओं और परगने की जनता की सुरक्षा आदि के लिए सारे कार्यों के पुरस्कार रूप सन् 1716 ई. में नंदलाल चौधरी को कंपेल परगने के 8 गांव इनाम में दिए गए थे। मुगल साम्राज्य के प्रति उसकी राजभक्ति तथा अडिग निष्ठा को साम्राज्य के वजीर, सैयद अब्दुल्ला खां ने भी मान्य कर लिया था। इन फारसी अभिलेखों से नंदलाल चौधरी का यह जो स्वरूप उभरता है, वह सर्वथा सही और इतिहाससम्मत ही है। देश और काल की बदलती हुईं परिस्थितियों के फलस्वरूप नंदलाल के दृष्टिकोण, निष्ठा और नीति में जो परिवर्तन हुए, उन पर आगे कभी विवेचन किया जाएगा।
 
-डॉ. रघुवीरसिंह के एक आलेख से