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इंदौर के समस्त महलों का सिरमौर लालबाग पैलेस

शनिवार,जून 25, 2022
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जूनी इंदौर स्थित गणपति मंदिर संभवत: नगर का सबसे प्राचीन मंदिर है। यह मंदिर सरस्वती नदी के पूर्वी तट पर एक ऊंचे टीले पर बना हुआ है। मंदिर की पीठिका में लगे हुए कुछ शिलाखंडों को देखने से जान पड़ता है कि इस स्थान पर परमार काल (9वीं से 12वीं सदी) में ...
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इंदौर नगर में राजप्रासादों के अतिरिक्त राज्य की ओर से कुछ महत्वपूर्ण इमारतों का भी निर्माण करवाया गया। महाराजा तुकोजीराव (तृतीय) की अल्पवयस्कता काल में (1903 से 1911 ई.) होलकर प्रशासन, कौंसिल ऑफ रीजेंसी द्वारा संचालित था। उक्त अवधि में राज्य के लोक ...
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राजपरिवार के व्यक्तियों, सुल्तानों व सम्राटों की स्मृति में उनके स्मारक-मकबरे या छत्रियों का निर्माण भारत में मध्यकाल से चली आ रही एक परंपरा है। मुस्लिम शासकों ने मकबरों का निर्माण करवाया, वहीं राजपूतों ने छत्रियां बनवाईं। राजपुताना की इस परंपरा ने ...
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होलकर रियासत की नैरोगेज (मीटरगेज या छोटी) रेलवे लाइन इंदौर शहर को ग्रेट इंडियन पैनिन्सुला रेलवे लाइन से निमाड़ के प्रमुख शहर खंडवा को जोड़ने वाली प्रमुख लाइन थी। इस लाइन को बनाने के लिए ग्रेट इंडियन पैनिन्सुला रेलवे कंपनी ने कुछ समय के लिए इरादा भी ...
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महिदपुर के युद्ध में पराजित हो जाने पर होलकर पक्ष को मंदसौर की संधि (1818 ई.) करनी पड़ी जिसके तहत इंदौर में ईस्ट इंडिया कंपनी को अपनी रेसीडेंसी कायम करने की इजाजत होलकर ने दी। इस संधि के बाद ही इंदौर होलकर रियासत की राजधानी बना। अंगरेजों व होलकर ...
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इंदौर के वाणिज्य-व्यापार व राज्य की व्यापारिक नीति निर्धारित करने में 'ग्यारह पंच' नामक संस्था का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। महाराजा हरिराव होलकर के शासनकाल (17 अप्रैल 1834 - 24 अक्टूबर 1843 ई.) में इस संस्था की स्थापना इंदौर नगर में की गई। यह इंदौर ...
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अंगरेजों व होलकरों के मध्य 1817 में महिदपुर में निर्णायक युद्ध लड़ा गया। युद्ध में होलकर पक्ष पराजित हुआ और 1818 में मंदसौर में उन्हें अंगरेजों से संधि करनी पड़ी। इसी संधि की व्यवस्थाओं के अंतर्गत अंगरेज रेजीडेंट इंदौर आया और तभी से इंदौर नगर होलकर ...
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महाराजा शिवाजीराव ने अपने अल्प वयस्क पुत्र के पक्ष में 1903 में होलकर गादी त्याग दी थी। उस समय प्रशासन का संचालन कौंसिल ऑफ रीजेंसी द्वारा चलाया जा रहा था। पुलिस कमिश्नर भी एक ब्रिटिश अधिकारी था। ऐसी विपरीत परिस्थितियों में भी इंदौर नगर में राष्ट्रीय ...
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मराठा संघ के राजवंशों में होलकर राजवंश का स्थान विशिष्ट रहा है। जहां एक ओर देवी अहिल्या के गौरवपूर्ण कार्यों से इस वंश की कीर्ति सदा गुंजायमान रही, वहीं इस वंश के सर्वश्रेष्ठ योद्धा मालव केसरी महाराजा यशवंतराव (प्रथम) ने अपने अदम्य साहस, वीरता, ...
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महाराजा शिवाजीराव होलकर के विरुद्ध रचे गए ब्रिटिश षड्‌यंत्र में दुर्भाग्यवश उन्हीं का प्रधानमंत्री (मिनिस्टर) दीवान रघुनाथराव भी सम्मिलित था। लेखक को, राष्ट्रीय अभिलेखागार नई दिल्ली से प्राप्त गोपनीय रिपोर्ट ने इस तथ्य को पूरी तरह स्थापित कर दिया ...
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इंदौर में रेजीडेंट रहे सर केनेथ फिट्‌ज के कुछ संस्मरण महत्वपूर्ण हैं जो उन्होंने अपनी किताब 'ट्‌वायलाइट ऑफ द महाराजाज़' में संग्रहीत किए हैं। देशी रियासतों की रंगीन दुनिया से मेरा 33 वर्ष तक संबंध रहा। वर्ष 1911 में चौंधिया देने वाले दिल्ली दरबार के ...
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सेंट्रल इंडिया और विशेषकर इंदौर में 1857 का महान विद्रोह भड़कने के तुरंत बाद व आगे के समय में महाराजा तुकोजीराव होलकर का व्यवहार विवादास्पद बना रहा। महाराजा ने प्रारंभ में क्रांतिकारियों का साथ दिया किंतु परिस्थितियों के बदलते ही उन्होंने अपने आपको ...
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महाराजा के प्रशासन व सामान्यजन की स्थिति का सर्वेक्षण करके अपनी गोपनीय रिपोर्ट भारत सरकार को प्रेषित करने के लिए कर्नल डी. राबर्टसन को इंदौर भेजा गया था। उन्होंने 'नोट ऑन इंदौर अफेयर्स' शीर्षक से अपनी रिपोर्ट 30 जून 1895 को प्रेषित की जो 'पूना वैभव' ...
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युवराज शिवाजीराव होलकर (बाला साहब) के मन में प्रारंभ से ही अंगरेजों व ब्रिटिश सत्ता के प्रति असंतोष व आक्रोश भरा था। उनके पिता तुकोजीराव (द्वितीय) के राज्यकाल में पहली जुलाई 1857 को इंदौर में हुए विद्रोह की न केवल उन्होंने गाथा सुनी थी, अपितु कई ऐसे ...
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खंडेराव का देहांत होने पर ब्रिटिश सरकार ने महाराजा यशवंतराव होलकर की विधवा (मां साहिबा) की सहमति से तुकोजीराव द्वितीय को उनका उत्तराधिकारी मनोनीत किया था। 3 मई 1835 को जन्मे तुकोजीराव द्वितीय की आयु कम होने की वजह से राज्य का शासन इंदौर के तत्कालीन ...
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इंदौर रेसीडेंसी व छावनी क्षेत्र के शिक्षित-प्रबुद्ध वर्ग की ज्ञान पिपासा शांत करने के लिए 1881 ई. में एक सार्वजनिक संस्‍था की स्थापना का विचार मूर्तरूप लेने लगा था, तब एक छोटा वाचनालय यहां स्‍थापित किया गया था। यह एक संयोग ही था। इसकी स्थापना के कुछ ...
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कहा जाता है कि इन्द्रेश्वर मंदिर इंदौर नगर का सर्वाधिक प्राचीन मंदिर है जिसके आधार पर इस नगर का नाम इंदौर पड़ा। यह शिव मंदिर नदी के तट पर एक ऊंचे टीले पर निर्मित किया गया था।
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सिखों के साहित्य में प्राप्त संदर्भों के अनुसार गुरु नानकदेवजी जब उत्तर भारत से दक्षिण की यात्रा पर निकले तब उज्जैन से दक्षिण की ओर जाते हुए (1499-1500 ई.) में वे इंदौर में एक इमली के पेड़ के नीचे रुके थे। तब हरसिद्धि और जूनी इंदौर अवश्य आबाद रहे ...
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महाराजा के स्नेहभाव से द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान इंदौर के नागरिकगण भी उद्वेलित हो उठे। नगर में जगह-जगह धन एकत्रित करने का अभियान चल पड़ा। इंदौर के नागरिकों ने 5 हजार पौंड की राशि ब्रिटिश सरकार को एक हवाई जहाज खरीदने के लिए भेंट की। उस सहायता के साथ ...
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