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नगर में समाचार पत्रों का सिलसिला : 'मालवा अखबार' छपा 1849 से

नगर में समाचार पत्रों का सिलसिला : 'मालवा अखबार' छपा 1849 से - chain of newspapers in indore nagar
अंगरेजों व होलकरों के मध्य 1817 में महिदपुर में निर्णायक युद्ध लड़ा गया। युद्ध में होलकर पक्ष पराजित हुआ और 1818 में मंदसौर में उन्हें अंगरेजों से संधि करनी पड़ी। इसी संधि की व्यवस्थाओं के अंतर्गत अंगरेज रेजीडेंट इंदौर आया और तभी से इंदौर नगर होलकर राज्य की राजधानी बना।
 
पश्चिमी प्रभाव शिक्षा, संस्कृति व रहन-सहन पर पड़ना स्वाभाविक था। राजधानी के धनिक व शिक्षित नागरिकों के आग्रह पर इंदौर नगर में पहली बार 1849 में एक अखबार प्रकाशित हुआ, जिसका नाम मालवा अखबार रखा गया। समूचे मालवा में प्रकाशित होने वाला यह पहला अखबार था। भाषागत एकता का यह विलक्षण उदाहरण है कि एक ही पृष्ठ के आधे भाग पर हिन्दी और आधे भाग पर उर्दू में समाचारों का प्रकाशन किया जाता था। शुद्धत: न तो यह हिन्दी का समाचार पत्र था न ही उर्दू का अखबार। भाषा वैज्ञानिकों व समाचार पत्रों को शोधकर्ताओं के लिए यह एक महत्वपूर्ण तथ्य है कि इस अखबार के संपादक पंडित धरमनारायण थे और उसे होलकर राज्य की प्रेस में छापते थे शेख कमरुद्दीन।
 
इस साप्ताहिक अखबार का दाम उन दिनों 4 आने था। वर्तमान दैनिक समाचार-पत्रोंके पृष्ठों की तुलना में उसके पृष्ठों का आकार एक चौथाई ही था। कुल आठ पृष्ठ इस अखबार में होते थे। उस जमाने में जबकि 4 आने में 5 सेर गेहूं और 6 आने में एक सेर शुद्ध देशी घी मिलता था, तब भी लोग 4 आने में अखबार खरीद कर पढ़ते थे। इन मूल्यमानों के अनुपात में वर्तमान अखबारों के दाम बहुत कम हैं।
 
इस अखबार के प्रकाशन के लिए तत्कालीन ब्रिटिश रेजीडेंट मिस्टर हेमिल्टन ने भी काफी प्रोत्साहित किया था। अखबार के अक्षर काफी मोटे होते थे। भाषा उर्दू-फारसी मिश्रित हिन्दी थी। मालवा अखबार का प्रथम अंक 6 मार्च 1849 को प्रकाशित हुआ था, जिसके प्रथम पृष्ठ पर प्रकाशित इश्तहार को देखिए- 'सब लोगों को मालूम है कि मालवे भर में कोई अखबार ऐसा नहीं है जिससे देश-देश की खबर और जानने लायक बातें यहां के रहने वालों को मालूम हों। जो लोग धनवान हैं, वे तो अपने-अपने अखबारनवीसों के वसीले से कुछ-कुछ हाल इधर-उधर दर्याफ्त कर लेते होंगे, मगर सबको इतना कहां मकदूम के बहुत रुपए खर्च करके खबर मंगाए। इसलिए सबके नफे वास्ते जनाबवाला हिम्मत बुजुरगतीनत खैर ख्वाह रैयत मिस्टर हेमिल्टन साहब बहादुर ने मेरे तरफ इशारा किया कि एक अखबार उर्दू औरनागरी में निकाल के मालवे वाले और हिन्दुस्तान के लोग उसे पढ़ सकें। इसलिए मैंने उनके हुकुम के बमूजिब ये तदबीर की के हर आठवें दिन एक अखबार यहां महाराजा होलकर बहादुर के छापखाने में निकला करे। उसका नाम मालवा अखबार और उसकी कीमत (लागत) रुपए 12 लाख है। अखबार में खबर देश-देशों की और कुछ थोड़ी तवारीख मालवे के सरदारों की और हाल बड़े-बड़े शहरों का लिखा जाएगा। जिस किसी को उसका लेना मंजूर हो तो महाराजा होलकर बहादुर के छापखाने के कारकून को लिख भेजें, उसके पास यह अखबार भेज दिया जाएगा।'
 
इस इश्तिहार के साथ यह अखबार इंदौर से प्रकाशित होना प्रारंभ हुआ। इसमें इंदौर, भोपाल, ग्वालियर, धार, देवास आदि राज्यों के समाचारों को प्रमुखता से छापा जाता था जिससे प्रतीत होता है कि इन राज्यों में यह अखबार काफी बिकता रहा होगा। धारावाहिक रूप से उक्त राज्यों के राज परिवारों का इतिहास भी इसमें छापा गया था। इसके अतिरिक्त देशभर में छपने वाले प्रमुख समाचार पत्रों की समीक्षा भी इसमें प्रकाशित की जाती थी। सभी अंक नियमित समय पर प्रकाशित होते थे।
 
165 वर्ष पूर्व का इंदौर : अखबार के आईने में
 
मालवा अखबार तत्कालीन गतिविधियों का दर्पण बन गया था। क्षेत्र व नगर की घटनाओं को इस अखबार में प्रमुखता से छापा जाता था। महाराजा तुकोजीराव होलकर (द्वितीय) के विवाह के समाचारों को काफी सुर्खियों के साथ छापा गया। 17 अप्रैल 1849 के अंक में छपी खबर इस तरह थी- '25 तारीख इस महीने को शादी महाराजे साहेब बहादुर की होगी और 13 तारीख को रस्म टीके की अमल में आई और उसी रोज तोपें खुशी की छोड़ी गईं। सुना जाता है कि खरीते, वास्ते बुलाने आसपास के रईसों के कचहरी रेजीडेंट से भेजे गए हैं।'
 
महाराजा के विवाह, बारात व रईसों के ठाट-बाट के विषय में अखबार अपने 1 मई 1849 के अंक में लिखता है- 'जनाब नवाब साहब रईस जावरा 25 तारीख को सुबह इंदौर में दाखिल हुए, उसी दिन बारात का रोज था। 5 बजे के करीब साहब रजीडंट बहादुर और साहिबों के साथ तमाम अबले रजीडंसी और रईसों आसपास के बड़ी धूम व शान के साथ हाथियों पर सवार होकर बाड़े में तशरीफ ले गए और महफिल शादी में जो बाड़े चौक में मंडवे के नीचे हुई, भी बैठे। नाच तवायफों का शुरू हुआ और सलामी की तोपों ने गुल खुशी का आसमान तक पौंछाया।'
आज की तरह मालवा अखबार भी विभिन्नवस्तुओं के भाव छापता था। 5 जून 1849 के अंक में इंदौर मंडी के भाव इस प्रकार छापे गए थे- 'गेहूं 25 सेर, चना 26 सेर, अच्छा घी मन पीछे (40 सेर) 15 रु. का बिकता है। अफीम का भाव 66 दो आने का है। भाव जैपुर की अफीम का साढ़े सत्तर रुपए है। और कीमत सोने की 18 रु. 2 आने तोला है।' उक्त गेहूं और चने के भाव एक रु. के 25 व 26 सेर दिए गए हैं।' सहज ही कल्पना की जा सकती है कि आज की तुलना में इंदौर नगर में वस्तुओं के दाम क्या थे।
 
जूनी इंदौर के विषय में रोचक जानकारी 29 मई 1849 के अंक में इस प्रकार छपी थी- 'जूनी इंदौर याने पुराने शहर में इंदौर के 971 घर हिन्दुओं के और 507 घर मुसलमानों के हैं। इनमें से 781 घर तो खपरेल के और 612 छप्पर के और 5 चूने के पुख्ता हैं। शुमार मरदों का 3138 और औरतों का 2686 है। लड़कों की तैदात 1014 और लड़कियों की 792 है। सो कुल आबादी 7630 आदमियों की हुई। गाय 875, बैल 705, भैंस 449, घोड़े 353, कुएं 71 व बावली 1 है।'
 
इंदौर में ठगों व बेईमान लोगों के कारनामे छापकर अखबार अपने पाठकों को सचेत करता था। अखबार अपनी तारीफ भी लिख दिया करता था। 4 जून1850 के अंक में लिखा गया, 'यह अखबार हर मंगल को निकलता है, इसका मायना यह है कि अखबार को लेने वाले का कभी अमंगल होने का नहीं।'
 
इंदौर से निकलता था 'दि सेंट्रल इंडिया टाइम्स'
 
1934 में इंदौर से प्रकाशित होने वाला साप्ताहिक पत्र 'दि सेंट्रल इंडिया टाइम्स' बड़ी रोचक खबरों से भरा होता था। लोग एक आने में खरीद कर इस अखबार को बड़ी रुचि से पढ़ते थे। इसके ग्राहक इंदौर नगर, राज्य, देश व विदेशों में भी थे। नगर में इसकी वार्षिक कीमत 4 रु., देहातों में 5 रु. तथा विदेशों में 15 शिलिंग थी। यह अखबार इंग्लिश व हिन्दी में छपता था। दोनों अलग-अलग संस्करण नहीं थे अपितु एक ही अखबार में कुछ पेज हिन्दी के तो कुछ इंग्लिश के होते थे। इसकी छपाई होलकर की सरकारी प्रेस में होती थी। पत्र के संपादक, प्रकाशक व मुद्रक श्री आर. व्यंकटराम थे।
 
आइए, बुधवार, 28 मार्च 1934 के अंक में छपी कुछ खबरों का जायजा लें-
 
'नार्थ तुकोगंज के निवासियों को पानी के लिए भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा था क्योंकि उस क्षेत्र में नगर पालिका पर्याप्त दबाव से पानी नहीं पहुंचा पा रही थी। नागरिकों के बार-बार शिकायत किए जाने पर भी कोईसुनवाई नहीं हो रही थी। यद्यपि इस क्षेत्र में जल प्रदाय दोपहर व फिर रात्रि 7 से 11 बजे तक करने का समय तय था लेकिन नागरिकों को मध्य-रात्रि तक भी पानी नहीं मिलता था। बिलावली तालाब में पर्याप्त जल स्तर था फिर भी पानी की पर्याप्त सप्लाई न होने से नागरिक क्षुब्ध थे।'
 
यशवंत क्लब खेलकूद व मनोरंजन के लिए विख्यात था। वहां आयोजित ब्रिज टूर्नामेंट की खबर छापते हुए अखबार ने प्रतिस्पर्धा में भाग लेने वाले खिलाड़ियों के नाम भी छापे। खेल चुके खिलाड़ियों में महाराजा यशवंतराव होलकर, वजीरुद्दौला, रायबहादुर एस.एम. बाफना, श्री एस.वी. कानूनगो, श्री वी.पी. भांडारकर, रावसाहेब टिल्लू, सरदार झनाने, श्री सी.जी. मतकर, श्री त्रिवेदी व मेजर नायडू प्रमुख थे।
 
यह जान लेना भी कम रोचक न होगा कि इंदौर नगर पालिका द्वारा सायकलों पर कर वसूला जाता था। नगर पालिका के कर्मचारियों ने नगर के व्यस्त मार्ग पर स्थित कृष्णपुरा पुल पर रस्सी बांधकर सभी सायकल सवारों को रोक-रोक कर सायकल कर वसूलना प्रारंभ कर दिया था। कर-वसूली के इस तरीके का नागरिकों ने विरोध किया और आरोप लगाया कि नगर पालिका कर्मचारी यह तरीका अपना कर गलत रूप से व्यक्तिगत धन संग्रहकर रहे हैं।
 
फोर्ड कार व्ही 8 उन दिनों भारत में आई ही थी। संपूर्ण मध्य भारत के प्रमुख डीलर सांघी ब्रदर्स एंड कं. थी। उन्होंने बड़ा रोचक विज्ञापन इस कार के लिए छपवाया।
 
नोशेरवान एंड कं. भी अपना विज्ञापन देने में पीछे न रही। यह कंपनी शेवरले और व्हेकसॉल कारों, ट्रकों व ए.जी.एस. एवं ओल्फ मोटर सायकलों की मुख्य डीलर थी। इनकी कंपनी ब्यूक, लासेले, केडिलेक, ओपेल, पोंटिएक तथा सिंगर कारों की भी सप्लाय करती थी।
 
इंदौर से अन्य समाचार-पत्रों का प्रकाशन
 
इंदौर नगर के इतिहास में प्रथम समाचार-पत्र होने का गौरव 'मालवा अखबार' को है। 1875 में इसका प्रकाशन बंद कर देना पड़ा। इसी बीच शहर में कुछ और भी छापेखाने स्थापित हुए। 1852 में 'दिल्ली-ए-अखबार' तथा 1861 से 'पूर्ण चंद्रोदय' का प्रकाशन इंदौर से प्रारंभ हुआ। उस समय तक प्रकाशित होने वाले अखबार नागरी और उर्दू के थे। इंदौर में मराठी भाषी लोगों की संख्या काफी थी। नगर में प्रशासनिक कार्यालयों, न्यायालयों, सेना, दरबार व अन्य महत्वपूर्ण पदों पर मराठी भाषी लोग सेवारत थे। यद्यपि वे हिन्दी समझते थे किंतु उनकी मातृभाषा मराठी होने से उन्हें कठिनाई अवश्य होती थी। इस असुविधाको समाप्त करने के लिए 1863 से 'वृत्त लहरी' शीर्षक से एक मराठी साप्ताहिक का प्रकाशन इंदौर से प्रारंभ हुआ। इसका प्रसारण न केवल इंदौर में अपितु पूना व बंबई में भी था। उस समय के ख्यातिनाम साहित्यकारों की रचनाएं भी इस साप्ताहिक ने प्रकाशित की थी।
 
1873 से होलकर राज्य के गजट का प्रकाशन प्रारंभ हुआ, जिसमें राज्य के प्रशासनिक आदेशों, अधिकारियों के तबादलों व महत्वपूर्ण सूचनाओं का प्रकाशन किया जाता था। वस्तुओं के भाव भी इसमें छापे जाते थे।
 
हिन्दी में प्रकाशन कार्य उत्तरोत्तर बढ़ता गया। इसी का परिणाम है कि बनारस से प्रकाशित होने वाली 'इन्दु' नामक पत्रिका जब वहां बंद होने की स्थिति में आ चुकी थी, तो उसका प्रकाशन इंदौर से करने की योजना बनाई गई। 1910 में यह सफल प्रयोग यहां आरंभ हुआ और 'इन्दु' का प्रकाशन इंदौर से जारी रहा।
 
पूना से प्रकाशित होने वाले प्रसिद्ध अखबार 'ज्ञानप्रकाश' के संपादक श्री वासुदेव गोविंद आपटे को उनके अनुभवों का लाभ लेने के लिए इंदौर आमंत्रित किया गया। महाराजा का अनुरोध स्वीकार कर वे इंदौर पधारे। महाराजा तुकोजीराव के आग्रह पर 1915 में 'मल्हारी मार्तंड विजय' नामक द्विभाषी साप्ताहिकअखबार का प्रकाशन प्रारंभ किया गया। श्री आपटे को उसका संपादक बनाया गया।
 
श्री आपटे निर्भीक प्रकृति व स्वतंत्र विचारों के व्यक्ति थे। उन्होंने इस अखबार में अपने मौलिक विचारों को स्वतंत्रतापूर्वक छापा। साथ ही राज्य के कार्यों व ऐसी नीतियों की, जो जनविरोधी थीं, निर्भीकतापूर्वक आलोचनाएं भी छापीं। यह बात अनेक उच्चाधिकारियों, दरबारियों, महाराजा के तथाकथित हितैषियों व स्वयं महाराजा को पसंद न आई। फलस्वरूप 1920 में इस साप्ताहिक का प्रकाशन बंद कर दिया गया।
 
आजादी के पूर्व अनेक पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन
 
इंदौर नगर सेंट्रल इंडिया की नब्ज था। फ्रांस के विषय में कहा जाता था कि जब फ्रांस को जुकाम होता था तो सारे योरप को छींकें आने लगती थीं। यह कथन सेंट्रल इंडिया के संबंध में इंदौर पर भी लागू होता है।
 
इंदौर नगर धीरे-धीरे प्रकाशन कार्यों का केंद्र बनता जा रहा था। 1920 के आसपास यहां से 'मालव मयूर' नामक एक साहित्यिक मासिक पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ हुआ। श्री हरिभाऊ उपाध्याय ने इसे अथक परिश्रम से सजाया-संवारा था किंतु अधिक समय तक इसका प्रकाशन जारी नहीं रखा जा सका।
 
इंदौर के जैन समाज ने भी साहित्य प्रकाशन के क्षेत्र में पग रखा। 1918 से 20 के मध्य ही खंडेलवाल जैन, जैन दिवाकर और जैन प्रभात नामक तीन पृथक-पृथक पत्रिकाओं का प्रकाशन हुआ। यह सिलसिला भी अधिक दिनों तक नहीं चला। आज तक जिस मासिक पत्रिका का सिलसिला चला आ रहा है वह है 'वीणा'। इस पत्रिका का प्रकाशन 1927 से हिन्दी साहित्य समिति द्वारा किया जा रहा है। 'वीणा' का संपादन देश के ख्यातनाम संपादकों ने किया और हिन्दी साहित्य के उल्लेखनीय हस्ताक्षरों की रचनाएं इसमें छापी गई हैं। पत्रिका देश की महत्वपूर्ण साहित्यिक मासिकों में से एक है, जिन्हें शोध व साहित्य की स्थापित पत्रिका होने का सम्मान प्राप्त है।
 
इसी बीच इंदौर से एक इंग्लिश अखबार 'प्रिन्सली इंडिया' निकालकर एक नया प्रयोग किया गया। यह अखबार अपेक्षित सफलता न पा सका और बंद हो गया, लेकिन दूसरा अंगरेजी पेपर 'सेंट्रल इंडिया टाइम्स' 1940 तक प्रकाशित होता रहा।
 
1930 के लगभग महाराष्ट्र साहित्य सभा ने 'मालवा साहित्य सभा' नामक पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ किया, जो त्रैमासिक थी। 'प्रजा मंडल पत्रिका' का प्रकाशन 1939-40 से शुरू हुआ। अपने क्रांतिकारी विचारों व स्वतंत्र अभिव्यक्तिके कारण 1942-43 में इसका प्रकाशन प्रतिबंधित कर दिया गया फिर भी अनेक युवकों के सहयोग से लुक-छिपकर इसका प्रकाशन व वितरण होता रहा। देश की आजादी तक इस प्रतिबंधित पत्रिका का सिलसिला बराबर जारी रहा। इंदौर में आज भी उस पीढ़ी के लोग जीवित हैं, जिन्होंने इसे चलाया था।
 
इंदौर नगर व्यापारिक गतिविधियों का केंद्र बनता जा रहा था। व्यापार जगत के समाचारों को समेटकर उनका प्रकाशन 'अशोक' नामक हिन्दी साप्ताहिक में 1944 से किया जाने लगा।
 
1964 में भी नईदुनिया प्रदेश में पहले स्थान पर था
 
भारत की आजादी के 1-2 वर्ष पूर्व से प्रारंभ होता है इंदौर में आधुनिक समाचार पत्रों के प्रकाशन का सिलसिला। 22 मार्च 1946 का दिन उस मामले में ऐतिहासिक कहा जा सकता है क्योंकि इस दिन नगर में 'इंदौर समाचार' का प्रकाशन प्रारंभ हुआ। 5 जून 1947 से 'नईदुनिया' का प्रकाशन शुरू हुआ। यद्यपि 'नईदुनिया' का प्रकाशन बाद में प्रारंभ हुआ तथापि अपनी रोचक शैली, सुंदर छपाई व विश्वसनीयता के कारण 1964 तक 'नईदुनिया' की प्रसार संख्या 18,880 के आंकड़े को पार कर गई और यह अखबार न केवल नगर में अपितु मध्यप्रदेश में सर्वाधिक प्रसार वाले दैनिक का गौरव,भारतीय समाचार-पत्रों के रजिस्ट्रार से पाने में सफल हुआ।
 
इंदौर नगर से जागरण का प्रकाशन 1950 में प्रारंभ हुआ। अगले ही वर्ष नव-प्रभात ने भी इस क्षेत्र में कदम रखा। 'नव-भारत' का प्रकाशन तो 1960 में प्रारंभ हुआ। जनार्दन दैनिक के रूप में 1961 से छपने लगा। 1963 से दैनिक अग्निबाण भी नगर में प्रारंभ किया गया। भारतीय समाचार-पत्र के रजिस्ट्रार से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार उक्त समाचार-पत्रों की 1964 में दैनिक प्रसार संख्या क्रमश: 4774, 5727, 1500 तथा 850 थी।
 
साप्ताहिक समाचार-पत्रों में 1958 से 'साप्ताहिक स्पूतनिक' छपने लगा। नगर की कम्युनिस्ट पार्टी ने प्रचार विज्ञान 1963 में व इसके पूर्व 'जनसंघर्ष' 1960 में प्रकाशित करने आरंभ कर दिए थे। सिंधी साप्ताहिक पत्रिका 'हिन्दमाता' प्रकाशन के साथ-साथ हिन्दी व सिंधी में एक अन्य साप्ताहिक पत्रिका का प्रकाशन 'मातृभूमि' के नाम से 1948 में प्रारंभ हुआ। समाचारों व सामयिक विषयों को अपने में समाहित किए यह पत्रिका बहुत लोकप्रिय हुई। इसकी प्रसार संख्या 6286 थी, जो साप्ताहिकों में सर्वोच्च अंक था। समाज कल्याण की अवधारणा को लेकर 1959 में नगर से 'भूमि क्रांति' का प्रकाशन हुआ, जिसकी लगभग एक हजार प्रतियां छापी जाती थीं।यह मध्यप्रदेश सर्वोदय मंडल का मुखपत्र था। 'कान्यकुब्ज ज्योति' 1959 में ही छपने लगी थी किंतु इसका प्रसार जाति तक ही सीमित था। 'सिनेमा एक्सप्रेस' 1959 से छपने लगा।
 
व्यापार-व्यवसाय की खबरों को समेटे 'अशोक' 1944 में, इंदौर मार्केट रिपोर्ट 1957, भगवती मार्केट रिपोर्ट 1959 व इंदौर व्यापार रिपोर्ट 1961 में पाठकों तक पहुंचनी प्रारंभ हुई। इनमें इंदौर व्यापार रिपोर्ट हिन्दी-गुजराती में तथा भगवती मार्केट रिपोर्ट हिन्दी-इंग्लिश में साइक्लोस्टाइल्ड होती थी।
 
बाबू केशवचंद्र सेन ने इंदौर में प्रेरक उद्‌बोधन दिए
 
बाबू केशवचंद्र सेन तत्कालीन भारत के महान समाज व धर्म-सुधारकों में महत्वपूर्ण स्थान रखते थे। उनकी ख्याति एक धर्म-सुधारक व चिंतक के रूप में संपूर्ण योरप में थी। वे बहुत ही प्रभावशाली वक्ता थे जो अपने विचारों को धाराप्रवाह रूप से अभिव्यक्त करने की मौलिक प्रतिभा रखते थे।
 
बाबू केशवचंद्र सेन 1874 में इंदौर पधारे और नगर में उनके द्वारा तीन व्याख्यान दिए गए। केशव बाबू इंग्लैंड के बुद्धिजीवियों पर अपनी चिंतन शैली व अभिव्यक्ति की धाक जमा चुके थे। ऐसे ख्यातनाम वक्ता को महाराजा ने पूर्ण सम्मान देते हुए राजकीय अतिथि बनाया और उन्हें लालबाग पैलेस में ठहराया गया।
 
केशवचंद्र सेन ने इंदौर में अपना पहला व्याख्यान रेसीडेंसी स्कूल में दिया जिसकी अध्यक्षता होलकर दरबार के प्रधानमंत्री सर टी. माधवराव ने की थी। उनके दूसरे और तीसरे व्याख्यानों का आयोजन 'इंदौर मदरसा' में किया गया, जिसमें नगर के अनेक बुद्धिजीवियों के साथ स्वयं महाराजा तुकोजीराव भी उपस्थित थे। महाराजा, नगरवासी व योरपीय मूल के लोगों ने उनके भाषणों को मंत्रमुग्ध होकर सुना और बाबू केशवचंद्र सेन के चुम्बकीय व्यक्तित्व से अत्यधिक प्रभावित हुए। इंग्लैंड के बुद्धिजीवियों ने श्री सेन को कुशल राजनीतिज्ञ व सुधारक ग्लेडस्टन और विल्बर फोर्स के समकक्ष निरूपित किया था जिसकी सार्थकता उन्होंने इंदौर में दिए अपने भाषणों में सिद्ध कर दी थी।
 
महाराजा उनके भाषणों से इतने अधिक प्रभावित हुए कि केशव बाबू से उन्होंने विशेष आग्रह कर पृथक रूप से लंबी चर्चाओं के लिए समय मांगा। केशव बाबू ने महाराजा की जिज्ञासा व धर्म के प्रति आस्था को देखकर सहमति दे दी। महाराजा ने दो बार केशव बाबू से लालबाग में लंबी चर्चाएं कीं और उनसे बहुत प्रभावित भी हुए। महाराजा की उत्सुकता को देखकर केशवचंद्र सेन ने महाराजा को परामर्श दिया कि वे कुछ समयके लिए कलकत्ता आएं जो उन दिनों अंगरेज सरकार की राजधानी होने के साथ ही भारत की सांस्कृतिक व साहित्यिक राजधानी भी थी। महाराजा ने उनका परामर्श स्वीकारते हुए 1875 के जाड़ों में कलकत्ता जाने की सहमति प्रदान कर दी।
 
1872 में जब लॉर्ड नार्थब्रुक बड़वाह में खंडवा-इंदौर रेलवे लाइन के नर्मदा नदी पर बने रेलवे पुल का उद्‌घाटन करने आए थे तो उन्होंने भी महाराजा होलकर को कलकत्ता पधारने का निमंत्रण दिया था। बाबू केशवचंद्र सेन के निमंत्रण ने नार्थब्रुक के निमंत्रण को और बल प्रदान किया और महाराजा ने कलकत्ता यात्रा कर वहां के बुद्धिजीवियों से संपर्क स्थापित किए।