गुरुवार, 17 जुलाई 2025
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Written By WD

शीश-मौर बाँधने लगा फागुन

फागुन
शिव बहादुर सिंह भदौरिया
NDND
आमों के शीश-
मौर बाँधने लगा फागुन।

शून्य की शिलाओं से-
टकराकर ऊब गई,
रंगहीन चाह
नए रंगों में डूब गई,
कोई मन-
वृंदावन,
कहाँ तक पढ़े निर्गुन।

खेतों से-
फिर फैली वासंती बाँहें,
गोपियाँ सुगंधों की,
रोक रही राहें,
देखो भ्रमरावलियाँ -
कौन-सी
बजाएँ धुन।
बाँसों वाली छाया
देहरी बुहार गई,
मुट्ठी भर धूल, हवा,
कपड़ों पर मार गई,
मौसम में-
अपना घर भूलने लगे पाहुन।