मंगलवार, 28 अक्टूबर 2025
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Written By WD

मैं फिर लौटूँगी

काव्य-संसार

काव्य संसार
उषा प्रारब्ध
ND
इस खूबसूरत दुनिया में
अंततः विदा होने का दिन
नहीं मालूम किसी को भी
कि कौन सा होगा समय
तिथि घड़ी वार मौसम
हो सकता है
गुलाबी ठंड हो
या मावठा बरस रहा हो
और मरघट की तमाम लकड़ियाँ
मना कर दें सुलगने से
हो सकता है
यह भी कि गर्मी तेज हो
तपतपाती धूप में
सिवा मेरे
सब ढूँढें जरा-सी छाँह
मुस्कराते हुए
अपनी ठंडक में
सहेज लें कोई पेड़
वैसे मुझे तो वसंत बेहद पसंद है
झरा पत्ता ही सही
मैं फिर लहलहाने किसी टहनी पर
लौटूँगी पूरे हरेपन के साथ।