मैं फिर लौटूँगी
काव्य-संसार
उषा प्रारब्ध इस खूबसूरत दुनिया मेंअंततः विदा होने का दिननहीं मालूम किसी को भीकि कौन सा होगा समयतिथि घड़ी वार मौसमहो सकता हैगुलाबी ठंड होया मावठा बरस रहा होऔर मरघट की तमाम लकड़ियाँमना कर दें सुलगने सेहो सकता हैयह भी कि गर्मी तेज होतपतपाती धूप मेंसिवा मेरेसब ढूँढें जरा-सी छाँहमुस्कराते हुएअपनी ठंडक मेंसहेज लें कोई पेड़वैसे मुझे तो वसंत बेहद पसंद हैझरा पत्ता ही सहीमैं फिर लहलहाने किसी टहनी परलौटूँगी पूरे हरेपन के साथ।