मंगलवार, 28 अक्टूबर 2025
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Written By ND

महत्वाकांक्षा

काव्य-संसार

महत्वाकांक्षा
गोविन्द माथुर
ND
वे भाव विहीन
एक प्रतिबिंब के सम्मुख
प्रत्यंचा ताने तैयार खड़े हैं
मछली की आँख ही दिखाई देती है
मछली के रूप-रंग और
चिकनी त्वचा पर
निगाह नहीं ठहरती
स्वयंवर उनका लक्ष्य नहीं
न ही प्रेम
किसी संबंध में
उष्मा महसूस नहीं होती
सिर्फ प्रेम और युद्ध में ही नहीं
सब कुछ जायज है
गंतव्य तक पहुँचने के लिए
प्राप्त करने में जो सुख है
वह खोने में नहीं
नैतिकता और
ईमानदारी की बातें
असफल लोग करते हैं।