महत्वाकांक्षा
काव्य-संसार
गोविन्द माथुर वे भाव विहीनएक प्रतिबिंब के सम्मुखप्रत्यंचा ताने तैयार खड़े हैंमछली की आँख ही दिखाई देती हैमछली के रूप-रंग औरचिकनी त्वचा पर निगाह नहीं ठहरतीस्वयंवर उनका लक्ष्य नहींन ही प्रेमकिसी संबंध मेंउष्मा महसूस नहीं होतीसिर्फ प्रेम और युद्ध में ही नहींसब कुछ जायज हैगंतव्य तक पहुँचने के लिएप्राप्त करने में जो सुख हैवह खोने में नहींनैतिकता और ईमानदारी की बातेंअसफल लोग करते हैं।