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नदी श्रृंखला की कविताएँ
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प्रेमशंकर रघुवंशी चिंता में डूबी नदीसूखकर काँटा होतीचिड़चिड़ी होते हीरूक जाती धारऔर क्रोध सेबन जाती रेतओ! मेरी गाँव की नदीहँसती रह हर दमहरदम हँसती नदीहरहाल में पानीदार नदी होती है!साभार : पहल