टुकड़े-टुकड़े दिन बीता
मीनाकुमारी
टुकड़े-टुकड़े दिन बीता, धज्जी-धज्जी रात मिलीजिसका जितना आँचल था, उतनी ही सौगात मिलीरिमझिम-रिमझिम बूँदों में, जहर भी है और अमृत भीआँखें हँस दी दिल रोया, यह अच्छी बरसात मिलीजब चाहा दिल को समझें, हँसने की आवाज सुनीजैसे कोई कहता हो, ले फिर तुझको मात मिलीमातें कैसी घातें क्या, चलते रहना आठ पहरदिल-सा साथी जब पाया, बेचैनी भी साथ मिलीहोंठों तक आते-आते, जाने कितने रूप भरेजलती-बुझती आँखों में, सादा-सी जो बात मिली।