वो गुनगुनाती-सी हवाएं, दिल को बहलाती जाएं
करे है मन कि अब हम यहीं रुक जाएं
चारों ओर फैली हरियाली मन ललचाए
शमा में फैली ठंडक मन को भा जाए
ऊंचे-ऊंचे पर्वत के शिखर बादलों संग मिलकर गीत गाए
कल-कल करते बहते झरने, अनंत शांति का संदेश सुनाएं
प्रकृति की गोद से मानो, भीनी-भीनी खुशबु आए
वन्य जीवन के प्राणी देख, दिल एक सवाल कर जाए
जाती इनकी बर्बरता की, फिर भी यह कितनी शिद्दत से
कैसे अपना धर्म निभाए,
पेट भरा हो तब बब्बर शेर भी,
हिरन का शिकार किए बिना ही चला जाए
इससे मानव को यह संदेश है मिलता
न बन आतंकी न बन अत्याचारी
तुझे दी है ईश्वर ने समझ की दौलत
तो चलता चल अपना धर्म निभाए ...