प्रवासी कविता : कवयित्री की जिंदगी की किताब के कुछ पन्ने
पुष्पा परजिया | गुरुवार,नवंबर 28,2024
जिंदगी की अधूरी किताब से चुराए कुछ पन्ने एक कवयित्री ने,
और छुपाकर रख दिया उन्हें मन के किसी कोने में, जब होती है ...
प्रवासी कविता : बेटियां
पुष्पा परजिया | बुधवार,अप्रैल 17,2024
आसमां को छू जाना है, उन हवाओं में खो जाना है, वो भीनी-सी सुगंध संग बहती है, सुगंधित हवाएं उस बचपन के अनोखे आलम में ख़ुद ...
होली के त्योहार पर प्रवासी कविता : कान्हा होली खेले राधा संग
पुष्पा परजिया | बुधवार,मार्च 20,2024
ऋतु राज वसंत और महीना हुआ फागुन
टेसुओं का बरसे रंग और बृज में खेलें कान्हा होली राधा के संग
मन मयूर नाचे छम छम ...
प्रवासी कविता : वंदे मातरम
पुष्पा परजिया | गुरुवार,फ़रवरी 9,2023
कविता : एक कंपन सी हो जाती है, एक लहरी सी उठ जाती है, जब-जब देखूं मां भारती तेरी तस्वीर, हृदय वीणा झंकृत सी हो जाती है, ...
प्रवासी कविता : अगले जनम तक
पुष्पा परजिया | सोमवार,सितम्बर 19,2022
जैसे लहरें बातें करते आईं हैं किनारों से आज तक, दिवा स्वप्न था बैठे थे पास पास और मूंदी (बंद) आंखों से, सपने संजोने लग ...
हिन्दी कविता : मेरे कृष्ण-कन्हैया, बंशी बजैया
पुष्पा परजिया | गुरुवार,अगस्त 18,2022
वो सपने सुनहरे भविष्य के हमने, किस आस पर किस सहारे पे देखे। वो शक्ति वो प्रेरणा आपकी थी, एक हारे हुए मन का बल आपसे था। ...
पन्द्रह अगस्त पर कविता : आजादी का पावन पर्व
पुष्पा परजिया | रविवार,अगस्त 14,2022
Poem on 15 August कहते थे बरसों पहले तुम हैं हिन्दी-चीनी भाई-भाई, फिर सीमा पर चुपके-चुपके किसने थी आग लगाई। फेंगशुई का ...
प्रवासी कविता : मेरी भारत माता
पुष्पा परजिया | गुरुवार,अगस्त 4,2022
मेरी भारत माता याद तो बहुत आती है, आंखें भी भर जाती हैं, दूर हूं तुझसे इतनी कि तेरी, सीमा भी नजर न आती है,
तू तो ...
रूस-यूक्रेन वॉर पर कविता : युद्ध
पुष्पा परजिया | मंगलवार,मार्च 8,2022
भरा आकाश और नभ मंडल बारूद और धुएं की बौछार है, सिसक रही मानवता ये कैसा नरसंहार है, जहां थी तारों की लड़ियां वहां बमों ...
National Girl Child Day: घर आई नन्ही-सी कली
पुष्पा परजिया | सोमवार,जनवरी 24,2022
सुंदर, नाजुक, कोमल-कोमल, मानो कोई खिली थी नन्ही-सी कली,
देख-देख मैं मन ही मन खुश होती
लहराती मेरे मन की बगिया