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Last Updated : बुधवार, 5 फ़रवरी 2025 (13:03 IST)

प्रवासी कविता : मां सरस्वती

प्रवासी कविता : मां सरस्वती - Poem on Devi Saraswati
हे मां तेरी महिमा मैं क्या बखानू 
तू तो है मां जगतदात्री 
 
हम सब अज्ञानी बालक 
तुझको मां हम शीश नवाते है 
 
करते हैं प्रार्थना तुझसे 
आशीष सदा ही देना मां हमको 
 
क्यों ना भूले से भी करे गलती 
छमा दान देना सर्वदा मां हमको 
 
मां तुम हो जगत जननी 
ज्ञान, विद्या, बुद्धि की देवी 
 
थोड़ा ज्ञान दान मांगे मां तुमसे 
दे वरदान कृतार्थ कर दो मां हमको 
 
चलती रहे लेखनी मेरी 
जब तक जीवन धारा मेरी बहती 
 
दूं प्रकाश इंसा के अंधेरे जीवन को 
आपसे उज्ज्वलता के प्रकाश को पाकर मैं 
 
अधिक ना सही कुछ लोगों के जीवन का
आधार बन पाऊं मै 
करूं वंदना तेरी हरदम शीश झुकाऊं मैं। 

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