उपन्यास समीक्षा : नौ मुलाकातें
विपरीत ध्रुवों पर खड़े हैं और मिलना चाहते हैं। मैंने मन ही मन जोड़ा। इति से मेरी यह नौवीं मुलाकात होगी। 40 वर्ष की अवधि में नौवीं मुलाकात। इससे पहले इति से जितनी मुलाकातें हुईं, अति भावुकता में हुई थीं। छोटी-छोटी मुलाकातें, लेकिन हर मुलाकात मेरे लिए खास थी और मेरी जिंदगी में हलचल मचाकर गई थी।
इस तरह की रोमांटिक शुरुआत के साथ यह उपन्यास पाठकों को शुरू से ही बांध देता है। लेखक बृजमोहन वैसे तो सालों से विभिन्न साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में लगातार लिखते रहे हैं, पर यह उपन्यास उनके लिए खास है, क्योंकि उम्र के इस पड़ाव (65 वर्ष) पर आकर लोग रिटायरमेंट की सोचते है वहीं उन्होंने प्रेमकथा को एक नया आयाम दिया है।
इस उपन्यास की सबसे बड़ी यूएसपी है उम्र के विभिन्न पड़ावों पर प्रेमी-प्रेमिका के बीच संवाद को उसी उम्र के अनुसार दर्शाना और लेखक ने यह काम बखूबी किया है। दूसरी बात सारी कहानी मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के बीच घूमती रहती है जिससे कि एमपी और छत्तीसगढ़ वाले पाठक इससे और जुड़ाव महसूस कर पाते हैं।
उपन्यास का नायक विकेस और नायिका इति दो विपरीत ध्रुवों के प्रतिनिधि हैं। नायक जहां थोड़ी बड़ी उम्र वाले कस्बाई संस्कृति के दबे-कुचले, शर्मीले और संकोची स्वभाव का है तो वहीं नायिका महानगरों की टीनएज में कदम रखती नवयौवना बहिर्मुखी और खुले दिमाग वाली लड़की है। दोनों की पहली मुलाकात एक शादी के अवसर पर होती है।
नायक पहली ही मुलाकात में उस बेपरवाह और बिंदास लड़की को दिल दे बैठता है। लेकिन उपन्यास में कई उतार-चढ़ाव आते हैं और अंत तक पाठकों की रुचि बनी रहती है। साथ ही साथ अन्य पात्र भी खूबसूरती से प्रस्तुत किए गए हैं। उपन्यास में अंत में क्या होगा उसको यहां बताने से रोमांच खत्म हो जाएगा।
पिछले कुछ वर्षों में हिन्दी में इस तरह का उपन्यास नहीं आया है। इसका सधा हुआ कथानक, सरल-स्पष्ट भाषा, कैरेक्टर से जुड़ाव और मध्यप्रदेश की पृष्ठभूमि इसे बेहद उम्दा उपन्यास बनाती है।
पुस्तक - 'नौ मुलाकातें' (उपन्यास)
लेखक - बृजमोहन
समीक्षक - ब्रजेश सावले