ND
चमकीली नीली चिड़िया
प्यार का
अथाह समुद्र
लौटा लाती है मुझमें
और मैं
अपनी कुँवारी फुदकन में तलाशती हूँ
किसी साथ का किनारा।
जैसे भूरी रेत पर
दबी हथेलियों में
खामोश नील पड़ जाए....!
या फिर मेरे उम्र की शाख
हरी-हरी पत्तियों से लद कर
हँसती हुई दोहरी हो जाए।
होता नहीं है ऐसा कुछ भी

ND
प्यार के नाम पर
दे जाए कोई कच्ची कौड़ियाँ
और मन के एकाकी आँगन में
टपकने लगे कड़वी निंबौरियाँ... !
चिड़िया के उड़ते ही उड़ने लगती है कंकरीली धूल
फिर भी टँगे रहते हैं मुझमें ही कहीं
आशा के हल्के गुलाबी फूल।