हमारा प्रेम है सीपियों-सा शांत
- अशोक कुमार पाण्डेय
मैं लिखता हूं कविताजैसे समन्दर लिखता है बादलकविता के कलेजे में रख दिए हैं मैंने प्राणऔर उम्र की तमाम चिंताएं सपनों की चमकीली बोतल में डालबहा दी हैं समन्दर मेंमैं दूर से देखता हूं समन्दर से सीपियां बटोरते बच्चों कोमेह की चादर लपेटे देखता हूं बादलों कोघरौंदों को बचाते हुए चलता हूं समन्दर किनारेबूढ़े कदमों की सावधानियों को उन्हीं की नजर से देखता हूंलौटते हुए पैरों के निशान देखता हूं तो चप्पलों के ब्रांड दीखते हैं धुंधलाए हुए सेमैं बारिश को उनमें घुलता हुआ देखता हूंखेतों की मेढ़ों पर देखता हूं खून और पसीने के मिले-जुले धब्बेफसलों की उदास आंखों में तीखी मृत्यु-गंध देखता हूंमेरे हाथों की लकीरों में वह तुर्शी बस गई है गहरेमेरी सिगरेट इन दिनों सल्फास की तरह गंधाती हैमैं अपने कंधों पर तुम्हारी उदासी की परछाइयां उठाए चलता हूंतुम देखती हो मुझेजैसे समन्दर देखता है नीला आसमानमैं बाजरे के खेत से अपने हिस्से की गरमीऔर धान के खेत से तुम्हारे हिस्से की नमी लिए लौटा हूंमेरी चप्पलों में समन्दर किनारे की रेत है और आंखों में मेढ़ों के उदास धब्बेमेरे झोले में कविताएं नहीं कुछ सीपियां हैं और कुछ बालियांसमय के किसी उच्छिष्ट की तरह उठा लाया हूं इन्हें तुम्हारे लिए यह हमारा प्रेम है बालियों की तरह खिलखिलातायह हमारा प्रेम है सीपियों-सा शांतयह हमारे प्रेम की गंध है इन दिनों... तीखीमैं लिखता हूं कविताजैसे तुम चूमती हो मेरा माथा...