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इतने सालों में लगातार इस बारे में बोलती लिखती आ रही हूं पर कहीं कोई बदलाव के आसार दिखाई नहीं देते।
हिन्दी भाषा को अगर जिंदा रखना है तो पहली कक्षा की नर्सरी राइम्स से लेकर एमए के पाठयक्रम तक में पूरी तरह सफाई की जरूरत है। क्या आप विश्वास करेंगे कि तीसरी कक्षा के कोर्स में किसी एक ही कवि की लिखी हुई कुछ अधकचरी कविताओं की एक किताब है जिसमें न सही तुकबंदी है, न सही मात्राएं, न सही व्याकरण। उसकी पहली कविता है -
जिस पर चरण दिए हम, जिसको नमन किए हम,
उस मातृभूमि की रज को. . .