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'द मूनशॉट गेम' : शिखर तक पहुंचने की अनूठी कहानी

'द मूनशॉट गेम' : शिखर तक पहुंचने की अनूठी कहानी - The moonshot game : adventures of an indian venture capitalist
भारत में ऐसे कई उदाहरण हैं, जिनसे साबित होता है कि छोटे स्टार्टअप कालांतर में बड़े कारोबार में तब्दील हो सकते हैं। एक छोटी-सी शुरुआत से बड़ी उपलब्धि हासिल की जा सकती है।

राहुल चंद्रा की किताब 'द मूनशॉट गेम' एक ऐसे ही स्टार्टअप मालिक की एक कहानी है, जिसमें उसके परिश्रम और संघर्ष को बखूबी दर्शाया है। अहम बात यह है कि राहुल चंद्रा से बेहतर लेखक इस किताब के लिए हो भी नहीं सकता था क्योंकि वे स्वयं एक एंटरप्रेन्योर हैं। 
 
पुस्तक में राहुल ने पेटीएम के विजय शेखर शर्मा से अपनी मुलाकात के बारे में बताया। विजय उस वक्त वन97 नामक कंपनी के मालिक थे। उनकी कंपनी के छोटे भाग का मालिकाना हक एक निवेशक के पास था। विजय के पास समय कम था, तभी उन्हें वेंचर फाइंनेसिंग के बारे में उनके एक बैंकर मित्र से सलाह मिली।
 
विजय का लक्ष्य तमाम सर्वर का नेटवर्क बनाना था जिसके वह मालिक रहें। वह कंटेंट के मालिक ही नहीं उसके विक्रेता भी बनना चाहते थे। ऑपरेटर और डिस्ट्रीब्यूटर के बीच उन्होंने एक खाई देख ली थी, जिसे वह पाटना चाहते थे। पहली मुलाकात से प्रभावित राहुल चंद्रा ने विजय से और भी मुलाकातें की। प्रारंभिक तौर पर उन्होंने लगा की विजय की कंटेंट उत्पादन में उतनी रुचि नहीं है, जितनी कंटेंट कंपनियों से टाइअप करने की।
 
जब पहली बार चंद्रा विजयशेखर शर्मा के नेहरू पैलेस स्थित ऑफिस में पहुंचे तो उनके लिए अलग अनुभव था। किसी विशाल कॉरपोरेट ऑफिस के स्थान पर उस छोटी जगह पर कुल 75 अलग-अलग विभाग से जुड़े कर्मचारी काम करते थे। लेखकों से लेकर इंजीनियर तक सभी ऑडियो और टेक्स्ट कंटेंट बनाने में जुटे थे। 
 
विजय छोटे-छोटे पायदान चढ़कर बड़ी उपलब्धि हासिल करने वालों में से थे। उनका प्रथम लक्ष्य एमटीएनएल को साइनअप करने का था। इसके अलावा चंद्रा को विजय और उनकी कंपनी वन97 के बारे में अग्रणी टेलीकॉम ऑपरेटर के उच्च पदों पर आसीन अधिकारियों से भी अच्छी बातें ही सुनने को मिली। आंतरिक चर्चा के बाद चंद्रा ने विजय को अपनी हेलियॉन टीम से मिलने बुलाया।
 
विजय शेखर ने छोटी शुरुआत कर शिखर को छुआ। विजय की यह कहानी उन लोगों को भी प्रभावित करेगी जो शिखर को छूना चाहते हैं। साथ ही उनको भी रास्ता दिखाएगी जो शुरुआत में संघर्ष तो करते हैं, लेकिन मंजिल पर पहुंचने से पहले ही हथियार डाल देते हैं। 
 
यदि आप यह समझना चाहते हैं कि भारत में स्टार्टअप्स की इस क्रांति में पूंजीपतियों का योगदान कैसे है, वे सही स्टार्टअप्स का चयन कैसे करते हैं, उनका समर्थन कैसे करें तो पेंग्विन द्वारा प्रकाशित राहुल चंद्रा की किताब को जरूर पढ़ना चाहिए।